समय कितना बेरहम और भविष्य कितना अनिश्चित है! एनडीटीवी के अधिग्रहण के बाद जब हर तरफ अडाणी समूह की तूती बोल रही थी, उसकी शीर्ष कंपनी अडाणी एंटरप्राइसेज़ का 20,000 करोड़ रुपए का ऐतिहासिक एफपीओ (फॉलो-न पब्लिक ऑफर) आने ही वाला था, समूह के मुखिया गौतम अडाणी घूम-घूमकर मीडिया को इंटरव्यू दे रहे थे कि वे कितने ज़मीन से उठे उद्यमी और लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखनेवाले व्यक्ति हैं (यहां तक कि कुछ लोग दबी जुबान से कहने लगे थे कि वे भारत के अगले राष्ट्रपति बनाए जा सकते हैं), तभी न्यूयॉर्क से चलाई जा रही शेयर बाज़ार के निवेश से जुड़ी एक मामूली फर्म हिण्डेनबर्ग रिसर्च ने दो साल की गहन तहकीकात और मशक्कत से बनी रिपोर्ट जारी कर अडाणी की सोने की लंका में आग दी। हिण्डेनबर्ग की 106 पेज़ की रिपोर्ट का शीर्षक है – अडानी समूह: कैसे दुनिया का तीसरा सबसे अमीर आदमी कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला कर रहा है। फिर तो दिन-प्रतिदिन अडाणी समूह के पैरों तले ज़मीन घिसकती गई और गौतम अडाणी दुनिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में फिसलते चले गए। मामला इतना विकराल हो गया कि इसकी गूंज भारतीय संसद तक पहुंच गई।
हालत यह हो गई कि अडानी समूह को खुद बचाने के लिए किसी कुशल राजनीतिज्ञ की तरह राष्ट्रवाद का सहारा लेना पड़ा। अडाणी एंटरप्राइसेज़ ने अखबारों में पूरे-पूरे पेज़ का विज्ञापन देकर दावा किया है कि उसका फोकस राष्ट्र निर्माण पर है और वह ‘आत्मनिर्भर भारत’ से ‘भारत पर निर्भर विश्व’ की भारतीय राष्ट्रीय आकांक्षा के साथ कदम से कदम मिलाकर काम कर रही है। समूह का आधिकारिक बयान है कि हिण्डेनबर्ग की रिपोर्ट भारत, उसकी संस्थाओं और भारत की विकासगाथा पर ‘सुनियोजित हमला’ है। सवाल उठता है कि क्या सत्यमेव जयते की बुनियाद पर खड़ा भारत राष्ट्र और उसकी विकासगाथा इतनी कमज़ोर है कि वह किसी एक कॉरपोरेट समूह पर तथ्यों व आंकड़ों के साथ पेश किए गए सच से ठह जाएगी? हिण्डेनबर्ग की गणना के मुताबिक अडाणी समूह ने अपनी कंपनियों के शेयरों को चढाकर और एकाउंटिंग में धांधली से कुल 218 अरब अमेरिकी डॉलर (करीब 17.81 लाख करोड़ रुपए, भारत के 39.45 लाख करोड़ रुपए के सालाना बजट के आधे से थोड़ा ही कम) का फ्रॉड किया है। इस रिपोर्ट की पांच खास बातें इस प्रकार हैं:
- अडाणी समूह अतीत में भारत सरकार द्वारा की गई फ्रॉड संबंधी चार प्रमुख जांचों का केंद्र रहा है। इनमें मनी लॉन्ड्रिंग, करदाताओं के धन की चोरी और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं। जांच के दायरे में आ चुके ये चार फ्रॉड ही अनुमानित रूप से 17 अरब अमेरिकी डॉलर (1,38,720 लाख करोड़ रुपए) के हैं। अडाणी परिवार के सदस्यों ने मॉरीशस, यूएई और कैरेबियन द्वीप समूह जैसी टैक्स-हैवन में शेल कंपनियां बनाने में कथित रूप से सहयोग किया और उनके जरिए फर्जी या अवैध टर्नओवर दिखाने और भारत में लिस्टेड कंपनियों से धन निकालने के लिए जाली आयात/निर्यात दस्तावेज तैयार किए।
