भारतीय रिजर्व बैंक के वरिष्ठतम डिप्टी गवर्नर के सी च्रकवर्ती ने कहा है कि समावेशी बैंकिंग अनेक इलाकों में पहले ही लाभप्रद हो चुकी है। उन्होंने कहा है कि धनी लोगों के बजाय गरीब लोगों के साथ व्यवसाय या बैंकिंग हमेशा अपेक्षाकृत अधिक लाभप्रद या व्यवहार्य रहती है। उन्होंने इस तथ्य की ओर इशारा किया कि जहां कॉरपोरेट क्षेत्र को बैंकों से 7-8 फीसदी ब्याज पर कर्ज मिल जाता है, वहीं माइक्रो फाइनेंस संस्थाएं गरीबों को 60 फीसदी ब्याज पर कर्ज देती हैं।
च्रकवर्ती ने समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट से कहा, “अनेक स्थानों पर वित्तीय समावेश के तहत खोले गए शून्य बैलेंस खाते पहले ही लाभ में हैं। जब ये लोग सौदे सही ढंग से करने में सक्षम होंगे तो इस तरह के खाते बैंक को लाभ देंगे और अनेक ऐसे खातों में पहले ही लाभ हो रहा है।”
बता दें कि रिजर्व बैंक में वित्तीय समावेश का कार्य्रकम च्रकवर्ती की ही देखरेख में चल रहा है। उन्होंने सारे बैंकिंग उद्योग के लिए समावेश बैंकिंग परियोजना की लागत लगभग 6000 करोड़ रुपए रहने का अनुमान लगाया और कहा, “मेरी गणना है कि सभी लक्षित गांवों तक इस बैंकिंग कार्य्रकम की पूरी लागत 6000 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होगी।”
उन्होंने बैंकों को चुनौती दी कि वे यह साबित करें कि समावेशी बैंकिंग लाभदायक नहीं है। उन्होंने कह कि जब कोई बैंक एक साथ तीन-चार उत्पाद उपलब्ध कराने में सक्षम है तो वह लाभदायक हो सकता है। बैंक अगर उचित प्रौद्योगिकी, डिलीवरी मॉडल और उचित उत्पाद का उपयोग करते हैं तो समावेशी बैंकिंग आसानी से लाभप्रद होगी।
उल्लेखनीय है कि मंगलवार को मुंबई में आयोजित एक कार्य्रकम को संबोधित करते हुए चक्रवर्ती ने बैंकों से कहा था कि वे कागज-रहित, चेक-रहित और कैश-रहित बैंकिंग की ओर बढें क्योंकि भविष्य की बैंकिंग की राह वहीं खुलेगी। उन्होंने कहा, “हमारे बैंकों के लिए अगली बड़ी चुनौती बैंकिंग को कागज-रहित, चेक-रहित और कैश-विहीन बनाना है।”