यूं तो काल गणना का हर पल कोई न कोई महत्व रखता है लेकिन कुछ तिथियों का भारतीय काल गणना में विशेष महत्व है। भारतीय नव वर्ष (विक्रमी संवत) का पहला दिन (यानि वर्ष-प्रतिपदा) अपने आप में अनूठा है। इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। इस दिन पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है और दिन-रात बराबर होते हैं। इसके बाद से ही रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है। काली अंधेरी रात के अन्धकार को चीर चंद्रमा की चांदनी अपनी छटा बिखेरना शुरू कर देती है। वसंत ऋतु का राज होने के कारण प्रकृति का सौंदर्य अपने चरम पर होता है। फाल्गुन के रंग और फूलों की सुगंध से तन-मन प्रफुल्लित और उत्साहित रहता है।
भारत के पराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य द्वारा शुरू किए जाने के कारण इसे विक्रमी संवत् के नाम से जाना जाता है। विक्रमी संवत के बाद ही वर्ष को 12 माह का और सप्ताह को 7 दिन का माना गया। इसके महीनों का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति के आधार पर रखा गया। विक्रमी संवत का प्रारंभ अंग्रेजी कैलेंडर की ईस्वीं शुरू होने से 57 साल पहले ही हो गया था।
चंद्रमा के पृथ्वी के चारों ओर एक चक्कर लगाने को एक माह माना जाता है, जबकि यह 29 दिन का होता है। हर माह को दो भागों में बांटा जाता है – कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। कृष्ण पक्ष में चांद घटता है और शुक्ल पक्ष में चांद बढ़ता है। दोनों पक्ष प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी आदि के क्रम में चलते हैं। कृष्ण पक्ष के अन्तिम दिन (यानी अमावस्या को) चंद्रमा बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता है जबिक शुक्ल पक्ष के अन्तिम दिन (यानी पूर्णिमा को) समूचा चांद आसमान पर होता है।
अर्ध-रात्रि के स्थान पर सूर्योदय से दिवस परिवर्तन की व्यवस्था और सोमवार के स्थान पर रविवार को सप्ताह का प्रथम दिवस घोषित करने के साथ चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के स्थान पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वर्ष का आरम्भ करने का एक वैज्ञानिक आधार है। वैसे भी इंग्लैण्ड के ग्रीनविच नामक स्थान से दिन परिवर्तन की व्यवस्था में जब अर्ध-रात्रि के 12 बजे होते हैं, तब भारत में सुबह के 5.30 बज रहे होते हैं।
वारों के नामकरण की विज्ञान सम्मत प्रक्रिया को को देखें तो पता चलता है कि आकाश में ग्रहों की स्थिति सूर्य से शुरू होकर क्रमशः बुध, शुक्र, चंद्र, मंगल, गुरु और शनि की है। पृथ्वी के उपग्रह चंद्रमा सहित इन्हीं अन्य छह ग्रहों पर सप्ताह के सात दिनों का नामकरण किया गया। तिथि घटे या बढ़े किंतु सूर्य ग्रहण सदा अमावस्या को होगा और चंद्र ग्रहण सदा पूर्णिमा को होगा। इसमें अंतर नहीं आ सकता। तीसरे वर्ष एक मास बढ़ जाने पर भी ऋतुओं का प्रभाव उन्हीं महीनों में दिखाई देता है, जिनमें सामान्य वर्ष में दिखाई पड़ता है। जैसे, वसन्त के फूल चैत्र-वैशाख में ही खिलते हैं और पतझड़ माघ-फाल्गुन में ही होती है। इस प्रकार इस कालगणना में नक्षत्रों, ऋतुओं, मासों व दिवसों आदि का निधार्रण पूरी तरह प्रकृति पर आधारित वैज्ञानिक रूप से किया गया है।
वर्ष प्रतिपदा के दिन ही स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी। वर्ष भर के लिए शक्ति संचय करने हेतु नौ दिनों की शक्ति साधना (चैत्र नवरात्रि) का प्रथम दिवस भी यही है। इतना ही नहीं, महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की। विक्रमादित्य ने आज से 2068 वर्ष पूर्व शकों की शक्ति का उन्मलून कर यवन, हूण, तुषार व कंबोज देशों पर अपनी विजय पताका फहराई थी। उसी विजय की स्मृति में यह प्रतिप्रदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती है।
ग्रेगोरियन (अंग्रेजी) कैलेंडर की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के समय को समेटती है। जबकि यूनान की काल गणना 3579 वर्ष, रोम की 2756 वर्ष, यहूदी 5767 वर्ष, मिस्र की 28,670 वर्ष, पारसी 1,98,874 वर्ष और चीन की 9,60,02,304 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गई है। जिस प्रकार ईस्वी संवत का सम्बन्ध ईसा जगत से है उसी प्रकार हिजरी संवत का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है। लेकिन विक्रमी संवत का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत और ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है।
चेती चांद का त्यौहार, गुडी पडवा त्यौहार (महाराष्ट्र), उगादी त्यौहार (दक्षिण भारत) भी विक्रम संवत के पहले दिन पडते हैं। वर्ष प्रतिपदा के आसपास ही पडनेवाले अंमेजी वर्ष के अप्रैल माह से ही दुनिया भर में पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है। समस्त भारतीय व्यापारिक व गैर व्यापारिक प्रतिष्ठानों को अपना-अपना अधिकृत लेखा-जोखा इसी आधार पर रखना होता है जिसे बही-खाता वर्ष कहा जाता है। भारत के आय कर कानून के अनुसार प्रत्येक करदाता को अपना कर निर्धारण भी इसी के आधार पर करवाना होता है। भारत सरकार व समस्त राज्य सरकारों का बजट वर्ष भी इसी के साथ प्रारंभ होता है। सरकारी पंचवर्षीय योजनाओं का आधार भी यही वित्त वर्ष होता है।
हमारे यहां रात्रि के अंधकार में नव वर्ष का स्वागत नहीं होता, बल्कि भारतीय नव वर्ष तो सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है। इतना कहने के बाद आप सभी को अर्थकाम की तरफ से विक्रमी संवत 2068 की प्रतिपदा की, चेती चांद, गुडी पडवा व उगादी त्यौहार की असंख्य शुभकामनाएं। नव वर्ष विक्रमी संवत 2068 आप सभी के जीवन को वैभव और ऐश्वर्य से भर दे।
शानदार जानकारी. वर्ष प्रतिपदा से जुडी हर बार, हर तथ्य को आपने छोटे से लेख में समेट दिया. भारतीय संस्क्रिती में मेरी गहरी आस्था है, पर कहीं न कहीं लगता था कि चांद पर आधारित काल गणना थोडी कम साइंटिफ़िक है. इसमें गडबड्झाला होता है. लेकिन जब आपने बताया कि विक्रम संवत में त्योहार कैसे समय पर आते हैं और एक माह बढने के बावजूद मौसम भी उसी समय आता है, तब इस पद्धति की वैग्यानिकता का पता चला. आपका आभार.