- भारत में सार्वजनिक रूप से लिस्टेड कंपनियाँ को नियमतः प्रवर्तकों की शेयरधारिता (जिसे अमेरिका में इनसाइडर होल्डिंग्स के रूप में जाना जाता है) का खुलासा करना आवश्यक है। नियमतः यह भी ज़रूरी है कि शेयरों के भावों से खिलवाड़ और इनसाइडर ट्रेडिंग को थामने के लिए लिस्टेड कंपनियों की कम से कम 25% शेयरधारिता गैर-प्रवर्तकों या पब्लिक के पास हो। अडाणी समूह की मूल सात लिस्टेड कंपनियों में से चार कंपनियां प्रवर्तकों की ज्यादा शेयरधारिता के चलते डीलिस्टिंग की कगार पर हैं।
- हिण्डेनबर्ग को अपनी रिसर्च से पता चला है कि अडाणी समूह से जुड़ी ऑफशोर शेल कंपनियां व फंड अडाणी की लिस्टेड कंपनियों के सबसे बड़े पब्लिक (गैर-प्रवर्तक) शेयरधारकों में शामिल हैं। अगर भारतीय पूंजी बाज़ार नियामक, सेबी के नियम लागू कर दिए जाएं तो इन कंपनियों को डीलिस्ट किया जा सकता है।
- अडाणी की कंपनियों में धन लगानेवाले तमाम ‘पब्लिक’ फंडों में भयंकर अनियमितताएं हैं, मसलन (1) वे मॉरीशस या भारत से बाहर की शेल/फर्जी इकाइयां हैं। (2) नामित निदेशकों के ज़रिए उनका असली स्वामित्व छिपा लिया गया है। (3) इनका लगभग सारा निवेश अडाणी समूह की ही लिस्टेड कंपनियों में है। सेबी सितंबर 2022 में अडाणी समूह के मॉरीशस संबंधी एक मामले की जांच कर रही थी। लेकिन अभी तक समूह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
- हिण्डेनबर्ग ने सेबी के पास कुछ आरटीआई अनुरोध दाखिल किए थे। इन पर मिले जवाब से पुष्टि होती है कि अडाणी की कंपनियों में निवेश करनेवाले ऑफशोर फंडों की जांच चल रही है। इन मसलों को डेढ़ साल से ज्यादा वक्त पहले मीडिया और कुछ सांसदों ने उठाया था।
असल में पूरा खेल यह है कि गौतम अडाणी और उनके परिजनों ने विदेशी टैक्स-हैवन में फर्में बनवा कर भारत में अपनी लिस्टेड कंपनियों में शेयर बाज़ार के जरिए निवेश करवाया और इनके शेयरों को जमकर चढ़ाया। 24 जनवरी 2023 को हिण्डेनबर्ग की रिपोर्ट आने से पहले तक पिछले तीन सालों में अडाणी एंटरप्राइसेज़ का शेयर 1398%, अडाणी ट्रांसमिशन का शेयर 729%, अडाणी टोटल गैस का शेयर 2121%, अडाणी ग्रीन एनर्जी का 908%, अडानी पावर का 332% और अडाणी पोर्ट्स का शेयर 98% बढ़ा है। वहीं, फरवरी 2022 में आईपीओ लाने के बाद लिस्ट हुई अडाणी विलमार का शेयर एक साल में 149% बढ़ा है। इससे कंपनियों का बाज़ार पूंजीकरण या मूल्य बढ़ गया जिसे दिखाकर समूह ने बैंकों से बढ़-चढ़कर ऋण लिया।
पिछले तीन सालों के दौरान जब अडाणी समूह की कंपनियों के शेयर चढ़ाए जा रहे थे, तब समूह द्वारा लिया गया कुल ऋण 1 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 2.1 लाख करोड़ रुपए हो गया। 20,000 करोड़ रुपए का एफपीओ लानेवाली कंपनी अडाणी एंटरप्राइसेज़ पर ही 40,023.50 करोड़ रुपए का ऋण है और एफपीओ से मिले धन में से 4165 करोड़ रुपए से ऋण का एक हिस्सा उतारा जाएगा। वैसे, वैश्विक ब्रोकरेज़ फर्म सीएलएसए की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अडाणी समूह के कुल ऋणों में भारतीय बैंकों का हिस्सा करीब 40% (लगभग 80,000 करोड़ रुपए) है, जबकि 60% ऋण विदेशी मुद्रा में विदेशी वित्तीय संस्थाओं से लिए गए हैं। इस विदेशी ऋण का बड़ा हिस्सा समूह ने एसीसी और अम्बुजा सीमेंट्स को स्विटज़रलैंड के होलसिम ग्रुप से खरीदने में इस्तेमाल किया था।
