राष्ट्रीय उद्योगों को बढ़ाने और विदेशी पूंजी को अपने हित में इस्तेमाल करने की जो रणनीति चीन से दशकों से अपना रखी है, भारत को भी विदेशी माल व सेवाओं का बाज़ार बनने और विदेशी पूंजी को बेहिसाब छूट देने के बजाय राष्ट्रीय पूंजी व उद्योगों को आगे बढ़ाने की रणनीति अपनानी होगी। तब तक हमें झूठी प्रशस्ति या निंदा नहीं, बल्कि सच्चाई का सामना करना पड़ेगा। भारतीय अर्थव्यस्था का आकार अभी बमुश्किल 4 ट्रिलियन (लाख करोड़) डॉलर का है, जबकि चीन की अर्थव्यस्था 20 ट्रिलियन डॉलर की है। भारत अगर लगातार 6.5% की दर से बढ़े और चीन की आर्थिक विकास दर 3.9% पर अटकी रहे, तब भी भारत को चीन के बराबर आने में 56 साल लग जाएंगे। इसलिए हमें न तो खुद को किसी गफलत में रहना चाहिए और न ही सत्तासीन राजनेताओं को हमें झांसा देने का मौका देना चाहिए। स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने चीन को ए प्लस की ऊंची रेटिंग दे रखी है, जबकि भारत की रेटिंग अब भी नीचे बीबीबी माइनस पर है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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