चीन सरकार द्वारा घोषित किया गया 1.4 लाख करोड़ डॉलर का पैकेज़ डेढ़ महीने के भीतर उठाया गया दूसरा बड़ा कदम है। इसका लगभग 60% हिस्सा स्थानीय सरकारों को छिपे हुए ऋणों से मुक्ति दिलाने के लिए है। इससे पहले वहां की सरकार बैंकों के लिए ज्यादा धन और घर खरीदनेवालों को टैक्स में रियायत दे चुकी है। वेल्थ व निवेश प्रबंधन में लगी वैश्विक वित्तीय फर्म नोमुरा का आकलन है कि चीन का वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज अगले कुछ सालों में वहां के जीडीपी के 2-3% तक पहुंच सकता है। यह निश्चित रूप से भारत जैसे दुनिया के अन्य उभरते बाज़ारों को विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए कम आकर्षक बना देगा। इसका सीधा असर भारतीय शेयर बाज़ार और विदेशी मुद्रा बाज़ार पर पड़ेगा। चीन के वित्त मंत्रालय का कहना है कि स्थानीय सरकारों के छिपे हुए ऋणों के प्रति उसकी नीति ‘ज़ोरी टॉलरेंस’ की रहेगी। साथ ही अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने के लिए टैक्स में रियायत देने जैसे तमाम कदमों का सिलसिला बदस्तूर जारी रहेगा। इसे देखकर ही वैश्विक निवेशकों ने अंततः ‘सेल इंडिया, बाय चाइना’ की नीति अपना ली है। अब बुधवार की बुद्धि…
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