आप बाज़ार का जबरदस्त विश्लेषण कर लें, शानदार स्टॉक्स चुन लें, भयंकर रिसर्च कर लें, तब भी ट्रेडिंग की जंग में जीत की कोई गारंटी नहीं। लगातार पचास मुनाफे के सौदे, पर एक की सुनामी सब बहा ले जाएगी। अच्छा ट्रेडिंग सिस्टम बड़े काम का है। पर बाज़ार अक्सर सिस्टम से बाहर छटक जाता है। स्टॉप लॉस बांधने में टेक्निकल एनालिसिस से मदद मिलेगी। इससे घाटा कम होगा, पर मिटेगा नहीं। घाटा मिटाने का एकमेव सूत्र है 2 फीसदी और 6 फीसदी का अकाट्य नियम।
यह नियम दुनिया भर में देखा-परखा, आजमाया जा चुका है। इसे अलेक्जैंडर एल्डर ने सालों पहले अपनी किताब में विस्तार से दिया था। मैं यहां उसका निचोड़ पेश करने की कोशिश कर रहा हूं। यह कोशिश कितनी कामयाब हुई, यह तो आप ही बताएंगे। वैसे, ट्रेडिंग की पेड सेवा के बीच हर शनिवार को खुला, यह 16वां कॉलम है। बपचन में मां के मुंह से सुना था कि 16 शुक्रवार का व्रत बड़ा फलदाई होता है। लेकिन मुझे नहीं पता कि 16 शनिवार की मेरी मेहनत कितनी सफल हुई है, कितना रंग ला पाई है। खैर, कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
इस सूत्र का मूलाधार है धन का प्रबंधन या Money Management. दो फीसदी के नियम का वास्ता उस धन से है जिसे आपने अपनी बचत से निकालकर ट्रेडिंग के खाते में डाल दिया है। मूल पूंजी जिस पर आप ट्रेड करके कमाना चाहते हैं। यह नियम कहता है कि किसी भी एक ट्रेड में घाटे की सीमा को कुल ट्रेडिंग पूंजी के दो फीसदी से ज्यादा न बढ़ने दें। इससे निर्धारित होता है कि किसी सौदे को आप हाथ लगाएं या नहीं और लगाएं तो आपको अधिकतम कितने शेयरों का सौदा करना चाहिए।
मान लीजिए कि आपकी कुल ट्रेडिंग पूंजी 20,000 रुपए है। आपको एक स्टॉक जम गया जो अभी 20 रुपए पर चल रहा है। तमाम संकेतकों से आपको इस बात की संभावना (probability) ज्यादा लगती है कि वो पंद्रह-बीस दिन में 26 रुपए तक पहुंच जाएगा। 30% का फायदा आपको खींचे जा रहा है। आपने सब कुछ देखभाल कर 18 रुपए का स्टॉप लॉस चुना। सवाल उठता है कि आपके कितने शेयर खरीद सकते हैं?
