सरकार सोने-चांदी से लेकर प्लैटिनम के तक के आभूषणों के लिए हॉलमार्किग को जरूरी बनाने जा रही है। इसे पहले महानगरों से शुरू किया जाएगा। फिर बड़े शहरों से होते हुए छोटे शहरों तक पहुंचा जाएगा। हॉलमार्किग की पद्धति देश में साल 2001 से अपना ली गई है। लेकिन अभी तक इसे स्वैच्छिक ही रखा गया है। इधर जिस तरह देश में आभूषणों की खपत बढ़ रही है और ग्राहकों की तरफ से घोषित शुद्धता का आभूषण न मिलने की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं, उसे देखते यह कदम उठाया जा रहा है।
इसके लिए ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स एक्ट 1986 के अनुच्छेद 14 में बदलाव किया जाएगा। बीआईएस के सूत्रों के मुताबिक इस संशोधन को इस महीने के अंत या जुलाई तक कैबिनेट के सामने रख दिया जाएगा। असल में अनुच्छेद 14 के तहत अनूसूचित उद्योगों की सूची में शामिल उत्पादों पर ही अनिवार्य मानक लागू किए जाने का प्रावधान है और फिलफाल आभूषण इस श्रेणी में नहीं आता। इसलिए इस पर अनिवार्य हॉलमार्किग का नियम भी लागू नहीं हो सकता है। इसीलिए पहले कानून में बदलाव करना पड़ेगा।
बता दें कि यह पहल काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि देश में सोने व अन्य आभूषणों की खपत बढ़ती जा रही है। 1982 में देश में सोने की सालाना खपत 62 टन थी, जो अब लगभग 900 टन पर पहुंच चुकी है। साथ ही महानगरों में प्लैटिनम के आभूषणों का चलन भी बढ़ रहा है। इस समय देश में आभूषण बनानेवाली बड़ी इकाइयों की संख्या तो दो-चार सौ ही होगी। लेकिन छोटी इकाइयां की संख्या एक लाख से ज्यादा है। ऐसी इकाइयों में 5-10 कारीगर ही काम करते हैं। इसलिए इन पर अनिवार्य हॉलमार्किग का नियम लागू करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।
गौरतलब है कि अभी देश भर में करीब डेढ़ सौ एजेंसियां हैं जिन्हें भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने हॉलमार्किग का प्रमाणपत्र देने का लाइसेंस दे रखा है। करीब जेवरात की 7500 दुकानें स्वेच्छा से हॉलमार्किग के नियम का पालन कर रही है। हॉलमार्किग से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि इससे सोने में कोई खोट नहीं निकाल पाएगा। इसका एक मानक होगा, जो हर बाजार में स्वीकार किया जाएगा।
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