निवेश व ट्रेडिंग का लांग और शॉर्ट

शेयर बाज़ार में निवेश/ट्रेडिंग के दो ही अंदाज़ हैं – लांग टर्म और शॉर्ट टर्म। यह अलग बात है कि लांग टर्म इधर छोटा और शॉर्ट टर्म लंबा होता गया है। इसमें से लांग टर्म या लंबी अवधि का निवेश/ट्रेडिंग अपेक्षाकृत बहुत सरल है। इसके लिए हर दिन बहुत कम समय देना पड़ता है और इसमें न्यूनतम मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता है। खासकर तब जब आप इसे फुरसत के वक्त में करते है। इसके लिए किसी जटिल सिस्टम की जरूरत भी नहीं पड़ती। कंपनी और उसके उद्योग का आगापीछा देखा। फंडामेंटल एनालिसिस का सहारा लिया और कर दिया कई सालों के लिए निवेश।

जो लोग इसका सही तरीका अपनाते हैं वे बार-बार पौधे को उखाड़कर देखने की ज़रूरत नहीं समझते कि जड़ कितनी गहरी हो गईं। हां, इतना ज़रूर है कि कंपनी से जुड़ी खबरों व नतीज़ों पर बराबर ध्यान रखना पड़ता है और एमसीएक्स, फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज़ या गीतांजलि जेम्स जैसी नकारात्मक मार के गहराने से पहले ही कम से कम घाटा काटकर निकल लेना पड़ता है। लेकिन हकीकत यही है कि लांग टर्म निवेश में ज़रा-सी सावधानी और बहुत सरल सिस्टम की बदौलत आप आसानी से काफी धन बना सकते हैं।

लांग टर्म निवेश या ट्रेडिंग का बड़ा फायदा यह है कि इसमें बाज़ार में ली गई हर पोजिशन पर असीमित मुनाफा कमाने का मौका मिलता है। कम से कम सैद्धांतिक रूप से तो ऐसा कहा ही जा सकता है। दुनिया में वॉरेन बफेट या भारत में राकेश झुनझुनवाला जैसे तमाम सुपर कामयाब निवेशकों का रहस्य यह है कि उन्होंने सोच-समझकर स्टॉक्स खरीदे और उन्हें लंबे समय तक रखा। इनमें कुछ स्टॉक्स सोने की खान साबित होते हैं और आपका चंद हज़ार रुपए दस-बीस सालों में लाखों में बदल जाते हैं।

लेकिन लांग टर्म निवेश या ट्रेडिंग का बुनियादी नुकसान यह है कि आपको बड़ा तगड़ा धैर्य रखना पड़ता है। आपको ऐसे निवेश के ज्यादा मौके नहीं मिलते। इसलिए आपको उनका इंतज़ार करना पड़ता है। फिर, आपने एक बार कोई पोजिशन पकड़ ली तो उस स्टॉक के भावों में तमाम उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। आपका दिल ऊपर-नीचे होता रहता है। लेकिन इस हालत को आपको मुक्त मन से लेना पड़ता है। एक और नुकसान यह है कि ऐसे निवेश के लिए आपको ज्यादा धन की जरूरत पड़ती है। ज्यादा धन नहीं हुआ तो आप कायदे से मौके का लाभ नहीं उठा पाते। मान लीजिए कि आप ने 1000 रुपए लगाए। वो पांच साल में 400 प्रतिशत बढ़ गया तब भी आपकी रकम 5000 ही होगी। वहीं आपने एक लाख रुपए लगाए तो 400 प्रतिशत बढ़ने पर वो पांच लाख रुपए हो जाएगी।

