शेयर बाज़ार के मंजे हुए ट्रेडरों की बात अलग है। लेकिन उन लोगों के लिए, जिन्होंने शेयर बाज़ार में अभी-अभी ट्रेडिंग शुरू की होती है, स्टॉप लॉस लगते ही जैसे कलेजे से एक कतरा कटकर नीचे गिर जाता है। लगता है कि किसी ने सरे-राह जेब काट ली। हालांकि स्टॉप लॉस किसी भी ट्रेडर के जीवन का एक अपरिहार्य हिस्सा है। गिरते हैं घुड़सवार ही मैदान-ए-जंग में। लेकिन स्टॉप लॉस को लेकर मन में कोई खांचा फिट नहीं करना चाहिए। स्टॉप लॉस किसी बाहरी गणना का नहीं, बल्कि हमारी अपनी गणना का हिस्सा होना चाहिए कि किसी सौदे में हम कितना नुकसान उठाने को तैयार हैं।
मान लीजिए हमने पांच फीसदी कमाने के मन से किसी कंपनी के 100 शेयर 200 रुपए के भाव से खरीदे। हमारा हिसाब है कि हमें इस तरह 20,000 रुपए लगाने पर 1000 रुपए मिल जाने चाहिए। लेकिन हमें लगता है कि इस दांव में हम ज्यादा से ज्यादा 500 रुपए गंवा सकते हैं तो हमें 195 रुपए पर स्टॉप लगाकर चलना चाहिए। सीधा-सा व्यक्तिगत हिसाब है। स्टॉप लॉस एक तरह के रिस्क की मात्रा है जिसे हम रिटर्न के लिए उठना चाहते हैं। इसलिए किसी दूसरे व्यक्ति के लिए स्टॉप लॉस की मर्यादा/सीमा दूसरी हो सकती है।
एक बात गांठ बांध लें कि ट्रेडिंग का कोई सिद्ध और अचूक तरीका नहीं होता। कुछ लोगों को यह सच ट्रेडिंग से तौबा करा सकता है। वहीं कुछ लोगों को यह चुनौती देकर जूझने के लिए ललकार सकता है। हम अपने हिसाब के ट्रेडिंग के तरीके निकाल सकते हैं। लेकिन चूक उसमें भी होगी। इसलिए उस चूक को भरने के लिए स्टॉप लॉस लगाना नितांत जरूरी है। स्टॉप लॉस की बात ही न सोचना आत्मघाती किस्म की मूर्खता है। ट्रेडिंग से पहले कम से कम तीन बातें तय कर लेनी चाहिए। खरीदने या एंट्री का भाव, लक्ष्य क्या है और स्टॉप लॉस कहां लगाना है। यह तय करने के बाद हम डर और लालच की भावना से मुक्त हो जाते हैं। हम समाज या बाज़ार से बड़े कभी नहीं हो सकते। फिर भी हम उससे जूझना नहीं छोड़ते। बाज़ार जहां हमको मात देता है, वहीं स्टॉप लॉस लगता है और हमें इसे सहृदय भाव से स्वीकार कर लेना चाहिए।
ट्रेडिंग का एक वसूल यह भी है कि स्टॉप लॉस में जितना नुकसान उठाने का मन बना चुके होते हैं, कम से कम उतना फायदा कमाकर निकलना चाहिए। अगर कोई शेयर फायदे में चला गया है और उसका भाव दस-पंद्रह दिनों के औसत से ऊपर पहुंचता है तो हमें ज्यादा लालच किए बगैर निकल लेना चाहिए। अगर किसी दिन बंद भाव पांच दिनों के औसत से नीचे रहता है तो उससे निकलने में देर नहीं करनी चाहिए। वैसे, कहां पर निकला जाए, इसकी अलग-अलग पद्धतियां हैं, नियम हैं। इसका एक नियम मूविंग औसत पर आधारित है।
सबसे बेहतरीन तरीका है डिमांड और सप्लाई ज़ोन की शिनाख्त। कोई शेयर डिमांड ज़ोन में घुसने से पहले कई दिनों तक कम वोल्यूम के साथ ठंडा पड़ा रहता है। फिर डिमांड ज़ोन में घुसते ही वह पहले धीरे और फिर तेज़ी से बढ़ता है। कोई इसे शुरूआत में पकड़ लें तो आधा कमाल हो जाता है। पूरा कमाल तब होता है जब डिमांड ज़ोन से वह सप्लाई ज़ोन में घुसता है। यहां से वह पहले धीरे, फिर फटाफट गिरता है। अगर कोई इस बिंदु को पकड़कर निकल जाए तो पूरा कमाल हो जाता है। डिमांड और सप्लाई ज़ोन की शिनाख्त कैसे करें, इस पर गहन अध्ययन-मनन जारी है। जल्दी ही अर्थकाम की तरफ से उसके सूत्र पूरी व्याख्या के साथ आपके सामने पेश कर दिए जाएंगे। तब तक माहौल बनाए रखिए। छात्र जीवन मे आंदोलन के दौरान थकने पर हम लोग आपस में एक शेर कहते थे…
इक न इक शमां अंधेरे में जलाए रखिए। सुबह होने को है माहौल बनाए रखिए।।