बीते हफ्ते जापान जैसा बड़ा संकट हो गया। फिर भी भारतीय बाजार ने अपनी दृढ़ता व लचीलेपन का परिचय दिया है। निफ्टी 5400 से नीचे नहीं गया। यहां तक कि शुक्रवार को भी इसने बहादुरी से 5400 पर खुद को टिकाने की कोशिश की। लेकिन भारतीय बाजार पर मंदड़ियों के एकजुट हमले और बाजार में गहराई के अभाव के चलते यह 5400 से नीचे 5373.70 पर बंद हुआ।
यह जानामाना सच है कि भारत सरकार को भारतीय अवाम की परवाह नहीं है और वह तमाम उपायों से विदेशी निवेशकों व एफआईआई की राह आसान करने में जुटी है। मुख्य स्टॉक एक्सचेंज, एनएसई में सटॉक्स के डेरिवेटव सौदों में फिजिकल सेटलमेंट के न होने तक एफआईआई व ऑपरेटर मिलकर जब चाहेंगे, हंगामा बरपाते रहेंगे। ऐसे में ट्रेडर व घरेलू निवेशक असहाय हो जाते हैं। घरेलू निवेशकों के साथ समस्या यह है कि तरलता के अभाव के चलते वे कैश सेगमेंट के शेयर भी नहीं खरीद पाते और मजबूरन एफ एंड ओ ट्रेडिंग करते हैं जहां वे बड़ों के खेल के आगे नहीं टिक पाते और बराबर पैसा गंवा रहे हैं।
हालत यह है कि आप सरकारी कर्मचारियों के बीच सर्वेक्षण करा लीजिए, खासकर आयकर विभाग में तो आपको पता चलेगा कि बहुत से अफसर एफ एंड ओ में ट्रेडिंग करते हैं। एनएसई की वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार इन डेरिवेटिव सौदों में 32 फीसदी ओपन इंटरेस्ट एफआईआई का है। बाकी में से बड़ा हिस्सा ऑपरेटरों और कंपनियों का है। महज 5 फीसदी रिटेल और एचएनआई निवेशक हैं जो बड़ों के खेल में गेहूं की तरफ पिस जाते हैं।
सेबी का नियम है कि आप किसी स्टॉक में उसके दिन भर भर के वोल्यूम का 10 फीसदी से ज्यादा हिस्सा नहीं खरीद सकते। सुबह 9.15 बजे जब बाजार खुलता है तो कौन तय कर सकता है कि उस दिन का कुल वोल्यूम कितना रहेगा? क्या इस नियम का मतलब यह नहीं है कि सेबी परोक्ष रूप से गीटबाजों को मौका दे रही है कि वे दिन भर मनमाफिक संख्या को दिमाग में रखकर वोल्यूम खड़ा करें ताकि खिलाड़ी लोग शुरू से ही ऊंचे वोल्यूम के साथ खेल कर सकें।
मसले को समझने के लिए पिछले हफ्ते हरकत में आए स्टॉक टाटा कॉफी का उदाहरण लेते हैं। इसमें गुरुवार को 18 लाख शेयरों का कारोबार हुआ जिसमें से महज 56000 या 3 फीसदी शेयर डिलीवरी के लिए थे। शुक्रवार को इसमें 15 लाख शेयरों को वोल्यूम हुआ जिसमें से मात्र 42000 या 2.7 फीसदी शेयर डिलीवरी के लिए थे। यह सर्कुलर ट्रेडिंग का सटीक उदाहरण है क्योंकि 15 लाख शेयरों के सौदों में से केवल 42000 शेयरों की डिलीवरी की बात व्यावहारिक रूप से असंभव है जबकि इसमें ज्यादातर शेयरधारिता एफआईआई व एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल्स) की है। बडा वोल्यूम देखकर रिटेल निवेशक 1000 रुपए के भाव पर भी खरीदारी कर डालते हैं। फिर किसी दिन स्टॉक गिर जाएगा और निवेशकों की पूंजी स्वाहा हो जाएगी।
सेबी के इस नियम का आशय यकीनन जोड़तोड़ पर रोक लगाना और नियम-कायदे का पालन रहा होगा। लेकिन व्यवहार में इसका जो हश्र हुआ है, उसे देखते हुए ऐसे नियम का क्या मतलब जो बाजार की मूल भावना पर ही आघात करता हो और ऐसा काम करने को प्रोत्साहित करता हो जिनकी कानूनन जरूरत ही नहीं है? अगर सेबी चाहती है कि ऐसी कारस्तानियों की सख्त निगरानी हो तो वह स्टॉक एक्सचेजों से कह सकती है कि दिन में जैसे ही, चाहे सुबह 9.15 बजे या शाम 3.30 बजे, किसी स्टॉक में वोल्यूम 10 फीसदी से ज्यादा हो जाए तो वे फौरन इसकी सूचना खुद-ब-खुद उसे दे दें। इससे रिटेल और वाजिब निवेशक बिना किसी भय के शेयर खरीद पाएंगे। निवेशकों के सौदों को बांधनेवाले ब्रोकर भी राहत की सांस लेंगे और वोल्यूम में उल्लेखनीय सुधार होगा।
