ला ओपाला का नाम है और काम भी

ला ओपाला क्रॉकरी और कांच व क्रिस्टल बनी चीजों का ऐसा ब्रांड है जिसकी कोई काट बड़ी मुश्किल है। यह ब्रांड क्वालिटी का पर्याय है। इसके सामान महंगे जरूर हैं। लेकिन देश का बढ़ता मध्य वर्ग इन्हें लपककर खरीदता है। इसे बनानेवाली कंपनी है ला ओपला आरजी लिमिटेड। नाम से लगता है जैसे फ्रांस की कोई कंपनी हो। लेकिन यह पूरी तरह देशी कंपनी है। सुशील झुनझुनवाला इसके प्रबंध निदेशक हैं जो राकेश झुनझुनवाला के रिश्तेदार नहीं हैं। राकेश झुनझुनवाला के पास बी ग्रुप की इस कंपनी के कोई शेयर भी नहीं हैं।

असल में 1988 में यह कंपनी बनाने से पहले भी कोलकाता का झुनझुनवाला परिवार दो पीढ़ियों से ग्लास के धंधे में लगा हुआ था। आम इस्तेमाल की ग्लास की चीजें बनाता था जिनकी कीमत 30 रुपए से ज्यादा नहीं होती थी। धंधा एकदम चौकस था, जमाजमाया था। लेकिन इसी दौरान परिवार के सबसे बड़े बेटे सतीश झुनझुनवाला नया कुछ करने की ललक में यूरोप व एशिया के भ्रमण पर निकल गए। कोरिया में बैठे थे, तब उन्हें यूरोप में प्रचलित खास तकनीक से बने दूधिया से दिखते ग्लास का पता चला, जिसे ओपल कहते हैं और जिसे फ्रांस में 18वीं सदी में विकसित किया गया था। बस क्या था! ओपल क्लिक कर गया और झुनझुनवाला परिवार ने नई कंपनी बना डाली। मधुपुर (झारखंड) में ही इसका अलग संयंत्र लगा दिया गया।

फरवरी 1995 में इसका आईपीओ आया था जिसमें उसने अपने दस रुपए अंकित मूल्य के शेयर 40 रुपए मूल्य पर जारी किए थे। बीते हफ्ते शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011 को इसका शेयर बीएसई (कोड – 526947) में 3.85 फीसदी बढ़कर 102.50 रुपए और एनएसई (कोड – LAOPALA) में 4.33 फीसदी बढ़कर 102.45 रुपए पर बंद हुआ है। कंपनी के आईपीओ में निवेश करनेवाले यकीकन आज खुश होंगे क्योंकि उनका निवेश 16 सालों में पांच गुना हो चुका है। कंपनी ने उन्हें पांच साल पहले सितंबर 2006 में एक पर एक के अनुपात में बोनस शेयर दिए थे।

हालांकि यह शेयर एक महीने पहले 7 सितंबर 2011 को 133.50 रुपए की चोटी पर चढ़ने के बाद अब नीचे उतर रहा है। यही इसके पांच साल का भी उच्चतम स्तर है। पिछले 52 हफ्तों में यह नीचे में इसी साल 21 मार्च 2011 को 57.10 रुपए तक जा चुका है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 की जून तिमाही में कंपनी की बिक्री 15.54 फीसदी बढ़कर 23.72 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 62.67 फीसदी बढ़कर 2.44 करोड़ रुपए हो गया। बीचे वित्त वर्ष 2010-11 में उसने 100.82 करोड़ रुपए की आय पर 9.32 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था।

जून तिमाही के नतीजों को मिलाकर उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 9.69 रुपए है। इस तरह उसका शेयर अभी 10.58 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। इसकी समकक्ष कंपनियों में पिरामल ग्लास के स्टॉक का ही पी/ई अनुपात इससे कम 9.28 है। हालांकि पिरामल की बिक्री इससे कई गुना ज्यादा 1250 करोड़ रुपए के आसपास है। इसलिए पिरामल ग्लास में भी निवेश पर विचार किया जा सकता है।

ला ओपाला की बात करें तो इसका शेयर मार्च 2008 के बाद के सबसे कम पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। इसलिए इसमें निवेश करने पर फायदा मिलने की संभावना ज्यादा है। कंपनी का धंधा भी चौकस जा रहा है। पिछले तीन सालों में उसकी बिक्री 14.84 फीसदी और शुद्ध लाभ 21.52 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है। पिछले पांच सालों में उसका धंधा और मुनाफा दोगुना हो चुका है। बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए वह अपनी सालाना उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 12,580 टन करने में जुटी है। वह भारत के साथ ही अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, इटली व मध्य-पूर्व समेत दुनिया के 30 से ज्यादा देशों को निर्यात करती है।

लेकिन इधर समस्या यह आ रही है कि देश के ओपल व क्रिस्टलवेयर बाजार में विदेश के तमाम ब्रांड घुसने की कोशिश में हैं। खासकर चीन व संयुक्त अरब अमीरात से आयातित सस्ते माल कड़ी टक्कर दे रहे हैं। फिलहाल सरकार ने इन दोनों देशों से आयातित ओपलवेयर पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाने का प्रस्ताव रखा है। देखिए, देशी लॉबी सरकार से इस पर अमल करवा पाती है या नहीं।

ला ओपाला एक स्माल कैप कंपनी है। इसका बाजार पूंजीकरण 118.40 करोड़ रुपए है। कंपनी की 10.6 करोड़ रुपए की इक्विटी का 67.28 फीसदी तो प्रवर्तकों ने अपने पास रखा हुआ है। एफआईआई का निवेश इसमें नहीं है, जबकि घरेलू संस्थाओं (डीआईआई) ने इसके 1.87 फीसदी शेयर ले रखे हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 5055 है। इसमें से दस तो प्रवर्तक ही हैं। बाकी चार बड़े शेयरधारकों – ताशा ट्रैवेल्स (2.66 फीसदी), श्रुति मार्केटिंग (2.03 फीसदी), यूटीआई मास्टर वैल्यू फंड (1.87 फीसदी) और किशोरीलाल कतारुका (1.48 फीसदी) के पास उसके 8.05 फीसदी शेयर हैं।

प्रवर्तकों में सबसे ज्यादा 47 फीसदी शेयर जेनेसिस एक्सपोर्ट्स के पास हैं। बाकी 400 शेयर रखनेवाली शकीला बेगम भी दस प्रवर्तकों में से एक हैं। कंपनी के चेयरमैन अमल चंद्र चक्रवर्ती के पास भी प्रवर्तक श्रेणी में कंपनी के 2000 शेयर हैं। अंत में बस इतना कि ला ओपाला लंबे समय के निवेश के लिए अच्छी है। होड़ के बीच कंपनी बढ़ती रही तो अच्छा ही है। होड़ से घबराकर प्रवर्तकों ने दस साल बाद किसी दिन इसे किसी और को बेचने का फैसला कर लिया तो और भी अच्छा है।

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