भारतीय बैंकों द्वारा समूह अडाणी समूह के ऋण में से 90% सरकारी बैंकों और केवल 10% ही निजी बैंकों ने दिए है। लेकिन देश के सबसे बड़े बैंक के साथ ही सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई का कहना है कि समूह को उसके द्वारा दिए गए ऋण रिजर्व बैंक द्वारा तय की गई सुरक्षित सीमा के भीतर हैं। जानकारों का कहना है कि भले ही अडाणी के सामाज्य के धसकते से भारतीय बैंकों को ज्यादा खतरा नहीं है। मगर उस पर चढ़ा करीब 1.20 लाख करोड़ रुपए का विदेशी ऋण भारतीय रुपए को डॉलर के मुकाबले और ज्यादा कमज़ोर कर सकता है। यह भारत की संप्रभुता के लिए अच्छी बात नहीं है।
बता दें कि हिण्डेनबर्ग रिसर्च की खास महारत शॉर्ट सेलिंग की सलाह देने में है। वह अपनी रिसर्च से ऐसी कंपनियां का पता लगाती है जिनके शेयर अपनी अंतर्निहित मूल्य से बहुत ज्यादा मूल्य पर ट्रेड हो रहे हैं। इसके आधार पर वह अपने ग्राहकों को सलाह देती है कि ऐसी कंपनियों के शेयर अपने पास न होने पर भी मौजूदा भाव पर बेच दें और बाद में गिरने पर उन्हें सस्ते भाव पर खरीदकर डिलीवरी दे दें और इस तरह शॉर्ट सेलिंग से मुनाफा कमा लें। हिण्डेनबर्ग ने अपनी दो साल की रिसर्च से पाया कि अडाणी समूह की सातों लिस्टेड कंपनियों (अडाणी एंटरप्राइसेज़, अडाणी ट्रांसमिशन, अडाणी टोटल गैस, अडाणी ग्रीन एनर्जी, अडानी पावर, अडाणी पोर्ट्स व अडाणी विलमार) के शेयर बहुत ज्यादा चढ़े हुए हैं और उनमें 85% से ज्यादा गिरने की गुंजाइश है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए हिण्डेनबर्ग ने पी/ई अनुपात, बाज़ार भाव व बिक्री के अनुपात, उद्यम मूल्य व परिचालन लाभ के अनुपात जैसे स्थापित व स्वीकृत मानकों का सहारा लिया है। किसी भी ट्रेडर या निवेशक को अडाणी समूह पर हिण्डेनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट जरूर पढ़नी चाहिए।
आप गौतम अडाणी की कारोबारी पृष्ठभूमि से शायद वाकिफ होंगे। उन्होंने 1980 के दशक में कमोडिटी ट्रेडर से अपना धंधा शुरू किया। 1988 में उन्होंने अडाणी समूह की पहली कंपनी बनाई। फिर तो समूह खाद्य तेलों से लेकर बंदरगाह, हवाई अड्डों, कोयला खदान और सड़क निर्माण जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर तक में पैर पसारता गया। वह अपनी सब्सिडियरी इकाइयों के ज़रिए डेटा से लेकर केबल सेंटर और मीडिया तक पहुंच चुका है। साथ ही सरकारी कृपा हासिल करते हुए डिफेंस के साज़ोसामान तक बनाता है। अक्षय ऊर्जा में वह बड़े पैमाने पर उतर रहा है। समूह की घोषणा के मुताबिक अडाणी एंटरप्राइसेज़ को एफपीओ से मिलनेवाले 20,000 करोड़ रुपए में 10,869 करोड़ रुपए ग्रीन हाइड्रोजन सिस्टम, एयरपोर्ट और एक्सप्रेस-वे के निर्माण पर खर्च किए जाने हैं। समूचा भारत जानता है कि गौतम अडाणी केंद्र व गुजरात समेत देश के 14 राज्यों में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी के बेहद करीबी हैं। उन पर गुजरात का मुख्यमंत्री रहने से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक नरेंद्र मोदी की विशेष कृपा बरसती रही है।