कॉरपोरेट क्षेत्र की आशा, उम्मीद और प्रगति से ही शेयर बाज़ार चमकता है। उसने उम्मीद जताई है कि मोदी की सरकार में बनी नई एनडीए सरकार अधिक साहसी आर्थिक सुधारों पर अमल करेगी। उसने यह तो साफ नहीं किया कि ये साहसी सुधार क्या हो सकते हैं। लेकिन इस उम्मीद के साथ प्रधानमंत्री के विकसित भारत के नारे को ज़रूर नत्थी कर दिया है। ये वही कॉरपोरेट क्षेत्र है जिसने इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विरोध किया था क्योंकि इससे उसके और सरकार के बीच किया भ्रष्टाचार सामने आ जाएगा। सवाल उठता है कि क्या भ्रष्टाचार को जड़-मूल से खत्म किए बना भारत विकसित देश बन सकता है? यह भी सवाल है कि क्या देश में अगले पांच तक झूठ, झांकी और झांसे का दस साल से चल रहा वही दुष्चक्र चलेगा या देश के डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ लेते हुए निजी निवेश और निजी खपत को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को व्यापक गति दी जाएगी? राजनीति और अर्थनीति, दोनों में प्रतिस्पर्धा को किस हद तक प्रोत्साहित किया जाएगा? हाल-फिलहाल तो देश का माहौल राजनीतिक तिकड़मबाज़ी और सत्ताशीर्ष की चाटुकारिता में गले तक डूबा हुआ है। इससे वो कब और कैसे उबरता है, इसका इंतज़ार लोकतंत्र के सभी पैरोकारों और व्यापक अवाम को है। अब मंगलवार की दृष्टि…
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