सेबी का काम बाजार के व्यवहार और सौदों की निगरानी करना है न कि सौदों की कतर-ब्योंत करना। लेकिन उसके नियम से सौदों पर कृत्रिम रोक लग रही है जिससे सर्कुलर ट्रेडिंग व जोड़तोड़ को बढ़ावा मिल रहा है। इससे बनावटी वोल्यूम खड़ा करने वाले ऑपरेटरों को शह मिल रही है जिन्होंने खास इसके लिए तमाम एकाउंट और पूरा तंत्र बना रखा है। यह मसला तब और अहम हो जाता है जब 1600 कंपनियों में ट्रेडिंग सस्पेंड हो, 1900 कंपनियां इल्लिक्विड हो चुकी हों और 1000 के आसपास कंपनियां ट्रेड फॉर ट्रेड की टी श्रेणी में डाल दी गई हों। इसके बाद ट्रेडिंग के लिए बचती हैं 2500 से 3000 कंपनियां। हमें कागज पर दुनिया का नंबर-एक स्टॉक एक्सचेंज होने की जरूरत नहीं है। लेकिन सच्चे वोल्यूम के बारे में तो हमें यह स्थान पा ही लेना चाहिए।
कैश सेगमेंट में वोल्यूम के सूख जाने की बहुत-सारी वजहें हो सकती हैं। लेकिन प्रमुख वजह यह है कि ब्रोकर ऐसे शेयरों की ट्रेडिंग में दिलचस्पी नहीं लेते जिनमें वोल्यूम नहीं होता। कौन लाएगा यह वोल्यूम? किसी को तो इसकी शुरुआत करनी पड़ेगी। अगर कोई निवेशक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों जैसे स्टॉक्स भी खरीदता है तो ब्रोकर उसे पत्र भेजकर पूछते हैं कि उन्होंने ये शेयर क्यों खरीदे? आपका प्रवर्तक के साथ क्या रिश्ता है? क्या निवेशक को भारत सरकार के साथ अपने रिश्तों पर सफाई देने की जरूरत है? (ऐसे पत्र की कॉपी हमारे पास है)
खैर, इस मसले पर हमने अपने विचार रख दिए। हम पूरी शिद्दत से मानते है कि बाजार नियामक सेबी और सरकार को इस पर गौर करना चाहिए और उचित लगे तो इस नियम को वोल्यूम पर बनावटी सीमा बांधने के बजाय इत्तला देने का कर देना चाहिए। इससे शायद तमाम स्टॉक्स के असली वोल्यूम में सुधार आ जाए।
फिर से बाजार पर वापस आया जाए। चूंकि बाजार (निफ्टी) ने 5400 का स्तर तोड़ दिया है, निवेशकों को अब पिछले निचले स्तर 5185 तक जूझना पड़ सकता है जो अभी करीब 200 अंक दूर है। लीबिया में युद्ध-विराम के बाद अमेरिकी बाजार ने वापसी की है। कच्चे तेल का दाम घटकर 95 डॉलर प्रति बैरल या इससे भी नीचे आ सकता है। अपैल 2011 से विश्व बाजार में 50-60 लाख बैरल की नई सप्लाई आनेवाली है। अभी तो तेल को ऊंचे स्तर पर टिकाए रखने और लीबिया के संकट के मद्देनजर ट्रेडरों ने बटोर-बटोर कर इसकी इनवेंटरी बढ़ा ली है। इन सौदों को काटा गया तो तेल के दाम का गिरना लाजिमी लगता है।
कृष्णा गोदावरी बेसिन के डी-6 ब्लॉक में कम उत्पादन की खबरों के बीच रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) का शेयर 4 फीसदी गिर गया तो अपने साथ बाजार को भी नीचे खींच ले गया। आरआईएल के स्टॉक को सुकून मिलते ही निफ्टी फिर 5400 के ऊपर जाएगा। अगले दो हफ्ते रोलओवर और मार्च के पोर्टफोलियो के समायोजन में चले जाएंगे। इसलिए बाजार की दशा-दिशा में बड़ा अंतर देखने को नहीं मिलेगा। ट्रेडरों को सावधान रहने की जरूरत है, जबकि निवेशक अगले नौ सत्रों को मूल्यवान शेयरों को छांट-छांट कर खरीदने में लगा सकते हैं।