चंगा है एचडीएफसी, एकदम दुरुस्त

कुछ कंपनियां ऐसी होती हैं जिनमें लंबे समय के निवेश को लेकर ज्यादा कुछ आगा-पीछा सोचने की जरूरत नहीं होती। बस यही देखना पड़ता है कि उन्हें सस्ते में पकड़ने का वक्त है कि नहीं। एचडीएफसी ऐसी ही कंपनी है। हाउसिंग फाइनेंस की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी कंपनी। हमारे यहां 30-32 साल के नए-नए नौकरी करनेवाले लोग भी जो लोन लेकर खटाक से घर के मालिक बन जा रहे हैं, वो पूरी सहूलियत और इस धंधे की धारणा को शुरू करने का श्रेय एचडीएफसी के संस्थापक हंसमुख ठाकोरदास पारेख या हंसमुख भाई को जाता है। बाद में उनके भतीजे दीपक पारेख ने कंपनी की बागडोर संभाल ली। दूसरे बैंक, हाउसिंग फाइनेंस कंपनी बनाते हैं। लेकिन एचडीएफसी ऐसी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी है जो एचडीएफसी बैंक व इन नाम से जुड़ी बीमा कंपनियों व म्यूचुअल फंड की होल्डिंग कंपनी है।

लेकिन मूल सवाल वही कि क्या इस समय सेंसेक्स और निफ्टी में शामिल इस स्टॉक को खरीदने का सही वक्त है? शुक्रवार को यह बीएसई (कोड – 500010) में 1.49 फीसदी गिरकर 711.95 रुपए और एनएसई (कोड – HDFC) में 1.41 फीसदी गिरकर 714.20 रुपए पर बंद हुआ है। कंपनी ने शुक्रवार, 8 जुलाई को ही चालू वित्त वर्ष 2011-12 की जून तिमाही के नतीजे घोषित किए हैं। नतीजे अच्छे थे तो थोड़ा मुनाफावसूली हुई और शेयर गिर गया। हो सकता है कि आज थोड़ा और गिरे। मैक्वारी रिसर्च के मुताबिक इसके जल्दी ही 775 रुपए तक चले जाने की संभावना है। इसका 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 780.05 (17 सितंबर 2010) और न्यूनतम स्तर 576 रुपए (28 जुलाई 2010) है।

जून 2011 की तिमाही में कंपनी का शुद्ध लाभ 21.6 फीसदी बढ़कर 844.53 करोड़ रुपए हो गया है। अगर इसके साथ मार्च 2011, दिसंबर 2010 और सितंबर 2010 की तिमाही को मिलाकर गिनें तो उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 25.07 रुपए है। इसके आधार पर उसका शेयर अभी 28.39 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। सेंसेक्स 19.96 के पी/ई अनुपात पर और एचडीएफसी 28.39 के पी/ई अनुपात पर!! लेकिन एचडीएफसी के स्टॉक का इतिहास देखें तो वह अप्रैल 2010 के बाद से पहली बार इतने कम पी/ई पर आया है। अप्रैल 2010 में उसका पी/ई अनुपात 28.75 था और उससे पिछले महीने मार्च 2010 में 27.56 था।

यकीनन ब्याज दरें बढ़ने के दौरान में होमलोन के बढ़ने की रफ्तार घट जाती है। एचडीएफसी भी इसका अपवाद नहीं है। एचडीएफसी द्वारा दिए गए कुल ऋण का दो-तिहाई हिस्सा रिटेल लोन का है। पिछली चार तिमाहियों से इसके बढ़ने की रफ्तार लगातार घट रही है। सितंबर 2010 में यह 49 फीसदी बढ़ा था। लेकिन दिसंबर 2010 में 31 फीसदी, मार्च 2011 में 27 फीसदी और अब जून 2011 में इसके बढ़ने की दर 21.5 फीसदी पर आ गई है। ये तो वितरित ऋणों की बात हुई। स्वीकृत ऋणों का भी यही रुख रहा है। सितंबर 2010 से जून 2011 के बीच इसी वृद्धि दर घटते-घटते क्रमशः 29 फीसदी, 24 फीसदी, 24 फीसदी और 22 फीसदी पर आ गई।

