एल एंड टी: अच्छे हैं सुस्ती के बादल

कुछ कंपनियों के बढ़ने से अर्थव्यवस्था बढ़ती है और कुछ कंपनियां अर्थव्यवस्था के बढ़ने से बढ़ती हैं। 1938 में डेनमार्क के दो इंजीनियरों हेनिक हॉक-लार्सन और सोरेन क्रिस्टियान टुब्रो द्वारा मुंबई में अपने नाम पर बनाई गई एल एंड टी दूसरी तरह की कंपनी है। हालांकि ये दोनों संस्थापक इतिहास के बस नाम भर रह गए हैं। इनका धेले भर का भी लेना देना अब एल एंड टी से नहीं है। यह पूरी तरह प्रोफेशनलों की तरफ से चलाई जा रही कंपनी है और इसमें प्रवर्तक जैसी कोई चीज नहीं है।

कंपनी की 122.23 करोड़ रुपए की इक्विटी में 15.94 फीसदी एफआईआई और 36.25 फीसदी डीआईआई (घरेलू निवेशक संस्थाओं) के पास है। इसके कुल 8,86,422 शेयरधारक हैं। इसमें से व्यक्तिगत शेयरधारकों की संख्या 8,62,051 है जिनमें से 62 एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) के पास 1.40 फीसदी और बाकी 8,61,989 छोटे निवेशकों के पास 22.03 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के 4.24 फीसदी शेयर कस्टोडियन के पास है, जिनके एवज में डिपॉजिटरी रिसीट जारी की गई हैं। बाकी 20.14 फीसदी शेयर विदेशी नागरिकों, अनिवासी भारतीयों, ट्रस्टों और कंपनी के निदेशकों व उनके रिश्तेदारों वगैरह के पास हैं।

एल एंड टी सेंसेक्स से लेकर निफ्टी तक में शामिल है। शायद ही कोई म्यूचुअल फंड होगा जिसमें इसमें निवेश न कर रखा हो। इस स्टॉक के साथ इधर खास बात यह हुई है कि वो पिछले महीने 25 अक्टूबर को 52 हफ्ते के नए न्यूनतम स्तर 1268.40 रुपए पर जा पहुंचा। अब भी इससे ज्यादा दूर नहीं गया है। शुक्रवार, 11 नवंबर को इसका दो रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 500510) में 3.30 फीसदी गिरकर 1330.65 रुपए और एनएसई (कोड – LT) में 3.19 फीसदी गिरकर 1330.40 रुपए पर बंद हुआ है। इसका 52 हफ्ते का शिखर 2175 रुपए का है जो इसमें साल भर पहले 10 नवंबर 2010 को हासिल किया था।

सितंबर तिमाही के नतीजों को मिलाकर उसका ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) इस समय 63.71 रुपए है। इस तरह उसका शेयर फिलहाल 20.88 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। अक्टूबर 2008 से लेकर मई 2009 के वैश्विक संकट के दौरान ही यह इससे कम मूल्यांकन पर गया था। इसलिए आम निवेशकों को लंबे समय के लिए एल एंड टी में घुसने का अच्छा मौका सामने आया है, जिसे हाथ से नहीं जाने दिया जाना चाहिए। लेकिन अल्पकालिक रूप से एल एंड पर सुस्ती के बादल छाए रह सकते हैं।

असल में सितंबर 2011 की तिमाही में एल एंड टी की शुद्ध आमदनी तो 19.35 फीसदी बढ़कर 11245.24 करोड़ रुपए हो गई, लेकिन शुद्ध लाभ महज 4.37 फीसदी बढ़कर 798.39 करोड़ रुपए पर पहुच सका। ऊपर से 21 अक्टूबर को इन नतीजों की घोषणा करते वक्त कंपनी प्रबंधन ने माना कि उसके ऑर्डर इस साल बमुश्किल 5 फीसदी बढ़ेंगे, जबकि पहले अनुमान 15-20 फीसदी का था। अनुमान को घटाने के लिए कंपनी ने बढ़ती मुद्रास्फीति, सघन होती प्रतिस्पर्धा, ऊंची ब्याज दरों, शेयर बाजार के सन्निपाती अंदाज और औद्योगिक सुस्ती को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि कंपनी को भरोसा है कि 1,42,185 करोड़ रुपए के पुराने ऑर्डरों के दम पर वह चालू वित्त वर्ष 2011-12 में अपनी आमदनी 25 फीसदी बढ़ाने में कामयाब रहेगी।

कंपनी ने इस साल अपने धंधे का जो आकलन किया है, वह जबरदस्ती की निराशा नहीं, बल्कि हकीकत का आईना है। हाल ही में 550 किलोमीटर सड़क बनाने का ठेका उसके हाथ से निकलकर जीएमआर को मिल गया। वैसे, कंपनी को अपनी हाइड्रोकार्बन डिवीजन से उम्मीद है जिसे सितंबर में ओमान से 700 करोड़ रुपए का ऑर्डर मिला है। बता दें कि कंपनी का 85 फीसदी धंधा इंजीनियरिंग व कंस्ट्रक्शन के काम से आता है और इसमें भी कंपनी का लाभ मार्जिन इधर घटा है। ऐसी ही वजहों से तमाम विश्लेषक इस समय एल एंड टी के लिए निराशाजनक तस्वीर पेश कर रहे हैं। उनका कहना है कि फिलहाल इससे दूर ही रहना चाहिए।

लेकिन हमारा मानना है कि एल एंड टी जैसा शेयर अगर साल भर के अंदर 38.85 फीसदी गिर गया है तो उसे दीर्घकालिक सोच वाले निवेशकों को जरूर उठा लेना चाहिए। कंपनी की बैलेंस शीट जिस कदर मजबूत है, उसके ऊपर अपेक्षाकृत ऋण का जितना कम बोझ है, वैसे में जरा-सा भी अविश्वास मन में नहीं रहना चाहिए। लंबे समय में यह निवेश जरूर फलदायी होगा। दो साल में 40 फीसदी का रिटर्न मानकर चलें। हां, इसमें निवेश एसआईपी के अंदाज में करें क्योंकि माहौल को देखते हुए इसके थोड़ा गिरने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। वैसे, जिसको एल एंड टी न भाए, उसके लिए सरकारी कंपनी इंजीनियर्स इंडिया इससे बेहतर विकल्प है। कैसे? यह आज नहीं, हम कल आपको बताएंगे।

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