लैंको इंफ्राटेक (बीएसई – 532778, एनएसई – LITL) साल 2011 की शुरुआत में 3 जनवरी को 65.55 रुपए पर था। शुक्रवार 4 मार्च को 2.76 फीसदी गिरकर 36.95 रुपए पर बंद हुआ है। वह भी तब जब 3 मार्च को सीएलएसए ने इसे ‘आउटपरफॉर्म’ की रेटिंग देते हुए खरीदने की सलाह दी है। सीएलएसए का कहना है कि उसने कंपनी की ऋणग्रस्तता की गणना की है और यह शेयर 47 रुपए तक जा सकता है। यानी, जो शेयर इस साल के तीन महीनों में 43.6 फीसदी गिर चुका है, उसमें 27.2 फीसदी बढ़ने की गुंजाइश है। यह शेयर बीएसई के ए ग्रुप और बीएसई-200 सूचकांक में शामिल है। इसलिए इसमें सर्किट ब्रेकर का कोई लफड़ा नहीं है। यह किसी भी दिन कितना भी घट-बढ़ सकता है।
लैंको इंफ्राटेल करीब एक महीने पहले 9 फरवरी को 31 रुपए की तलहटी भी पकड़ चुका है। हालांकि इसकी कोई वजह समझ में नहीं आती। 7 फरवरी को कंपनी ने दिसंबर 2010 तिमाही के नतीजे घोषित किए थे जिसके मुताबिक तीसरी तिमाही में उसकी आय 59 फीसदी और कर-बाद लाभ 54 फीसदी बढ़ा है। कंपनी ने 2027.11 करोड़ रुपए की आय पर 133.56 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया। बीते पूरे वित्त वर्ष 2009-10 में उसकी कुल आय 5937.17 करोड़ व शुद्ध लाभ 486.38 करोड़ रुपए था।
लैंक्रो इंफ्राटेक बिजली से लेकर कंस्ट्रक्शन, ईपीसी (इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट, कंस्ट्रक्शन), प्रॉपर्टी डेलवपमेंट, इंफ्रास्ट्रक्चर और अक्षय ऊर्जा तक में सक्रिय है। सरकारी मंजूरियां उसे आसानी से मिलती रहती हैं। बीते गुरुवार, 3 मार्च को उसे महाराष्ट्र में वरधा जिले के मांडवा गांव में 1320 मेगावॉट का कोयला आधारित ताप बिजली संयंत्र लगाने के लिए जयराम रमेश के पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिली है। कंपनी बिजली उत्पादन में बहुत तेजी से बढ़ रही है। उसकी योजना 2000 मेगावॉट की मौजूदा क्षमता को वित्त वर्ष 2013-14 तक 9000 मेगावॉट तक पहुंचा देने की है। उसने पिछले ही महीने अपने सौर ऊर्जा संयंत्र की नींव रखी है।
इसी शुक्रवार, 4 मार्च को कंपनी ने अपनी कोयला जरूरतों को पूरा करने के लिए ऑस्ट्रेलिया की ग्रिफिन कोल को 3400 करोड़ रुपए (73 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर) में खरीदने का फैसला किया है। लैंको इंफ्राटेक के सीएफओ सुरेश कुमार के मुताबिक ग्रिफिन के अधिग्रहण से कंपनी 2015 तक अपनी कुल 30 फीसदी कोयला जरूरतों को पूरा कर सकेगी।
बहुत स्पष्ट है कि लैंको इंफ्राटेल के इरादे बुलंद है। इंफ्रास्ट्रक्चर के हर क्षेत्र में सक्रिय यह कंपनी तेजी से बढ़ रही है। वह खुद के साथ ही दूसरों के लिए भी बिजली संयंत्र बनाती है। जैसे, बीती तिमाही में ही उसे मोजर बेयर समूह से 1200 मेगावॉट के बिजली संयंत्र के लिए ईपीसी ऑर्डर मिला है। कंपनी के पास ईपीसी व कंस्ट्रक्शन के 27,520 करोड़ रुपए के ऑर्डर अभी हाथ में हैं।
हालांकि मौजूदा वित्तीय स्थिति को देखें तो इसमें निवेश कोई बहुत आकर्षक नहीं लगता। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर शुद्ध लाभ) 1.52 रुपए है और शेयर 36.95 रुपए के मौजूदा भाव पर 24.57 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। शेयर की बुक वैल्यू मात्र 13.87 रुपए है। कंपनी जिस तेजी से पूंजी निवेश कर रही है, उसमें कर्ज पर उसकी निर्भरता काफी हो गई है। फिर भी भावी संभावनाओं ने इसे आकर्षक बना रखा। शेयर का उच्चतम स्तर 74.70 रुपए (24 अगस्त 2010) रहा है।
कंपनी की कुल इक्विटी 240.78 करोड़ रुपए है जो एक रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। पिछले साल जनवरी तक इसका शेयर 10 रुपए अंकित मूल्य का था। इक्विटी का 67.95 फीसदी भारतीय व विदेशी पवर्तकों के पास है, जबकि एफआईआई के पास इसके 19.84 फीसदी और डीआईआई के पास 3.56 फीसदी शेयर हैं। कंपनी में कम से कम तीन साल साल के नजरिए से निवेश करना निश्चित रूप से फायदे का सौदा साबित होगा।