अब शॉर्ट ट्रेडिंग की बात। ऐसी ट्रेडिंग एक दिन की इंट्रा-डे ट्रेडिंग भी हो सकती है और तीन से पांच दिन की स्विंग ट्रेडिंग, दस-पंद्रह दिन की मोमेंटम ट्रेडिंग या एक से तीन महीने की पोजिशन ट्रेडिंग भी हो सकती है। इनके अपने फायदे नुकसान हैं। इन पर आप कितना भी रिसर्च कर लें, कितना भी अच्छा सिस्टम हो, पर दुनिया भर में दिग्गजों की ट्रेडिंग का अनुभव बताता है कि आप 60 प्रतिशत से ज्यादा मौकों पर सही नहीं हो पाते। कभी-कभी इकलौता बड़ा नुकसान आपकी सारी कमाई और पूंजी साफ कर देता है। दो साल लगातार कमाते रहे। फिर अचानक एक दिन सारा कुछ साफ। यह शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग का सबसे बड़ा जोखिम है। इसलिए यहां जोखिम प्रंबधन और मनी मैनेजमेंट का कठोर अनुशासन ही ट्रेडर को बचा पाता है।

अगर आप शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग का फैसला करते हैं तो एक बात सबसे पहले समझ लीजिए कि इसमें लांग टर्म निवेश की तरह असीमित नहीं, बल्कि सीमित लाभ की गुंजाइश होती है। अमूमन दो से चार, बहुत हुआ तो पांच से दस फीसदी। वहीं इन सौदों की लागत ज्यादा होती है। बार-बार खरीदने-बेचने में बार-बार ब्रोकरेज व अन्य टैक्स देने पड़ते हैं। खबरें शॉर्ट टर्म में अच्छे से अच्छे सौदे को पलीता लगा देती हैं। बड़े निवेशक या म्यूचुअल फंड किसी वजह से निकलने लगे तो मजहूत स्टॉक भी एल एंड टी की तरह छोटी अवधि में धराशाई हो जाता है। ऊपर से मनोवैज्ञानिक दबाव जो मामूली-सी चूक को बड़े नुकसान में बदल देती है। फिर बार लय टूटी तो आप लगातार गलत फैसले लेते चले जाते हैं। नतीजतन, धन से लेकर मन तक टूट जाता है।

इसलिए आपको तय करना पड़ता है कि आपके व्यक्तित्व को लांग टर्म निवेश सुहाता है या शार्ट टर्म ट्रेडिंग उसके माफिक पड़ती है। इस टाइमफ्रेम को पहले से तय कर लेना बेहद ज़रूरी है। एक बार इसे तय कर लिया तब उस टाइमफ्रेम में ट्रेड या निवेश करने का सर्वोत्तम तरीका चुनना होता है। शेयर छांटने होते हैं। देखना होता है कि इन स्टॉक्स का खुद अपना व्यक्तित्व क्या है। अशांत स्वभाव के हैं या शांत स्वभाव के। सौ मीटर रेस के धावक हैं या मैराथन के। 50-100 शेयरों का सैम्पल भी लें और उनके भावों की गति को देखें, उनके उतार-चढ़ाव यानी वोलैटिलिटी को देखें और बाज़ार की चाल से साथ उन्हें मिलाएं तो हर स्टॉक का व्यक्तित्व आपको अलग-अलग नज़र आएगा।

इसके साथ-साथ आपको अपनी कमियों और खूबियों को सही-सही समझना पड़ता है। अपना ही अन्वेषण करना पड़ता है जो कतई आसान काम नहीं है। अपने मन और दिमाग का चरित्र पकड़ना पड़ता है। छोटी-छोटी चीजें तक देखनी पड़ती हैं। जैसे, कंप्यूटर पर कितनी कुशलता से काम कर पाते हैं। आपके पास कुल पूंजी कितनी है। इसमें भी कितनी पूंजी पर आप रिस्क ले सकते हैं। धन से ही धन पैदा होता है। पर्याप्त धन नहीं है तो आप सौदे का आकार सही नहीं रख सकते और आप शानदार मौके का भी भरपूर लाभ नहीं उठा पाएंगे। इन सारी चीजों से आपका व्यक्तित्व बनता है। उससे स्टॉक्स के व्यक्तित्व को मिलाइए। तभी दोस्ती अच्छी निभेगी। नहीं तो जानते ही हैं कि बेमेल जोड़े जिंदगी भर एक-दूसरे को तकलीफ ही देते रहते हैं।

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