किसी देशवासी को अगर अब भी लगता है कि मोदी सरकार व्यापक अवाम की आकांक्षाओं को पूरा करने के अभियान में लगी है तो उसे अब इस भ्रम से बाहर निकल आना चाहिए। मोदी सरकार अडाणी जैसे उद्योगपतियों का साम्राज्य बढ़ाने में ही लगी है। इन उद्योगपतियों की सूची में कोयला घोटाले के प्रमुख आरोपी नवीन जिंदल भी शामिल हैं। यह फेहरिस्त ज्यादा लम्बी नहीं। लेकिन यह भारत के कॉरपोरेट क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं करती। इसमें शुद्ध दलाल और तिकड़मबाज़ धंधेबाज़ शामिल हैं। यहां तक कि इसमें मुकेश अंबानी भी नहीं आते। क्या इतने मुठ्ठी भर क्रोनी किस्म के उद्योगपति भारत की विकासगाथा को आगे बढ़ा सकते हैं? क्या देश के करोड़ों लघु, सूक्ष्म व मझोले उद्यमों (एमएसएमई) को दबाकर भारत की विकासगाथा को एक इंच भी आगे बढ़ाया जा सकता है? कृषि व मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के ठहराव ने विकासगाथा को बांध दिया है। होम डिलीवरी से लेकर ओला व उबर ने एक नई गिग अर्थव्यवस्था जरूर बनाई है। लेकिन क्या इससे इतने रोज़गार पैदा हो सकते हैं जिससे देश को डेमोग्राफिक डिविडेंड का पूरा लाभ मिल सके? ऊपर से बैंकों की हालत यह है कि पहले तो एनपीए ही बढ़ रहे थे, जबकि 2023-24 में टॉप के छह बैंकों के राइट-ऑफ छलांग लगा गए हैं। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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