1991 में लाते नया कंपनी कानून तो नहीं होते फ्रॉड

अगर 1991 में देश में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत के तत्काल बाद 1956 का कंपनी अधिनियम खत्म कर नया अधिनियम ले आया गया होता तो आज जिस तरह कॉरपोरेट जालसाजी की घटनाएं हो रही हैं, वे नहीं होतीं। यह कहना है खुद हमारे कॉरपोरेट कार्य मंत्री वीरप्पा मोइली का। मोइली ने सोमवार की रात बेंगलुरु में ईटीवी कन्नड़ व ईटीवी उर्दू चैनल द्वारा ‘भारत में कॉरपोरेट क्षेत्र का भविष्य’ विषय पर आयोजित सम्मेलन में कहा कि कंपनी अधिनियम, 1956 बहुत पुराना अधिनियम है और जितनी जल्दी हो सके, इसकी जगह नया अधिनियम लाना चाहिए। वैसे, सरकार नया कंपनी विधेयक बीते शीतसत्र में संसद में पेश कर चुकी है।

कॉरपोरेट कार्य मंत्री ने माना कि देश में उच्च स्तर पर होनेवाले भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए फिलहाल कोई तंत्र नहीं है। उनका कहना था, ‘‘कई बार हम उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार देखते हैं। इससे निपटने के लिए कोई तंत्र नहीं है।’’ उन्होंने बताया कि सरकारी खरीद के बारे में पाकिस्तान तक में कानून बना है। लेकिन भारत में इस बारे में अब जाकर एक नीति को मंजूरी दी गई है और कानून अभी बनाया जाना है। यह तब है जबकि केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा सालाना 12 लाख करोड़ रूपए की खरीदारी की जाती है।

उन्होंने कहा कि सरकारी खरीद के बारे में स्पष्ट नीति और कानून के लागू होने के बाद भ्रष्टाचार की 75 फीसदी गुंजाइश खत्म हो जाएगी। मोइली ने कहा कि वर्ष 1991 में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को अपरिहार्य और अनिवार्य परिस्थितियों में उदारीकरण की घोषणा करनी पड़ी थी। देश को उस समय बैंक ऑफ इंग्लैंड में सोना गिरवी रखना पड़ा था। लेकिन उदारीकरण के साथ वाजिब नियमन व्यवस्था नहीं की गई, जिसके चलते तमाम समस्याएं पैदा हो गईं।

उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम बहुत पहले लागू हो जाना चाहिए था जबकि यह 2009 में आया। उम्मीद है कि अगले महीने के अंत में होने वाली कैबिनेट बैठक में प्रतिस्पर्द्धा नीति को मंजूरी दे दी जाएगी। इस नीति से आर्थिक वृद्धि और रोजगार के अवसर बढाने में मदद मिलेगी और मुद्रास्फीति पर लगाम लगायी जा सकेगी। मोइली ने कहा कि एक राष्ट्रीय कॉरपोरेट गवर्नेन्स नीति भी बनाई जाएगी। सभी पक्षों से विचार-विमर्श के बाद संभवतः छह माह में यह नीति तैयार कर ली जाएगी।

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