छल-छद्म, झूठ, तिकड़म और विज्ञापन से राजनीति में झांसा दिया जा सकता है। लेकिन अर्थनीति में नहीं। इसमें बड़े-बड़े विज्ञापन देकर और झूठ बोलकर भी सच को छिपाया नही जा सकता। कुछ दिन पहले अखबारों में मोदी के साथ नौजवान लड़कों व लड़कियों का फोटो लगाकर पूरे पेज़ के विज्ञापन में दावा किया गया कि नौ साल में 1.59 लाख से ज्यादा स्टार्ट-अप बने हैं। इन्हें करीब ₹13 लाख करोड़ की फंडिंग मिली और इनमें सीधे-सीधे 17.2 लाख से ज्यादा नौकरिया मिली हैं। प्रति स्टार्ट-अप केवल 11 नौकरियां और एक नौकरी बनी ₹1.18 करोड़ लगाकर! खैर, उसी दिन मोदी सरकार के विज्ञापनी अभियानों से लेकर जी-20 तक के शेरपा और नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत ने एक लेख में बताया कि अभी देश में 1.30 लाख ही स्टार्ट-अप हैं और उन्हें विदेशी वेंचर कैपिटल व प्राइवेट इक्विटी से ही सीमित फंडिंग मिली, जिसकी रकम 2021 में शीर्ष पर पहुंचने बाद काफी घट चुकी है। उन्होंने बायजूज़, डन्ज़ो व भारतपे जैसे कई नामी स्टार्ट-अप के कॉरपोरेट कुप्रबंधन व विफलता का मुद्दा भी उठाया। हकीकत यह है कि आईबीएम की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 90% स्टार्ट-अप गठन के पांच साल के भीतर ही ध्वस्त हो जा रहे हैं। आखिर एआई, मशीन लर्निंग व बिग डेटा पर ही केंद्रित स्टार्ट-अप चल भी कितने सकते हैं? अब सोमवार का व्योम…
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