स्वरूप बदलता रहा बराबर ‘लक्ष्मी’ का

हर तरफ उजाला हो। जीवन के हर क्षेत्र में पारदर्शिता हो। मन में भी कोई छल-कपट व अंधेरा न हो। किसी को हर जानकारी हो, यह कतई ज़रूरी नहीं। आज के दौर में तो कोई भी जानकारी कभी भी हासिल की जा सकती है। यह भी ध्यान रहे कि इस दुनिया-जहान में सब कुछ हर पल बदल रहा है तो कोई भी जानकारी या सत्य अंतिम नहीं। सदियों पहले जो धन या लक्ष्मी का स्वरूप था, वह आज पूरी तरह बदल चुका है। पहले राजा-रजवाड़ों के सिक्के हुआ करते थे। सोने की मोहरों व कौडियों से लेकर चमड़े तक को मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया गया। फिर देश बने और कागज की मुद्राएं चलन में आ गई। सोना मगर हमेशा बहुमूल्य बना रहा। मुद्राएं देश के निकलकर अंतरराष्ट्रीय बन गईं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद देशों के केंद्रीय बैंक अपने पास रखे अमेरिकी डॉलर को 35 डॉलर प्रति ट्रॉय औंस की दर से सोने में बदल सकते थे। लेकिन 15 अगस्त 1971 से अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने यह सिलसिला एकबारगी रोक दिया। मुद्रा से सोने का रिश्ता हमेशा-हमेशा के लिए टूट गया। हाल-फिलहाल तो उधारी और नोट छापने का चलन बड़ा आम है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…

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