20,000 रुपए की ट्रेडिंग पूंजी का दो फीसदी बनता है 400 रुपए। इस सौदे में आपने 20 की खरीद पर 18 का स्टॉप लॉस निकाला है। यानी, प्रति शेयर दो रुपए का घाटा। नियम कहता है कि किसी भी ट्रेड में अधिकतम घाटा कुल ट्रेडिंग पूंजी के दो फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इस सौदे में घाटे की अधिकतम सीमा 400 रुपए है। इसलिए आपको इस सौदे में अधिकतम 200 शेयर ही खरीदने चाहिए। यहां यह भी ध्यान में रखें कि दो फीसदी की गणना में आपको दोनों तरफ का ब्रोकरेज़ और एसटीटी वगैरह शामिल करके चलना चाहिए। इसलिए आप 200 के बजाय 150-180 शेयर ही खरीदें तो ज्यादा मुनासिब होगा।
आप सौदे में हर हाल में स्टॉप लॉस और उसके ऊपर इस नियम का पालन करेंगे तो बड़े घाटे से हमेशा बचे रहेंगे। मान लीजिए कि आपने ऊपर बताए गए सौदे में 150 शेयर खरीदे। फायदा हुआ तो 900 रुपए का और घाटा लगा तो 300 रुपए का। यह अपनी ट्रेडिंग पूंजी को सलामत रखने का पहला नियम है। हर महीने की पहली तारीख को देखें कि आपकी ट्रेडिंग पूंजी कितनी है। उसका दो फीसदी निकालें और अनुशासन बांध लें कि किसी भी सौदे में इससे ज्यादा घाटा कतई नहीं उठाना है।
मान लीजिए कि आपने अच्छे सौदे किए और आपकी ट्रेडिंग पूंजी महीने के अंत में 35,000 रुपए की हो गई। तब आप प्रति सौदा 700 का घाटा उठा सकते हैं। अब आप उक्त कंपनी के 350 शेयर खरीद सकते हैं। यह नियम बताता है कि किसी सौदे में आप अपनी ट्रेडिंग पूंजी और स्टॉप लॉस के मद्देनज़र कितने शेयर खरीद/बेच सकते हैं। उससे कम तो हो सकता है। लेकिन उससे ज्यादा कतई नहीं। दारूबाज़ की तरह सीमाएं तोड़ते जाना बुद्धिमान से बुद्धिमान ट्रेडर को बरबाद कर देता है।
यह तो हुई किसी एक सौदे में घाटे की सीमा। दूसरा नियम बताता है कि पूरे महीने के दौरान सारे सौदों में अधिकतम घाटे की सीमा कुल ट्रेडिंग पूंजी की कितनी होनी चाहिए। यह नियम आपको उन चूहों से बचाता है जो थोड़ा-थोड़ा करके आपकी पूरी फसल को, पूरी पूंजी को स्वाहा कर सकते हैं। ध्यान रखें कि मूल पूंजी जब तक सलामत है तभी तक आप ट्रेडिंग कर सकते हैं और बराबर सीखते हुए कमा सकते हैं। बार-बार अपने बचत खाते से धन निकालकर ट्रेडिंग खाते में डालना घर के जेवर बेचकर दारू पीने जैसा है। इसलिए उससे बचें और ट्रेडिंग पूंजी को बराबर बढ़ाने का जतन करें।
यह नियम कहता है कि अगर महीने के दौरान किसी भी दिन आपकी कुल ट्रेडिंग पूंजी पिछले महीने की आखिरी तारीख को खाते में जमाधन से छह फीसदी नीचे तक पहुंच जाए तो बाकी महीने के लिए फौरन ट्रेडिंग रोक दें। बाकी दिन कुछ भी करें, ट्रेडिंग न करें। हर दिन शाम को बाज़ार बंद होने के बाद हिसाब-किताब करें कि आपके खाते में कुल कितना कैश है और कितनी ओपन पोजिशंस है। अगर इनका कुल मूल्य पिछले महीने के अंत तक जमाधन से छह फीसदी तक घट चुका है या घटने जा ही रहा है तो अगले दिन सुबह बाज़ार खुलते ही सारी पोजिशंस बंद कर दें। कसम खा लें कि महीने के बाकी दिनों में ट्रेडिंग को हाथ नहीं लगाना है। 20,000 रुपए की पूंजी 19 तारीख को घटकर 18,800 रुपए तक आ गई तो बाकी महीने के लिए ट्रेडिंग से तौबा कर लें। जो होगा, अब अगले महीने की पहली तारीख से देखिएगा।
