यूटीआई म्यूचुअल फंड में चेयरमैन व प्रबंध निदेशक का पद इस साल फरवरी में यू के सिन्हा के पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी का चेयरमैन बन जाने के बाद से ही खाली पड़ा है। इसकी खास वजह है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की निजी सलाहकार ओमिता पॉल इस पद पर अपने भाई जितेश खोसला को बैठाने पर अड़ी हुई हैं, जबकि यूटीआई एसेट मैनेजमेंट कंपनी द्वारा बनाई गई सर्च कमिटी ने खोसला को अनुपयुक्त ठहरा दिया है। अब यूटीआई म्यूचुअल फंड के सामने नई मुसीबत यह आ गई है कि सेबी के ने कह दिया है कि जब तक उसका शीर्ष पद खाली रहता है, तब तक वह कोई नई स्कीम नहीं लांच कर सकता।
खबरों के अनुसार सेबी ने यूटीआई म्यूचुअल फंड को नई स्कीमों की इजाजत नहीं दिए जाने की पुष्टि कर दी है। हालांकि उसने इसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया है। वैसे, सेबी की बेवसाइट से पता चलता कि यूटीआई म्यूचुअल फंड ने पिछले एक साल से ज्यादा वक्त से सेबी के पास किसी नई स्कीम के लिए अर्जी ही नहीं डाली है। सेबी के आदेश का कोई असर म्यूचुअल फंड की पुरानी स्कीमों पर नहीं पड़ेगा। लेकिन इससे वह नए फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (एफएमपी) नहीं पेश कर पाएगा।
बता दें कि यूटीआई म्युचुअल फंड का रोजमर्रा का कामकाज अभी चार अधिकारियों की एक टीम देख रही है। इसमें उसके सीएमओ (चीफ मार्केटिंग अफसर) जयदीप भट्टाचार्य, सीएफओ आई रहमान, इक्विटी प्रमुख अनूप भास्कर और फिक्स्ड इनकम के प्रमुख अमनदीप चोपड़ा शामिल हैं। म्यूचुअल फंड को इधर कर्मचारियों के आंदोलन और बॉम्बे हाईकोर्ट की कार्यवाही का भी सामना करना पड़ रहा है।
यूटीआई एएमसी के पांच शेयरधारक हैं। इनमें से ज्यादा 26 फीसदी हिस्सेदारी अमेरिका की फंड मैनेजमेंट फर्म टी रोवे प्राइस की है। इसके बाद बची 74 फीसदी हिस्सेदारी चार सरकारी वित्तीय संस्थाओं/बैंकों – एलआईसी, पंजाब नेशनल बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा के बीच बराबर-बराबर (हरेक के पास 18.5 फीसदी) बंटी है। केंद्र सरकार इन्हीं चार शेयरधारकों के जरिए अपना फैसला यूटीआई पर थोपना चाहती है। खासकर वित्त मंत्री की सलाहकार ओमिता पॉल अपने भाई जितेश खोसला को रखवाने पर अड़ी हुई हैं। खोसला असम कैडर के आईएएस अफसर हैं और कुछ महीने पहले तक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स में ओएसडी (ऑफिसर ऑफ स्पेशल ड्यूटी) थे।
यूटीआई एएमसी ने नए प्रमुख की तलाश के लिए एक समिति बना रखी है जिसमें पृथ्वी हल्दिया, अनीता रामचंद्रन और जेम्स सेलर रीपे शामिल हैं। इस समिति ने खोसला का नाम खारिज कर दिया है और करीब तीन दर्जन उम्मीदवारों को परखने के बाद दो नामों को छांटा है। इनमें से एक भारत में सक्रिय अमेरिकी म्यूचुअल फंड का प्रबंध निदेशक है, जबकि दूसरा भी भारत में एक अमेरिकी बीमा कंपनी के संयुक्त उद्यम का सीईओ है। लेकिन ओमिता पॉल ने वित्त मंत्रालय के नाम पर ऐसा फच्चर फंसाया है कि सारा मामला अटक गया है।