गिरे या उठे, मिलेगा 35% साल में

बाजार में कोई दिशा नहीं नज़र आती। तेजड़िए और मंदड़िए अपने-अपने तीर-कमान और तर्क लेकर भिड़े हुए हैं। मंदड़ियों के पास शॉर्ट सौदे करने की तमाम वजहें हैं। जैसे, अर्थव्यवस्था का कामकाज ठीक नहीं है, जीडीपी घट रहा है, राजकोषीय घाटा बढ़ रहा है, कंपनियों का लाभार्जन दबाव में है और बराबर डाउनग्रेड हो रहे हैं। इन सबसे ऊपर उनकी पक्की राय है कि निफ्टी 4000 तक गिर सकता है और अगले छह महीनों में बाजार में वास्तविक सुधार की कोई उम्मीद नहीं है। इसलिए हर बढ़त पर वे नए सिरे से बेचने पर उतारू हो जाते हैं।

तेजड़ियों के पास चहकने की केवल दो वजहें हैं। एक यह कि बाजार ओवरसोल्ड अवस्था में जा पहुंचा है। और, दो यह कि सारी बुरी खबरों को बाजार जज्ब कर चुका है। ऐसे में वैश्विक संकेत सकारात्मक मिलने से बाजार में उत्साह का उफान तो आएगा ही। उनके लिए कैश सेटलमेंट और एनएवी दो अन्य वजहें जिनके दम पर चुनिंदा स्टॉक्स में तेजी के दर्शन हो सकते हैं।

अगर बाजार यहां से और भी नीचे चला जाए तो दूरगामी निवेशकों पर इन भावों पर शेयरों को डिलीवरी के लिए खरीदने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनका लक्ष्य लंबा है और उनको पता है कि 12 महीने बाद किसी भी सूरत में उन्हें 35 फीसदी से ज्यादा रिटर्न मिल ही जाएगा। केवल ट्रेडर ही वह समुदाय है जिस पर बाजार की मौजूदा हालत से फर्क पड़ता है। दिक्कत यह है कि उनके लिए ट्रेडिंग से दूर रह पाना भी बड़ा मुश्किल है। हालांकि अगर वे ऐसा कर सकें तो जीत उन्हीं की होगी।

इकनोमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि 2500 कंपनियां इस समय इल्लिक्विड हो चुकी हैं। 1600 में ट्रेडिंग पहले ही रोकी जा चुकी है। इस तरह 8200 लिस्टेड कंपनियों में से 4100 किनारे लग चुकी हैं। बाकी 50 फीसदी में ही आप ट्रेड करते हैं। इस सूरतेहाल के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या एक्सचेंज या सेबी इन शेयरों के इल्लिक्विड हो जाने की जिम्मेदारी लेंगे? असल में इसकी एकमात्र दोषी निवेशकों पर थोपी गई यह बंदिश है कि वे वोल्यूम के 10 फीसदी से ज्यादा खरीद नहीं कर सकते। इसी ने आज के हालात पैदा किए हैं।

हम क्यों नहीं ट्रेडरों व निवेशकों को जितना चाहें, उतनी खरीदने की छूट दे सकते और ऐसी व्यवस्था हो कि वोल्यूम के 10 फीसदी ज्यादा पर हुए हर सौदे की ऑटोमेटिव सूचना एक्सचेंज व नियामक को मिल जाए? इससे चौकस निगरानी होती रहेगी और किसी भी जोड़तोड़ या धांधली को फौरन पकड़ा जा सकता है। इससे समस्या भी सुलझ जाएगी और वोल्यूम भी बढ़ जाएगा। वैसे भी, सेबी का मानना है कि मांग और आपूर्ति ही किसी भी शेयर का आधार मूल्य तय करते हैं और अगर भाव 30 से 50 फीसदी भी घट-बढ़ जाएं तो वह हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

बाजार में फिर पस्ती है। सेंसेक्स 2.30 फीसदी टूटकर 16,488.24 पर पहुंच गया। निफ्टी भी 2.35 फीसदी गिरकर 4943.65 तक पहुंच गया। लेकिन इतना तय है कि वह इसी सेटलमेंट में पलटकर 5130 और 5250 तक जरूर आएगा। अब तक का रुझान यही दिखाता है कि इस समय भले ही कमान मंदड़ियों के हाथ में हो, लेकिन अंततः बाजी तेजड़ियों के हाथ ही लगनेवाली है।

उम्र बढ़ने के साथ मैं इसे कम तवज्जो देने लगता हूं कि लोग क्या कहते हैं। इसके बजाय मेरा ज्यादा ध्यान इस पर रहता है कि लोग क्या करते हैं।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता। इसलिए अनाम है। वह अंदर की बातें आपके सामने रखता है। लेकिन उसमें बड़बोलापन हो सकता है। आपके निवेश फैसलों के लिए अर्थकाम किसी भी हाल में जिम्मेदार नहीं होगा। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का कॉलम है, जिसे हम यहां आपकी शिक्षा के लिए पेश कर रहे हैं)

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