हां, इस दौरान आप जरूर बाज़ार को देखते रहें। अपने पसंदीदा स्टॉक्स और इंडीकेटरों की चाल को परखते रहे। अपने ट्रेडिंग सिस्टम की समीक्षा करें। किताबें पढ़ें। चिंतन-मनन करें। पता लगाने की कोशिश करें कि इस तरह छह फीसदी पूंजी गंवा देने की वजहें क्या रहीं? कहां-कहां चूक हुई? मालूम हो कि निवेश से जुड़ी संस्थाओं – बैंकों, म्यूचुअल फंड व एफआईआई वगैरह में बाकायदा एक सुपरवाइज़र निगरानी रखता है कि ट्रेडर महीने की सीमा के बाहर तो नहीं गया। अगर गया तो बाकी दिन उससे कोई ट्रेडिंग नहीं कराई जाती। छह फीसदी का नियम उसी तरह का अनुशासन है जो निजी ट्रेडरों को बहकने और बरबाद होने से बचाता है।
इन दोनों नियमों को एक नए उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए, महीने के अंत में आपने हिसाब-किताब लगाया कि आपकी कुल ट्रेडिंग पूंजी 1,00,000 रुपए है और कोई ओपन पोजिशंस नहीं है। आपने गिना कि प्रत्येक सौदे पर अधिकतम घाटे की दो फीसदी सीमा 2000 रुपए और पूरे खाते में घाटे की अधिकतम सीमा, 6 फीसदी यानी 6000 रुपए।
पहले आपने एक स्टॉक देखा और 2000 की सीमा में उसके दो सौ, चार सौ शेयर खरीद लिए। कुछ दिनों बाद ऐसा ही कोई मौका दिखा और उसमें भ 2000 की सीमा को देखते हुए आपने सौ, दो सौ शेयरों का सौदा कर डाला। इसके बाद फिर अच्छा मौका दिखा और उसमें भी 2000 की सीमा बांधकर आपने हाथ डाल दिया। अब कुछ ही बाद एक और बेहद आकर्षक सौदा आपको दिखता है। क्या उसमें आपको हाथ डालना चाहिए क्योंकि आप 6000 रुपए की सीमा पहले ही सोख चुके हैं? कतई नहीं। 6 फीसदी की लक्ष्मण रेखा तोड़ेगे तो सारी पूंजी इसी तरह धीरे-धीरे करके रावण हर ले जाएगा।
लेकिन मान लीजिए कि पहले सौदे वाला स्टॉक इतना बढ़ जाता है कि 2000 रुपए घाटे की सीमा स्टॉप लॉस को उठाने से बराबर हो गई और उसकी कोई जरूरत नहीं रही, तब? तब आप चौथा सौदा भी 2 फीसदी की तय सीमा में कर सकते हैं क्योंकि अब आपकी 6 के बजाय 4 फीसदी ट्रेडिंग पूंजी ही दांव पर लगी है। इस दौरान किसी सौदे में घाटा लग गया तो महीने के दौरान अगला सौदा नहीं किया जा सकता। इस तरह पुराने सौदों की ताज़ा स्थिति को देखते हुए 6 फीसदी की सीमा के भीतर नए-नए सौदे किए जा सकते हैं। इन नियमों को समझने की कोशिश कीजिएगा। कठिन नहीं, आसान हैं। हां, इनका पालन जरूर आपको काफी कठिन लगेगा।
दो फीसदी और छह फीसदी का नियम जीते हुए सौदों की तह या पिरामिड बनाने में भी मददगार है। मान लीजिए कि आपको कोई स्टॉक खरीदा। वो बढ़ गया और आपके स्टॉप लॉस का स्तर ब्रेक-इवेन के ऊपर कर दिया तो अब इस नियम की सीमा में आप उसी स्टॉक के और भी शेयर खरीद सकते हैं। असल में हम सभी भावना के झूलों पर झूलते हैं। शेयर बढ़ गया तो सातवें आसमान पर और गिर गया तो सीधे पाताल में। लेकिन भावनाओं का यह झूला ट्रेडिंग से कमाई के लिए प्राणघातक है। कमाई के लिए अनुशासन जरूरी है। दो और छह फीसदी का यह नियम आपके इसी अनुशासन का आधार बने, यही कामना करता हूं। बाकी मर्जी आपकी। ध्यान रखें कि ट्रेडिंग में किसी अल्लाह, किसी भगवान की कोई मर्जी नहीं चलती।