आज बात बाजार की उठापटक से थोड़ा हटकर। कारण, आखिरी डेढ़-दो घंटों में कुछ ऐसा हो गया जो सचमुच आकस्मिक था। एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस से लेकर तीन सरकारी बैंकों के अधिकारियों का रिश्वतखोरी में लिप्त होना हमारे वित्तीय तंत्र की बड़ी खामी को उजागर करता है। यह बड़ा और बेहद गंभीर मसला है जो अगले कुछ दिनों तक हमारे नियामकों व बाजार के जेहन को मथता रहेगा। इसलिए आज कुछ स्थाई किस्म की बात जो हो सकता है कि कुछ अतिरंजित भी लगे। लेकिन खुलकर कहने की मेरी आदत है तो दिल खोलकर ही कहूंगा।
मेरा सवाल है कि वॉरेन बफेट, एल एन मित्तल और मुकेश अंबानी में से कौन बड़ा है? आपकी राय कुछ भी हो सकती है, लेकिन मेरी व्यक्तिगत राय है मुकेश अंबानी। मैंने अपने दो दशकों के करियर में कभी भी मुकेश अंबानी जैसा शख्स नहीं देखा, हालांकि मैं उनके पिता स्वर्गीय धीरूभाई अंबानी का भी बड़ा प्रशंसक रहा हूं। दुनिया में बहुत सारे बिजनेस साम्राज्य हैं, लेकिन किसी ने भी रिलायंस जैसी रफ्तार से विकास नहीं किया है। आपको भी पता होगा कि धीरूभाई ने मुकेश और अनिल अंबानी के लिए 50,000 करोड़ रुपए के बाजार पूंजीकरण का आधार छोड़ा था। आज इन दो भाइयों के समूहों का सम्मिलित बाजार पूंजीकरण 7 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है। अगर इसमें गैस, ऑयल और अनलिस्टेड कंपनियों के संभावित मूल्य को जोड़ दें तो कुल साम्राज्य 10 लाख करोड़ रुपए के पार जा सकता है।
निस्संदेह रूप से हम मुकेश अंबानी को किंग या बादशाह कह सकते हैं और आरआईएल (रिलायंस इंडस्ट्रीज) के स्टॉक को भी यही ओहदा दे सकते हैं। मेरा ट्रैक रिकॉर्ड पिछले सात साल सालों से आरआईएल की चाल का सही अनुमान लगाने का रहा है। असल में, 2003 में मैं कैपिटल इंटरनेशनल के दो फंड मैनेजरों के संपर्क में था, जिन्होंने उन दिनों आरआईएल के 1.3 करोड़ शेयर 400 रुपए के आसपास या इससे कम भाव पर बेचे थे। मैंने उसी समय उनसे दावा किया था कि यह स्टॉक 12 महीनों में 100 फीसदी रिटर्न देगा और यह सचमुच 12 महीनों में 800 रुपए पर पहुंच गया।
फिर 2006 में आरपीएल (रिलांयस पेट्रोलियम) के इश्यू के बाद बाजार 9000 अंक के नीचे चला गया। एनम सिक्यूरिटीज हर दिन आरआईएल के शेयर 925 रुपए पर खरीद रही थी और बाजार के तमाम खिलाड़ी दावा कर रहे थे कि 925 वो दीवार है जिसके इधर-उधर नहीं हुआ जा सकता, तब मुझे पक्का भरोसा था कि यह दीवार टूटेगी। और, हुआ भी यही। आरआईएल का शेयर इस दीवार को तोड़कर 814 रुपए तक जा गिरा, लेकिन उसके बाद 60 दिनों के भीतर ही उम्मीद के अनुरूप 1200 रुपए के ऊपर चला गया। इसलिए मेरा मानना है कि हम आरआईएल और बाजार में उसकी बादशाहत को कतई खारिज नहीं कर सकते।
मुझे रिलायंस समूह के विकासपथ के बारे में कोई संदेह नहीं है। 2003 में मैंने आकलन पेश किया था कि आरआईएल का स्टॉक एक दशक में 10,000 रुपए तक चला जाएगा। इस मीयाद को पूरा होने में अब तीन साल ही बचे हैं और मैं सारे वाजिब तर्कों के आधार पर मानता हूं कि यह तब तक 10,000 रुपए के पार चला जाएगा। 2003 के बाद से कंपनी दो बोनस दे चुकी है और इससे कई शाखाएं निकल चुकी हैं। यहां से आगे गैस कारोबार का मूल्यांकन इस स्टॉक को दो सालों के भीतर 3000 रुपए तक ले जाएगा। मुकेश अंबानी कई फर्टिलाइजर और बिजली संयंत्रों का अधिग्रहण कर सकते हैं जो आरआईएल द्वारा उत्पादित गैस के सबसे बड़े ग्राहक हो सकते हैं। वे भारत को आयातित तेल पर निर्भर देश की जगह घरेलू गैस पर आधारित देश बना सकते हैं क्योंकि हमारे पास गैस के पर्याप्त भंडार हैं।
हालांकि मैं मुकेश अंबानी का सबसे बड़ा प्रशंसक हूं, लेकिन उनकी व्यक्तिगत उपलब्धियों के बारे में मैं ज्यादा कुछ नहीं लिखता। लिखने की जरूरत नहीं क्योंकि उन्होंने अपने उदाहरण से भारतीय कॉरपोरेट जगत को बता दिया है कि कारोबार में मूल्य का सृजन कैसे किया जाता है। मुझे यकीन है भारत में सेंसेक्स को 42,000 अंक पर पहुंचना है और ऐसा बगैर उनके सहयोग के नहीं हो सकता। कोई भी एफआईआई इस समूह से बड़ा नहीं है और कोई एफआईआई भारतीय बाजार को अस्थिर नहीं कर सकता। एफआईआई ने 2007 में सेंसेक्स के 20,000 अंक पहुंचने तक खरीदारी की और 2008 में सेंसेक्स 7500 पर पहुंचा तो वे बेचने पर उतारू हो गए। उस समय केवल यही समूह था जिसने अपने ट्रेजरी परिचालन के जरिए बाजार को पूरा सहयोग दिया।
आरआईएल के स्टॉक पर साल 2014 तक नजर रखें और यह आपको बाजार के नए स्तर और नए युग में ले जाएगा। मेरा आखिरी सुझाव है कि आरआईएल को 2014 तक सिप (सिस्टेमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान) के रूप में खरीदें और आप हमेशा फायदे में रहेंगे। जहां तक बाजार की बात है तो यहां के सभी कारोबारियों में इस समूह का बहुत सम्मान है और उसके विचार को बाजार हर वक्त तहेदिल से स्वीकार करता है। बादशाह तो बादशाह है। एफआईआई आएं, उछल-कूछ मचाकर भारत को थोड़े समय के लिए प्रभावित कर लें। कुछ फर्क नहीं पड़ता क्योंकि आखिरकार उन्हें बादशाह को झुककर सलाम करना ही पड़ेगा।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)