जब नीयत गलत हो, मंशा में खोट हो तो बड़ी-बड़ी बातों व दावों का कोई मतलब नहीं रह जाता। नौ साल से केंद्र की सत्ता में विराजमान और अगले पांच साल तक सत्ता पाने का यकीन रखनेवाली मोदी सरकार को किसी दूसरे पर यकीन नहीं। वह अपनी सत्ता में बनाए रखने की कुव्वत रखनेवाले चंद लोगों की ही सुनती है और उन पर कोई आंच न आए, इसी की गारंटी देती है। इसके लिए उसने जांच एजेंसियों से लेकर चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट तक को अपनी मुठ्ठी में कर रखा है। पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी तक कानूनी नुक्ता निकाल कर सरकार के चहेतों को बेशर्मी से बचाती रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कल अडाणी-हिण्डेनबर्ग मामले में जांच का सारा दारोमदार उसी सेबी पर डालकर किनारा कस लिया। अब न तो सच सामने आएगा और न ही हमारे वित्तीय बाज़ार की साफ-सफाई हो पाएगी। कुछ दिनों पहले कोटक महिंद्रा समूह के संस्थापक उदय कोटक ने वित्तीय सेवाओं के ‘नौकरशाही-करण’ पर चिंता जताते हुए कहा था कि इस ‘रोबोटिक’ अंदाज़ से उद्यमशीलता घुटकर रह जाएगी। उनका कहना था कि ऋण और इक्विटी पर टैक्स दरों को लेकर भी सरकारी नीति एकदम गलत है। साथ ही शेयरधारक बिजनेस के पार्टनर हैं तो लाभांश पर ऊपर से अलग टैक्स क्यों? अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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