जो भी नई सरकार बने, उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए कि अर्थव्यवस्था को झांकी से स्थिति से उबार कर मजबूत धरातल पर खड़ा किया जाए ताकि समाज में विसंगति व असंतुलन खत्म किया जा सके। असल में मोदी सरकार ने झांकी बनाने के चक्कर में पिछले दस साल में अर्थव्यवस्था को विचित्र दुष्चक्र में फंसा दिया है। कहने को अर्थव्यवस्था तेज़ गति से बढ़ रही है। अभी दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। चार-पांच साल में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। लेकिन यह सारी चमक अवाम से अधिकतम टैक्स वसूल कर सरकार का पूंजीगत खर्च बढ़ाकर हासिल की गई है। जीएसटी संग्रह बराबर बढ़ रहा है। लेकिन यह टैक्स अंततः आम लोग देते हैं। कॉरपोरेट क्षेत्र, कंपनियां या व्यापारी तो इसकी वसूली का ज़रिया भर हैं। वे उपभोक्ता के बतौर अपनी निजी खपत पर ही जीएसटी देते हैं। व्यक्तिगत इनकम टैक्स संग्रह कई साल से कॉरपोरेट टैक्स संग्रह से ज्यादा चल रहा है। उधर, सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर पर पूंजीगत खर्च बढ़ा रही है जिस पर भाजपा को इलेक्टोरल बॉन्ड से जमकर कमीशन मिला है। लेकिन निजी निवेश ही नहीं, निजी खपत तक ठंडी पड़ी है। इन दोनों में गरमी लाए बगैर अर्थव्यवस्था का पुण्यचक्र नहीं शुरू होगा। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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