संजय लालभाई का समूह कंपनियों के ऐसे नाम रखता है जैसे बेटों का नाम रख रहा हो। अनिल, अतुल, अमोल, अरविंद। जी हां, इस समूह की बहुत पुरानी कंपनी है अरविंद लिमिटेड। किसी नाम की मोहताज नहीं। डेनिम में दबदबा है। जहां ली, रैंगलर, ऐरो व टॉमी हिलफिगर जैसे अंतरराष्ट्रीय ब्रांड भारत में इसी कंपनी के जरिए चलते हैं, वहीं फ्लाइंग मशीन, न्यूपोर्ट, एक्ज़ालिबर और रफ एंड टफ इसके अपने ब्रांड हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कंपनी का गठन 1931 में महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन की प्रेरणा से हुआ था। सोचिए, उस वक्त दुनिया महामंदी की गिरफ्त में थी। तब तीन गुजराती भाइयों – कस्तूरभाई, नरोत्तमभाई और चिमनभाई ने इंग्लैंड से मशीन खरीदकर टेक्सटाइल कंपनी लगाने का दुस्साहस किया था।
इस समय अरविंद लिमिटेड की हालत ठीक नहीं चल रही। यह सच है कि दिसंबर 2011 की तिमाही में कंपनी का शुद्ध लाभ साल भर पहले के 31.42 करोड़ रुपए की अपेक्षा 659.39 फीसदी बढ़कर 249.91 करोड़ रुपए हो गया। लेकिन इसमें से 197.94 करोड़ रुपए तो उसे अपने संयुक्त उद्यम वीएफ अरविंद ब्रांड्स प्रा, लिमिटेड की हिस्सेदारी बेचने से मिले हैं। अन्यथा उसका शुद्ध लाभ 65.40 फीसदी बढ़कर 51.97 करोड़ रुपए पर ही पहुंचता।
सबसे बड़ा संकट यह है कि कंपनी पर इस समय 2174 करोड़ रुपए का कर्ज है। कंपनी की इक्विटी 254.40 करोड़ रुपए है, जबकि उसके पास 1235.25 करोड़ रुपए के रिजर्व हैं। इस तरह उसकी नेटवर्थ हुई 1489.65 करोड़ रुपए और ऋण-इक्विटी अनुपात हुआ करीब 1.46 : 1 का, जिसे कतई अच्छा नहीं माना जा सकता। हालांकि यह अनुपात साल भर पहले 1.68 : 1 का था। इसलिए स्थिति सुधरती हुई दिख रही है। ऋण के बोझ के चलते कंपनी का बड़ा खर्ज ब्याज की अदायगी में चला जाता है। जैसे, दिसंबर 2011 की तिमाही में उसने 101.09 करोड़ रुपए का ब्याज चुकाया है, जबकि असामान्य मद को छोड़कर उसका शुद्ध लाभ 51.97 करोड़ रुपए ही था। दिसंबर तक के नौ महीनों में उसने 257.14 करोड़ रुपए का ब्याज चुकाया है, जबकि सामान्य मुनाफा 171.95 करोड़ रुपए का रहा है।
कर्ज का यह बोझ कंपनी के शेयर को ज्यादा उठने नहीं दे रहा है। पिछले साल अप्रैल में 80 रुपए की रेंज में था। कल, 2 अप्रैल 2012 को इसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 500101) में 83.05 रुपए और एनएसई (कोड – ARVIND) में 82.90 रुपए पर बंद हुआ है। यह शेयर एफ एंड ओ में शामिल है। कल इसका अप्रैल का फ्यूचर्स 83.90 रुपए बोला गया है। इस बीच यह शेयर 1 नवंबर 2011 को 111.15 रुपए का शिखर और 19 अगस्त 2011 को 61.90 रुपए का बॉटम पकड़ चुका है।
