इस साल के बजट में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने घोषित किया था कि आयकर एक्ट की धारा 80 सी, 80 सीसीसी और 80 सीसीडी के तहत मिलनेवाली कुल एक लाख रुपए की कर-मुक्त आय के ऊपर 20,000 रुपए और बचाने की सुविधा इंफ्रास्ट्रक्चर बांडों में किए गए निवेश पर मिलेगी। अब ये बांड निर्धारित कर दिए गए हैं। वित्त मंत्रालय ने घोषित किया है कि आईएफसीआई, एलआईसी और आईडीएफसी के अलावा उन गैर-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों की तरफ से जारी बांडों पर यह सुविधा मिलेगी, जिन्हें रिजर्व बैंक इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी का दर्जा देगा।
इन बांडों की परिपक्वता अवधि कम से कम दस साल की होगी और इनमें पांच साल की लॉक-इन अवधि रहेगी। यानी, निवेशक इन्हें पांच साल से पहले नहीं बेच सकता। इन बांडों में वे लोग ही निवेश कर सकते हैं जिनके पास परमानेंट एकाउंट नंबर (पैन) होगा और बांडों में किए गए निवेश में से 20,000 रुपए वे अपनी कर-योग्य आय से घटा सकते हैं। इन बांडों से मिली रकम का इस्तेमाल देश में इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में किया जाएगा।
बता दें कि सरकार ने मार्च 2012 तक के पांच सालों में 50000 करोड़ डॉलर खर्च करने का लक्ष्य बना रखा है जिसके बाद के पांच सालों में यह रकम दोगुनी कर दी जानी है। ऐसे में इस भारी-भरकम राशि का इंतजाम करना सरकार के लिए बडी चुनौती है। इसीलिए अब लंबी अवधि के इंफ्रास्ट्रक्चर बांड जारी किए जा रहे हैं। इससे पहले बैंक और निजी बीमा कंपनियां भी इंफ्रास्ट्रक्चर बांड जारी करने की इजाजत सरकार से मांग चुकी हैं।
अभी सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि देश में बांडों या ऋण-प्रपत्रों का सेकेंडरी बाजार ठीक से विकसित नहीं हुआ है। ऊपर से पेंशन व बीमा फंडों पर तरह-तरह की बंदिश लगी हुई है। इसके चलते लंबी अवधि के बांड खरीदनेवाले नहीं मिलते। सरकार की कोशिश है कि इस कमी को किसी तरह जल्द से जल्द दूर कर लिया जाए, नहीं तो इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए धन मिलने में मुश्किल होती रहेगी। इसी के मद्देनजर उसने 1100 करोड़ डॉलर का इंफ्रास्ट्रक्चर फंड भी लाने की योजना बना रखी है।