हवा-हवाई दावे बिखरते हैं तो हवामहल धराशाई हो जाता है। दावा करनेवाले उड़कर भाग जाते हैं, जबकि जनता के पास त्राहि-त्राहि करने के सिवाय कोई चारा नहीं रहता। भारतीय अर्थव्यवस्था के ताजा हाल को देखकर कभी-कभी ऐसी ही आशंका दिल दहलाने लगती है। यकीनन शेयर बाज़ार चढ़ा जा रहा है। लेकिन वह आज के यथार्थ नहीं, कल की संभावनाओं पर उछलता है और वह भी दावों व वादों पर। जिनको इस पर शक हो, वे 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट याद कर लें। जिन्हें क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने ‘एए+’ से लेकर ‘एएए’ तक की शीर्षतम रेटिंग दे रखी थी, वैसे लेहमान ब्रदर्स जैसे वित्तीय संस्थान ताश के पत्तों की तरह ठह गए। अभी एस एंड पी ग्लोबल ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा कि साल 2030 तक भारत का दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना इस पर निर्भर है कि वह मैन्यूफैक्चरिंग का अगला बड़ा वैश्विक हब बनने के अपार अवसर को पकड़ता है या नहीं। अगर वह मजबूत लॉजिस्टिक्स फ्रेमवर्क विकसित करे और डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ उठाए तो सेवाओं के प्रभुत्व से आगे बढ़कर मैन्यूफैक्चरिंग की प्रमुखता वाली अर्थव्यवस्था बन सकता है। लेकिन जब एमएसएमई क्षेत्र तबाह, नौजवान हताश, तब ऐसा कैसे हो पाएगा? अब बुधवार की बुद्धि…
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