निफ्टी पहले 5365, फिर 5400 तक

पुराने वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही बीत ली। नए वित्त वर्ष की पहली तिमाही शुरू हो गई। तो, हम भी पुरानी छायाओ से मुक्त होकर नई शुरूआत कर रहे हैं। मनोगत धारणाओं के बजाय सही तथ्यों की रौशनी में सत्य को पकड़ने की कोशिश में लगेंगे। यहां अब से शेयर बाजार ही नहीं, म्यूचुअल फंड, बैंकिंग व बांड, विदेशी मुद्रा और कमोडिटी बाजार की नब्ज पकड़ने की कला का अभ्यास करेंगे। मेहनत से मुठ्ठी भर मंत्र जुटाएंगे। मकसद वही है: आम लोगों को वित्तीय रूप से साक्षर और आर्थिक रूप से सबल बनाना। जो कमाया है उसका सार्थक निवेश और अगर नहीं कमाते तो सही काम का इंतज़ाम। अर्थ और काम का यही संतुलन लेकर हम चले हैं। परंपरा और आधुनिकता के बीच कड़ी जोड़ने का जो काम हमने दो साल पहले शुरू किया था, वह आपके आशीर्वाद से यूं ही आगे भी मंजिल हासिल होने तक बदस्तूर जारी रहेगा।

वैसे, हमारे शेयर बाजार की रीत भी अजीब है। जनवरी-मार्च की तिमाही देश में घोटालों से लेकर विदेश में यूरो ज़ोन संकट से ग्रस्त रही। नकारात्मक खबरों का बोलबाला रहा। बजट भी निराशाजनक रहा। इसलिए कायदे से शेयर बाजार को इन तीन महीनों में ध्वस्त हो जाना चाहिए था। लेकिन हुआ इसका उल्टा। यह तो बाजार के लिए काफी अच्छी तिमाही बन गई। इस दौरान निफ्टी करीब 12 फीसदी बढ़ गया। इसे अगर सालाना रिटर्न में बदलें तो 48 फीसदी की दर निकलती है। हालांकि पूरे साल में 48 फीसदी की उम्मीद न किसी को है और न ही की जानी चाहिए। फिर भी 12 फीसदी की बढ़त अपने आप में मायने रखती है।

क्या इससे यह मान लिया जाए कि नकारात्मक खबरों के लिए कोई अहमियत नहीं है? यकीनन है। लेकिन उस हमें मूलाधार को कतई नहीं भूलना चाहिए जिसने तमाम कमियों-कमजोरियों के बावजूद भारत की विकासगाथा को दुनिया भर के निवेशकों के लिए आकर्षक बना रखा है। भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर इस बार घटकर 6.9 फीसदी पर आ जाने की उम्मीद है। लेकिन यह दर 6 फीसदी भी रहे तो दुनिया के तमाम देशों से ज्यादा ही रहेगी।

यही वजह है कि विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने जनवरी-मार्च 2012 के दौरान भारतीय शेयर बाजार में 8.85 अरब डॉलर का शुद्ध निवेश किया है। दुख तो इस बात का है कि इसी दौरान हमारी अपनी निवेश संस्थाओं (डीआईआई) ने बाजार से करीब 1 अरब डॉलर की शुद्ध निकासी की है। हमें आज इस सच से आंखें नहीं मूंद सकते कि भारतीय बाजार की धमनियां दुनिया के बाजार से जुड़ चुकी है। दुनिया में जो घटता है, उसका सीधा असर यहां पड़ता क्योंकि एफआईआई वैश्विक हलचलों के हिसाब से अपना निवेश घटाते-बढ़ाते हैं। नोट करने की बात यह है कि जनवरी-मार्च 2012 के दौरान अमेरिकी बाजार की स्थिति दर्शानेवाला एस एंड पी सूचकांक भी करीब 12 फीसदी बढ़ा है।

हम सभी की तात्कालिक जिज्ञासा यह है कि इस हफ्ते क्या होगा? माहौल अनुकूल है। वित्त मंत्री सफाई दे चुके हैं कि पी-नोट्स पर टैक्स लगाने का सवाल ही नहीं उठता। सरकार जिस तरह सोने के आयात को रोकने में लगी है, क्योंकि उसका कहना है कि इससे हर साल लगभग 50 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा बेकार चली जाती है, उसमें हो सकता है कि सोने में धन लगानेवाले लोग हल्का-सा रुख शेयर बाजार का कर लें। हालांकि यह काफी मुश्किल है क्योंकि शेयरों में भले ही तरलता काफी हो, लेकिन वे नुकसान से बचाव में सोने की बराबरी नहीं कर सकते।

खैर, पिछले हफ्ते कुल मिलाकर निफ्टी 17 अंक बढ़कर 5296 और सेंसेक्स 42 अंक बढ़कर 17404 पर बंद हुआ है। जानकारों का कहना कि निफ्टी अगर खुद को 5290 के ऊपर बनाए रखता है तो इस हफ्ते यह 5365 तक जा सकता है। इसके बाद इसकी मंजिल 5400 की है। मूलाधार पटरी पर आते दिख रहे हैं। फरवरी में आठ मूलभूत उद्योगों का उत्पादन 6.8 फीसदी बढ़ा है। यह दर 2011-12 में इससे पहले तक औसतन 4.4 फीसदी रही है। इन आठ उद्योगों का योगदान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में 37.90 फीसदी का है। फरवरी के आईआईपी के आंकड़े गुरुवार, 12 अप्रैल 2012 को सुबह 11 बजे जारी किए जाएंगे।

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