यह भी सच है कि पूरा रीयल एस्टेट क्षेत्र एक तरह के दबाव में है। लेकिन ब्याज दरें कितनी भी बढ़ जाएं, नए घर बनना या बिकना बंद नहीं हो जाएंगे। जिन्हें ईएमआई पर लोन लेकर घर का सपना पूरा करना है, उनके लिए 0.50 फीसदी ब्याज दर के बढ़ने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इससे ईएमआई पर हजार रुपए से भी कम का फर्क पड़ता है। एचडीएफसी का जिस तरह का तंत्र है और उसकी जो रणनीति है, उसमें उसका धंधा निरतंर बढ़ते जाना है। रीयल एस्टेट में ठंडक और ब्याज दरों के बढ़ने के बावजूद स्वीकृत ऋणों का 22 फीसदी बढ़ जाना कोई कम बात नहीं है।

30 जून 2011 तक के आंकड़ों के अनुसार एडीएफसी की कुल आस्तियां 1,41,589 करोड़ रुपए की हैं जो साल भर पहले की आस्तियों 1,16,111 करोड़ रुपए से 22 फीसदी अधिक हैं। उसके द्वारा दिए गए कुल ऋण 1,24,168 करोड़ रुपए के हैं, जो साल भर पहले के 1,01,625 करोड़ रुपए से 22 फीसदी ज्यादा हैं। इतने सारे ऋणों में उसका एनपीए या समय पर न लौटाए जानेवाले ऋण अभी 1038.15 करोड़ रुपए यानी 0.83 फीसदी हैं। लगातार पिछली 26 तिमाहियों से उसके एनपीए का अनुपात घटता जा रहा है। कंपनी ने एनपीए के लिए वाजिब प्रावधान रखे हैं और उसका पूंजी पर्याप्तता अनुपात भी 13.8 फीसदी के सम्मानजनक व एकदम सुरक्षित स्तर पर है।

यही नहीं, कंपनी शेयर बाजार में निवेश से भी कमाई करती है। 30 जून 2011 तक लिस्टेड कंपनियों में निवेश से हो रहा उसका फायदा 23,206 करोड़ रुपए का है। पिछले साल यह 16,775 करोड़ रुपए का था। गिरते-पड़ते बाजार में भी साल भर में 38.34 फीसदी रिटर्न कोई कम बात नहीं हैं। हां, उसने यह निवेश निकाला नहीं है। इसलिए फायदा सिर्फ गणना के लिए है। वैसे भी, लांग टर्म की सोच वाले कहां इतनी जल्दी अपना निवेश बाहर निकालते हैं?

अंत में एक और मजे की बात। एचडीएफसी में प्रवर्तक नाम की कोई चीज नहीं है। यह एल एंड टी और आईटीसी जैसी प्रोफेशनल लोगों द्वारा चलाई जा रही कंपनी है। इसकी कुल इक्विटी 294 करोड़ रुपए है जो दो रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। सारी 100 फीसदी इक्विटी पब्लिक के पास है जिसमें से 58.12 फीसदी एफआआई, 29.26 फीसदी डीआईआई और 12.62 फीसदी अन्य के पास हैं। हां, कंपनी लगातार लाभांश देती रही है। उसने दस रुपए अंकित मूल्य के शेय पर 2007 में  22 रुपए, 2008 में 25 रुपए, 2009 में 30 रुपए और 2010 में 36 रुपए का लाभांश दिया था। इस साल 2011 में दो रुपए अंकित मूल्य पर उसने 9 रुपए यानी 450 फीसदी का लाभाश दिया है।

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