हमारे विशाल देश भारत में रोज़गार की समस्या विकट सच्चाई है। इसे किसी भी जुमले या हवाबाज़ी से नहीं हल किया जा सकता। हमारी आबादी का मीडियम या मध्यमान 28 साल का है। हमें यह भी समझना होगा कि लोगबाग सरकार से नौकरियां नहीं, बल्कि ऐसी नीतियां चाहते हैं जिनसे रोज़ी-रोज़गार के मौके बढ़ें। मुठ्ठी भर ज्यादा पढ़े-लिखे लोग ही सरकारी नौकरियों के चक्कर में पड़ते हैं और आरक्षण के लिए मारा-मारी करते हैं। बाकी ज्यादातर लोग अपना काम-धंधा खुद कर लेते हैं। यह सरकार के प्रति उनकी गहरी निराशा को दिखाता है। सरकार की ताज़ा श्रम सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक देश में रोज़गार-प्राप्त आबादी में स्वरोज़गार कर रहे लोगों का हिस्सा 2018-19 से 2022-23 के बीच 52% से बढ़कर 57% हो गया है। हर बात का श्रेय लेने में माहिर सरकार दशकों से चली आ रही लोगों की इस प्रवृत्ति का भी श्रेय लेती रही है। लेकिन हताशा इतनी है कि 2018-19 से 2022-23 के दौरान कृषि में रोज़गार कर रहे लोगों का हिस्सा 41% से बढ़कर 43% हो गया है। देश में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र या उद्योग-धंधे जितना बढ़ेंगे. उतने ही ज्यादा लोग कृषि व स्वरोज़गार की मजबूरी से बाहर निकलेंगे। मगर सरकार तो पीएलआई और हवाबाज़ी ही चला रही है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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