भारत की सबसे बड़ी सम्पदा है उसकी मानव पूंजी। यही वो पूंजी है जो जीवन सुधारने की आशा में आज महाकुंभ में कोरोड़ों की तादाद में टूट पड़ी है। प्रयाग के संगम पर आस्था में डूबा सैलाब हिलोरे मार रहा है। लेकिन मोदी सरकार ने अब तक के लगभग 11 साल में उसे सही दिशा में लगाने पर ध्यान नहीं दिया। मोदी सरकार मेक-इन इंडिया के नाम पर विदेशी पूंजी के पीछे फूलों का गुलदस्ता लेकर दौड़ती रही। देश के भीतर शेयर बाज़ार के जरिए सटोरिया पूंजी को बढ़ावा देती रही। लेकिन बार-बार डेमोग्राफिक डिविडेंड का नाम लेने के बावजूद मानव पूंजी को दुत्कारती रही। इस मानव संपदा को बढ़ाने के लिए ज़रूरी था कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च बढ़ाया जाए। लेकिन शिक्षा पर हमारा खर्च जीडीपी के 2.9% पर अटका हुआ है, जबकि इसे 6% होना चाहिए। स्वास्थ्य पर सरकार का खर्च 1.2% से 1.5% पर अटका है, जबकि इसका वैश्विक बेंचमार्क 4% से 5% का है। अफसोस, सरकार स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ाने के बजाय बीमा कंपनियों का धंधा बढ़ाने में जुटी है। सरकार के ही नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक देश में पांच साल से कम के 35.5% बच्चे अविकसित, 19.3% बच्चे अक्षम, 32.1% बच्चे कम वजन और 67.1% बच्चे रक्त की कमी या एनीमिया के शिकार हैं। आखिर इनके दम पर 20 साल बाद 2047 में भारत कैसे बन सकता है विकसित देश? अब शुक्रवार का अभ्यास…
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