एक तरफ भारतीय अर्थव्यवस्था की कमज़ोरियां दुनिया के सामने खुलती जा रही है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मूर्खताएं भी जमकर जगजाहिर होने लगी हैं। देश ही नहीं, बाहर भी उनकी जगहंसाई हो रही है। इससे उनसे कहीं ज्यादा भारत की छवि सारी दुनिया में खराब हो रही है। कुछ दिन पहले उन्होंने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक पर तंज कसते हुए कहा कि वे अपने राज्य के जिलों की राजधानियों का नाम नहीं बता सकते। इसके बाद सोशल मीडिया पर मोदी की जबरदस्त खिंचाई हुई कि वे ज़िलों की ‘राजधानियां’ कहां से खोज लाए। इससे पहले वे अचानक एक रैली में बोल पड़े कि अडाणी-अम्बानी ने टेम्पो भर-भरकर कांग्रेस को कालाधन दिया है। इस पर भी उनका खूब मजाक बना कि वे रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवा सकते हैं तो अडाणी-अम्बानी का टेम्पो क्यों नहीं रुकवा सके। मोदी के दशकों पुराने झूठ भी खोद-खोदकर निकाले जा रहे हैं। मोदी ने मई 2019 में एक न्यूज़ चैनल को इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने 1987 में डिजिटल कैमरे से लालकृष्ण आडवाणी की सभा की कलर फोटो खींचकर दिल्ली के अखबारों को ई-मेल से भेज दिया था। लेकिन तब न तो भारत में डिजिटल कैमरा आया था और न ही ई-मेल की शुरुआत हुई थी। मोदी के ऐसे तमाम ऊल-जजूल व झूठे बयानों को आधार बनाकर कहा जाने लगा है कि ऐसा व्यक्ति साल 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने की बात कर रहा है तो इस पर कैसे यकीन किया जाए? अब मंगलवार की दृष्टि…
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