अनजाने में चूक हो जाए तो समझ में आता है। लेकिन सब कुछ जानते-बूझते हुए भी गलती हो जाए तो वह अनायास नहीं होती, उसके पीछे कोई न कोई स्वार्थ होता है। जानते हैं कि हमारे शेयर बाजार में कंपनियों की मजबूती जानने के बाद भी उनके शेयर क्यों पिटते रहते हैं? इसलिए यहां निवेशक नहीं, ट्रेडरों की बहुतायत है। हर्षद मेहता के समय 1991-92 में रिटेल निवेशकों की संख्या दो करोड़ से ज्यादा थी। आज इधर-उधर के तमाम खातों को जोड़ देने पर भी इनकी संख्या 80 लाख के आसपास निकेलगी।
ट्रेडरों की बहुतायत होने से होता यह है कि उन्हें कंपनी के अच्छी-बुरी होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्हें तो दही को मथकर मक्खन निकालना होता है। कुछ न कुछ शेयर चर्चा में बने रहें तो उनका काम चलता रहता है। बाजार में जितनी वोलैटिलिटी या उतार-चढ़ाव रहता है, उनके लिए मामला उतना ही उत्तम रहता है। आप कहेंगे कि एक ट्रेडर को हुआ फायदा दूसरे को हुए नुकसान से ही आता होगा तो दूसरा नुकसान उठाता ही क्यों है? तो, इस पर मैं मशहूर निवेशक और बहुचर्चित किताब – The Intelligent Investor के लेखक बेंजामिन ग्राहम का एक वाक्य उद्धृत करना चाहूंगा, “मुझे पता है कि इस स्टॉक के लिए इतना ज्यादा दाम देना मूर्खता है। लेकिन मैं यह भी जानता हूं कि मुझसे भी बडे मूर्ख हैं जो इसके लिए मुझसे भी ज्यादा दाम लगाएंगे।”
आज चर्चा हिमाद्रि केमिकल्स एंड इंडस्ट्रीज की। इसका शेयर (बीएसई – 500184, एनएसई – HCIL) इसी साल 24 फरवरी 2011 को 31 रुपए की तलहटी पर चला गया था। अब भी उसी के आसपास 38.70 रुपए पर है। पिछले महीने 23 मई को कंपनी ने सालाना व चौथी तिमाही के नतीजे घोषित किए। तिमाही की बात करें तो उसकी बिक्री 40.28 फीसदी और शुद्ध लाभ 38.18 फीसदी बढ़ा है। पूरे साल 2010-11 की बात करें तो कंपनी की बिक्री 40.50 फीसदी बढ़कर 700.08 करोड़ और शुद्ध लाभ 6.57 फीसदी बढ़कर 114.39 करोड़ रुपए हो गया।
कंपनी का सालाना ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) अभी 2.97 रुपए है। इस तरह उसका शेयर फिलहाल 13.03 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। कंपनी ने 9 नवंबर 2010 से अपने दस रुपए अंकित मूल्य के शेयर को दस भाग में स्प्लिट कर एक रुपए अंकित मूल्य का बना दिया है। उससे पहले 3 अगस्त 2010 को यह शेयर 564 रुपए का शिखर पकड़ चुका है। यानी, अभी के हिसाब से इसका 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 56.40 रुपए है। क्या इसमें निवेश करना फायदे का सौदा होगा?
पिछले तीन सालों में कंपनी की बिक्री 16.10 फीसदी और लाभ 20.35 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है। कंपनी का इक्विटी पर रिटर्न 19.13 फीसदी है। 1993 में बनी कोलकाता की कंपनी है। डी पी चौधरी इसके चेयरमैन हैं। अधिग्रहण से लेकर खुद अपने अंदर तक से बराबर विकास कर रही है। देश में कोलतार पिच (सीटीपी) की सबसे बड़ी निर्माता है। छह उत्पादन इकाइयां भारत में हैं और एक चीन में। कोलतार पिच का इस्तेमाल एल्यूमीनियम और ग्रेफाइड उद्योग में होता है और देश में इन उद्योगों की मांग का 65 फीसदी हिस्सा हिमाद्रि केमिकल्स एंड इंडस्ट्रीज पूरी करती है। कंपनी कोलतार पिच के अलावा भी कई अन्य उत्पाद बनाती है।
कंपनी की 38.57 करोड़ रुपए की इक्विटी में प्रवर्तकों का हिस्सा 44.63 फीसदी और पब्लिक का हिस्सा 55.37 फीसदी है। पब्लिक के हिस्से में से एफआईआई के पास 0.58 फीसदी और डीआईआई के पास 0.89 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के शेयरधारकों की कुल संख्या 15,409 है। उसके बड़े शेयरधारकों में बेन कैपिटल इनवेस्टर्स इंडिया इनवेस्टमेंट्स (26.75 फीसदी), सिटीग्रुप वेंचर कैपिटल इंटरनेशनल (12.29 फीसदी) और अप्सरा इंफ्रास्ट्रक्चर (3.34 फीसदी) शामिल हैं। इस तरह पब्लिक के 55.37 फीसदी हिस्से में 42.38 फीसदी तीन बड़े निवेशकों और 1.47 फीसदी डीआईआई व एफआईआई के पास हैं। मतलब, आम निवेशकों के पास वास्तव में कंपनी की 11.52 फीसदी इक्विटी ही बचती है।
निवेश के बारे में दो बातें। एक, यह शेयर अगस्त 2010 के बाद से थोड़ा दबा-दबा चल रहा है। नहीं तो उससे पहले यह 18 से लेकर 34 तक के पी/ई अनुपात पर ट्रेड होता रहा है। जाहिर है कि बाजार इसे जानता-समझता है और वाजिब भाव भी देता रहा है। दूसरे, बेन कैपिटल और सिटीग्रुप वेंचर कैपिटल जैसे बड़े निवेशकों द्वारा कंपनी की इक्विटी में क्रमशः 26.75 फीसदी और 12.29 फीसदी का निवेश दिखाता है कि उसके बिजनेस मॉडल में दम है और उस पर भरोसा किया जा सकता है। बाकी, पैसा आपका, बचत आपकी तो मर्जी भी आपकी ही चलेगी।