अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में की गई 0.50 फीसदी की कटौती रास नहीं आई है। उसने बुधवार को भारत पर जारी अपने खास वक्तव्य में कहा है कि रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति में किसी भी वृद्धि को थामने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने को तैयार नहीं रहना चाहिए। उसका कहना है कि भारत को वाजिब विकास दर को हासिल करने के लिए आर्थिक सुधारों को गति देने की जरूरत है।
आईएमएफ में भारत की बढ़ती महंगाई पर विशेष चिंता जताई है। वह नहीं मानता कि भारत की आर्थिक विकास दर में आई कमी की वजह ऊंची ब्याज दरें हैं। उसके मुताबिक भारत के आर्थिक ढांचे से जुड़े कारकों के लिए ब्याज दरों को जिम्मेदार मानना मुश्किल है। आईएमएफ ने 2012-13 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर सात फीसदी रहने का अनुमान लगाया है जो साल 2010-11 की विकास दर 8.4 फीसदी से कम है।
आईएमएफ का कहना है कि महंगाई आनेवाले दिनों में घटेगी। फिर भी यह रिजर्व बैंक के लक्ष्य से ऊपर ही रहेगी। उसके बयान में कहा गया है, “भारत के साथ प्रमुख समस्या यह है कि अगर सरकार की मंजूरी देने की प्रक्रिया तेज नहीं होती, सुधारों को लागू नहीं किया जाता, महंगाई की दर ऊंची बनी रहती है तो पहले से कमजोर हो रहा निजी निवेश और ज्यादा घट जाएगा।”
पूरी दुनिया को कर्ज देनेवाली संस्था आईएमएफ का मानना है कि आर्थिक सुधार और वित्तीय एकीकरण, विकास के रास्ते की रुकावटों से निपटने के लिए जरूरी हैं और इसी से महंगाई भी घटेगी। असल में जब दुनिया भर के देशों में जब मंदी का दौर चल रहा है, तब चीन और भारत ही दुनिया की उम्मीद हैं। ऐसे में अगर भारत की अर्थव्यवस्था अपनी पूरी क्षमता से आगे नहीं बढ़ती तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हैरानी स्वाभाविक है। बीते साल में भ्रष्टाचार और महंगाई ने आर्थिक दुनिया पर निगाह रखने वालों की चिंता बढ़ा दी है।