सार-सार को गहि रहै, थोथा देय उड़ाय!

चींटी तक बराबर बरसात के लिए बचाकर रखती है तो इंसानों की क्या बात! बचाना हमारी फितरत है। लेकिन हम किसी निर्जन जंगल में नहीं, बल्कि देश में रह रहे हैं, जिसमें हर सामाजिक लेन-देन के लिए मुद्रा है। मुद्रा है तो मुद्रास्फीति भी है जिस पर हमारा कोई वश नहीं। इसलिए चाहे-अनचाहे अपनी बचत को मुद्रास्फीति से बचाना हमारी ज़िम्मेदारी बन जाती है। ज्यादा झंझट नहीं पालना तो बैंक एफडी और सरकारी या रिजर्व बैंक के बॉन्ड सुरक्षित साधन हैं। अब म्यूचुअल फंड में एसआईपी भी सही है। इससे बाद सबसे झंझट का तरीका है शेयर बाज़ार में निवेश करना। कपनियां अपने धंधे से बल पर न केवल मुद्रास्फीति को मात देती हैं, बल्कि उससे कई गुना ज्यादा रफ्तार से मुनाफा बढ़ाती हैं जिसके अनुपात में उनके शेयर के भाव बढ़ते हैं तो हमारी बचत का मूल्य भी बढ़ता रहता है। लेकिन सबसे बड़ा पेंच यह है कि अच्छी व सस्ती चल रही संभावनामय कंपनी कैसे चुनें क्योंकि अच्छी कंपनी के शेयर महंगे भाव पर लेने का कोई फायदा नहीं। यहां आकर निवेशक को साधु स्वभाव अपनाना पड़ता है जिसके बारे में कबीर ने कहा है कि साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देय उड़ाय। अब तथास्तु में आज की कंपनी…

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