बार-बार बाजार में चर्चा उठती रही है कि कंपनी के पास अहमदाबाद में सैकड़ों एकड़ जमीन है जिसे बेचकर वह अपने ऋण का बोझ हल्का कर लेगी। हाल ही में कंपनी प्रबंधन ने भी कहा कि अगले चार सालों में जमीन बेचकर करीब 1000 करोड़ रुपए जुटाए जाएंगे। यकीनन कंपनी कर्ज का बोझ हल्का कर ले तो उसकी लाभप्रदता और बढ़ जाएगी। लेकिन ऐसा कब तक और कैसे हो पाएगा, यह स्पष्ट नहीं है। इस दौरान कंपनी अगर संयुक्त उद्यमों से निकलकर धन जुटा रही है तो उससे उसका समेकित धंधा भी तो घट रहा है।
कंपनी का मुख्य धंधा टेक्सटाइल्स का है और इसमें भी अधिकांश बिक्री डेनिम से आती है। कंपनी इधर बराबर अपना परिचालन लाभ मार्जिन सुधार रही है। कपास की कम कीमतों का भी इसमें योगदान है। लेकिन इधर कपास का निर्यात रोकने और फिर शुरू करने से कपास की कीमतों पर दबाव बढ़ा है। दूसरे महंगे कपास की इनवेंटरी की लागत भी कंपनी को झेलनी पड़ेगी। इसलिए शायद इस स्टॉक को लेकर अगले कुछ महीनों तक बहुत उत्साह की स्थिति न रहे।
हां, बता दें कि कंपनी पर कर्ज का जो बोझ बढ़ा है उसकी एक वजह रिटेल धंधे को बढ़ाने के लिए लिया गया कर्ज है। सोचिए, कंपनी ने 2006-07 से 2010-11 के बीच अपने रिटेल स्टोरों की संख्या पांच गुना बढ़ाकर 204 कर ली। इधर कंपनी फिर रिटेल के विस्तार की सोच रही है। साथ ही फैब्रिक उत्पादन की क्षमता भी बढ़ाने पर विचार कर रही है। धंधे में विस्तार जरूरी होता है। नहीं तो ठहराव आपको निकल जाता है। लेकिन कर्ज की फांस किसी भी कंपनी के लिए बहुत खतरनाक होती है।
ऐसे में हम तो कहेंगे कि बड़े कलेजे वाले ही अरविंद में निवेश करें। वो भी कम से कम चार से पांच साल का नजरिया लेकर। बाकी लोग दूर रहें। कंपनी का शेयर इस समय समेकित मुनाफे के आधार पर 11.08 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है, जबकि केजी डेनिम का शेयर 5.43, आरवी डेनिम्स का शेयर 4.14 और आलोक टेक्सटाइल्स का शेयर 5.26 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। वैसे भी कंपनी का इक्विटी पर रिटर्न 10.88 फीसदी और नियोजित पूंजी पर रिटर्न 11.62 फीसदी है।
कंपनी की इक्विटी में प्रवर्तकों का हिस्सा 43.38 फीसदी है जिसका 0.41 फीसदी हिस्सा ही उन्होंने गिरवी रखा हुआ है। एफआईआई ने कंपनी के 14.71 फीसदी और डीआईआई ने 18.38 फीसदी शेयर ले रखे हैं। डीआईआई ने सितंबर से दिसंबर तिमाही के बीच अपनी हिस्सेदारी 2.11 फीसदी से बढ़ाकर 18.38 फीसदी है जिसमें बड़ा योगदान ऋणों को इक्विटी में बदलने का रहा होगा। अरविंद पर कर्ज का भारी दबाव है जिससे वह मुक्त होने की कोशिश में लगी है। अब यह पूरी तरह आप पर है कि आप लालभाई के इस लाल पर दांव लगाएंगे या नहीं। वैसे, समझ में नहीं आता कि कंपनी राइट्स इश्यू के जरिए क्यों नहीं धन जुटाकर ऋण का बोझ हल्का कर देती?