हम बैंकों की एफडी, डाकघर बचत, पीपीएफ या लघु बचत योजनाओं में जो भी धन जमा करते हैं, उससे सरकार को सस्ता कर्ज मिल जाता है जिससे वह आमदनी से ज्यादा की गई फिजूलखर्ची या अपने राजकोषीय घाटे को पाटती है। इसी क्रम में उसने किसान विकास पत्र (केवीपी) को फिर से ज़िदा किया है। लेकिन खुद वित्त मंत्री जेटली ने बताया है कि यह करेंसी नोटों जैसा एक बियरर प्रपत्र है जिस पर किसी का नाम नहीं होगा। जिसके हाथ, उसी का विकास पत्र।
मजे की बात यह है कि इसे खरीदते समय केवल नाम और पते का प्रमाण दिखाना पड़ेगा, पैन नंबर की कोई ज़रूरत नहीं। गौर कीजिए कि किसी के पास एक करोड़ रुपए हैं तो वह 50,000 रुपए के 200 केवीपी खरीद लेगा और उसके एक करोड़ रुपए सात साल में दोगुने हो जाएंगे। ऊपर से उसे कोई टैक्स भी नहीं देना पड़ेगा। सरकार ने इस तरह संकरी गली से काले धन को पेनाल्टी तो छोड़िए, बगैर टैक्स दिए सफेद करने का मौका दे दिया है। क्या सरकार इस दुरुपयोग को रोकने के लिए ऐसा नहीं कर सकती थी कि केवीपी में एक लाख रुपए या इससे ज्यादा निवेश करने पर पैन नंबर देना ज़रूरी कर देती? कालेधन को मिटाने का नारा देनेवाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार और उसके मुखिया नरेंद्र दारोमर दास मोदी से तो भारतीय जनता ने यही अपेक्षा कर रखी थी।
बता दें कि इस तरह की भी तमाम रिपोर्टें पहले आ चुकी हैं कि प्रधानमंत्री जनधन योजना का व्यापक उपयोग मनी लॉन्ड्रिंग या कालेधन को सफेद बनाने के लिए किया जा रहा है। एक अन्य बात हाल ही में आरटीआई से पता चली है कि 7 नवंबर तक देश में जनधन योजना के तहत खोले गए 7.1 करोड़ बैंक खातों में से 5.3 करोड़ (74.65%) खातों में कोई जमाराशि नहीं है यानी वे ज़ीरो बैलेंस खाते हैं, जबकि बाकी 1.8 करोड़ खातों में करीब 5400 करोड़ रुपए जमा हुए हैं।