आजकल तो जिस भी आर्थिक फोरम या उद्योग के सेमिनार में जाओ, वहां एसएमई (लघु व मध्यम उद्योग) का नाम जरूर सुनने को मिल जाता है। यह क्षेत्र पिछली मंदी से बुरी तरह चोट खाने के बाद पटरी पर लौटने की पुरजोर कोशिश में लगा है। कुछ को फाइनेंस समय पर मिल जा रहा है, दूसरों से बढ़ी-चढ़ी ब्याज ली जा रही है तो बाकी तय नहीं कर पा रहे हैं कि नई शुरुआत करें या हथियार डाल दें। बैंक व दूसरे वित्तीय संस्थान इस क्षेत्र को मोटे तौर पर काफी जोखिम वाला मानते हैं। लेकिन इसके लिए पहला दोष खुद एसएमई का ही है।
वैसे, हम अपनी चुस्त व रूढिवादी किस्म की बैंकिंग प्रणाली, रिजर्व बैंक के दृढ़ कायदे-कानून, राष्ट्रीयकृत बैंकों की गहरी जड़ों और तमाम वित्तीय अधिकारियों को कितना भी श्रेय दे लें, लेकिन असल में 2008-10 की वैश्विक आर्थिक पस्ती ने अगर हमें किसी ने बचाया है तो वह है व्यापक विस्तार वाला हमारी एसएमई क्षेत्र।
कभी-कभी एसएमई क्षेत्र में एक तरह का लकीर के फकीर रहने का भाव देखा जाता है क्योंकि यह जोखिम से दूर रहने में अपनी भलाई व हिफाजत समझता है। लेकिन कहा जाता है कि, “एकदम जोखिम न लेना खुद ही सबसे बड़ा जोखिम है।” एसएमई को आगे बढ़कर समझना व परखना पड़ेगा कि उनके धंधे और उससे बाहर के जोखिम क्या हैं। तभी जोखिम उठाना और उसे नांथना उसके लिए आसान और सुलभ हो पाएगा। जोखिम का एक दिलचस्प पहलू यह है कि हम आसानी से समझ सकते हैं कि यह धंधे से जुड़ा जोखिम है या नियंत्रण से जुड़ा जोखिम है। अगर एसएमई क्षेत्र नियंत्रण से जुड़े जोखिम को ही साध ले तो वह निश्चिंत होने की दिशा में बढ़ सकता है। धंधे से जुड़े जोखिम को साधने में वक्त लगता है और ये होते भी हैं तरह-तरह के, जबकि नियंत्रण संबंधी जोखिम से निपटने के लिए अपने धंधे की बड़ी बुनियादी समझ की दरकार होती है।
धंधे से जुड़े जोखिम तीन तरह के होते हैं। बाजार का जोखिम, उद्योग का जोखिम और कामकाज या परिचालन का जोखिम। इन सभी को समझने के लिए अंदर और बाहर सतत निरीक्षण/निगरानी की जरूरत होती है। इसके लिए अद्यतन व सही सूचनाएं चाहिए होती हैं जिसके लिए उच्च प्रशिक्षण वाले प्रोफेशनल चाहिए और इस पर पैसा भी जमकर खर्च करना पड़ता है।
ज्यादातर एसएमई इकाइयों का पीर, भिश्ती व बाबर्ची या मालिक-मुख्तार एक ही होता है। उसे ही फाइनेंस, तकनीक, बिक्री व मार्केटिंग से लेकर एचआर तक के मसले देखने होते हैं। नियंत्रण संबंधी जोखिम से निपटने का आसान तरीका हो सकता है कि एक चुस्त-दुरुस्त संगठन बनाया जाए, जिसमें हर टीम के अगुआ सदस्य को फैसले लेने से लेकर उन्हें लागू करने के अधिकार दे दिए जाएं। एकदम साफ-साफ नियम-कायदे बना दिए जाएं। संगठन के बारे में तय कर दिया जाए कि रोजमर्रा के कामकाज में क्या करना है और क्या नहीं करना है।
हालात के बीच से ही जोखिम उभरते हैं। कुछ अधिकारी इसे पहले से देख लेते हैं और ऐसी रणनीति व योजनाएं बना लेते हैं जिनसे न केवल अप्रत्याशित चक्रवातों से निपटा जा सकता है, बल्कि माकूल हालात आने पर उनका अधिकतम इस्तेमाल किया जा सकता है। आइए कुछ नियंत्रण संबंधी जोखिमों पर नजर डालते हैं और उन्हें बेहतर ढंग से समझने की कोशिश करते हैं।
