ज्यादातर उस्ताद यही कह रहे हैं कि बाजार आज शुक्रवार को भारी बिकवाली का शिकार हो गया। लेकिन हम इससे सहमत नहीं हैं। हमारा तो कहना है कि जब सारी दुनिया से बुरी खबरें आ रही थीं, तब भी बाजार (निफ्टी) ने खुद को 5240 अंक पर टिकाए रखा। अगले हफ्ते मेटल सेक्टर के शेयर स्टार परफॉर्मर होंगे। चाहे जो भी हो जाए, मेटल शेयरों में जल्दी ही कम से कम 25 फीसदी बढ़त होनी तय है। यह उसी तरह का भरोसा है जैसा हमें आईएफसीआई को लेकर था।
आईएफसीआई का शेयर अब जबकि 58 रुपए पर पहुंच गया है तब आरजे (राकेश झुनझुनवाला) से लेकर एचडीएफसी बैंक तक इसमें खरीद कर रहे हैं। जबकि हम काफी पहले ही न केवल इसमें खरीद की कॉल दे चुके हैं, बल्कि रिपोर्ट भी जारी कर चुके हैं जो साफ-साफ आईएफसीआई में छिपे हुए मूल्य को सामने लाती है।
अब सारे बाजार की निगाहें वैश्विक घटनाक्रम पर लगी रहेंगी और लोगबाग खरीद से बचेंगे, इसलिए क्योंकि हमें यही पढ़ाया-सिखाया गया है। फिर अगले तीन हफ्तों में सब कुछ शांत हो जाएगा और अमेरिका में दूसरी तिमाही के नतीजों का आना शुरू हो जाएगा। इससे दुनिया के बाजार ऊपर जाएंगे और दिग्गज खिलाड़ी पूंजी बाजार में वापसी करेंगे।
आपकी याददाश्त छोटी हो सकती है, मेरी नहीं। मैंने जनवरी 2010 में ही एकदम साफ-साफ खुलकर लिख दिया था कि जुलाई तक बाजार (सेंसेक्स) 18,000 से 19,000 तक जा सकता है। उसके बाद के आठ महीनों में हम 21,000 की नई ऊंचाई की तरफ कूच करेंगे और तब बाजार के 26,000 पर पहुंचने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। जुलाई के अंत तक हम 19,000 पर पहुंचने जा रहे हैं और उसके बाद का लक्ष्य वही होगा, जैसा हमने बता रखा है।
सरकार आर्थिक सुधार से जुड़े फैसले मुस्तैदी से ले रही है। इसलिए हमारे शेयर बाजार को बढ़ने से रोकना मुमकिन नहीं। पेट्रोल मूल्य, डीजल मूल्य, केरोसिन के दाम, फर्टिलाइजर सब्सिडी, न्यूज वायर मीडिया में एफडीआई… ये सब दुरुस्त और उत्साहवर्धक कदम हैं। संसद के मानसून सत्र में रिटेल, बीमा और टेलिकॉम पर नई पहल हो सकती है। अभी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के विकास को वास्तविक कैश फ्लो और सुधारों का सहारा मिल रहा है। रेटिंग एजेंसी एस एंड पी आधिकारिक तौर पर कह चुकी है कि भारत को अपने ऋण की फिर से रेटिंग के लिए राजकोषीय घाटा और कम करना चाहिए। यकीनन भारत ऐसा करेगा। भारत को 500 अरब डॉलर चाहिए और चाहे जो हो जाए, भारत को इन रेटिंग एजेंसियों की कागजी जरूरतें तो पूरी ही करनी पड़ेंगी।
सरकार जब सही हो तो हमारा गलत होना गड़बड़ ही नहीं, खतरनाक भी होता है।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)