1. एक जानीमानी डीटीसी साइडहोल्डर डायमंड कंपनी के शीर्ष वित्तीय अधिकारी से बातचीत के दौरान मैंने पूछा कि 2008-10 के उथलपुथल भरे दौर में आपकी कंपनी ने जोखिम से निपटने के लिए अलग से क्या किया? उनका जवाब था, “नए ग्राहक जुटाना तो लगभग नामुमकिन था तो हमने अपने व्यवसाय के दूसरे मूल स्तंभों पर गौर किया। हमारे हीरा उद्योग की रीढ़ होते हैं कारीगर। इसे समझते हुए हमने अपने किसी भी कारीगर को बाहर नहीं निकाला, बावजूद इसके कि हमारी बिक्री बहुत गिर चुकी थी। बल्कि, हमने दूसरी फर्मों द्वारा निकाले गए दक्ष व अनुभवी कारीगरों को काम पर रख लिया। हमने नए-पुराने सभी कर्मचारियों से बातचीत की कि वे थोड़ा कम वेतन लेने को तैयार हो जाएं और फैक्ट्रियों में काम की रफ्तार थोड़ी घटा दें। आज हमारे पास क्वालिटी है और हम बढ़ी हुई मांग को द्रुत उत्पादन से पूरा कर ले रहे हैं।”
यहां एक बात नोट की जानी चाहिए कि हीरा उद्योग के लिए मजे हुए अनुभवी कारीगर अपरिहार्य हैं।
2. हालांकि हीरो होंडा को एसएसई पर हो रहे बात-विमर्श में फिट नहीं कर सकते, लेकिन 2008-10 के दौरान कंपनी ने एक छोटा-सा कदम ऐसा उठाया था जिसका जिक्र जरूरी है। जब दूसरे मोटरसाइकिल निर्माता आर्थिक सुस्ती के मिटने के इंतजार में बैठे हुए थे, तब इसने देश भर में अपने 1000 से ज्यादा एक्सक्लूसिव शोरूम खोल डाले। कंपनी ने कहा कि यह बहुत सोच-विचार और बहस-मुवाहिशे के बाद उठाया गया कदम था और इसका मकसद था लोगों की नजर में आना और ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को अपनी तरफ खींचना।
हम इससे ऐसे उत्पादों की श्रेणी के बारे में भी निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि जो दिखता है, वो बिकता है।
3. एक रेटिंग एजेंसी के प्रतिनिधि के रूप में तीसरा और बेहद सटीक उदाहरण पेश कर रहा हूं कि कैसे अधिकांश एसएमई रेटिंग करवाने को ही बेहद जोखिम भरा मानते हैं। उनको लगता है कि उनकी सूचनाएं और आंकड़े पब्लिक के बीच में आ जाएंगे। उनका प्रतिस्पर्धी उनके बारे में ज्यादा जान जाएगा और दी गई रेटिंग अच्छी नहीं रही तो बैंक उनके अधिक ब्याज वसूलेंगे।
एक दिन सुबह-सुबह एसएमई के मालिक का फोन आया कि मैं उससे फौरन मिलूं तो मुझे सुखद अचंभा हुआ। हमारी मीटिंग चल ही रही थी कि उन्होंने एक वैश्विक रिटेल चेन का पत्र दिखाया जिसमें लिखा था, “हमें आपकी कंपनी की किसी दूसरे द्वारा की गई रेटिंग/आकलन का स्कोर चाहिए।” इस पत्र में यह नहीं लिखा कि रेटिंग/आकलन का स्कोर क्या होना चाहिए। ऐसे ही पत्र हैं जो हमारे तमाम एसएमई को अपने ग्राहकों, सप्लायरों, बैंकों व वित्तीय संस्थाओं वगैरह से मिले होंगे।
बात बहुत साफ-सी है कि देर से ही सही, घरेलू व वैश्विक बाजार में अब व्यवस्था की पारदर्शिता, बदलाव की तत्परता और आप जैसे हैं, उसी रूप में दूसरों के सामने जाहिर कर देने की चाहत का महत्व समझा जाने लगा है। वक्त की मांग है कि हमारे एसएमई किताबों से निकल कर ऐसे तमाम जोखिम से दो-दो हाथ करें जो उन्हे ताकत और कामयाबी दोनों ही दिला सकता है। आखिरकार एसएमई क्षेत्र को हमारी अर्थव्यवस्था की मांसपेशियों को मजबूत करना है न कि खाली-पीली की चर्बी बढ़ानी है।
– अविनाश चंद्रा (लेखक प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसी केयर में बिजनेस डेवलपमेंट के मैनेजर हैं। यह उनके व्यक्तिगत विचार हैं, एजेंसी के नहीं। संपर्क: avinash.chandra@careratings.com)