अच्छा झूलेगा जेवीएल एग्रो का झूला

अपने शेयर बाजार में, लगता है जैसे तूफान के पहले की शांति चल रही है। दिन के दिन में 2 फीसदी से ज्यादा उछल जानेवाले सूचकांक सीमित दायरे में बंध कर रह गए हैं। जैसे, शुक्रवार 2 नवंबर को निफ्टी नीचे में 5682.55 से ऊपर में 5711.30 तक, यानी 28.75 अंक के दायरे में ही घूम गया। सेंसेक्स का भी यही हाल है। महीने भर पहले 3 अक्टूबर को सेंसेक्स 18,869.69 पर बंद हुआ था तो 2 नवंबर को 18,755.45 पर। लगभग समान स्तर पर। सांख्यिकीय गणना के हिसाब से देखें तो सेंसेक्स का औसत से मानक विचलन (स्टैंडर्ड डेविएशन) मात्र 1.2 फीसदी चल रहा है।

साल 2004 के बाद ऐसा केवल एक बार मध्य-जुलाई 2010 से अगस्त-अंत 2010 के दौरान हुआ है। हालांकि बाजार का स्वभाव दिन में 1-2 फीसदी और साल-छह महीने में 20-30 फीसदी ऊपर नीचे हो जाने का है। इसे ही वौलैटिलिटी कहते हैं, जो अपने बाजार में इस समय गिरी हुई है। इसी को रिस्क भी कहते हैं। लेकिन रिस्क कम होने के बावजूद रिटेल या आम निवेशक बाजार से नदारद हैं। कारण, दूध का जला छाछ भी फूंककर पीता है। आंख पर पट्टी बांधकर निवेश करने से जो गच्चा उसने खाया है, उसका कारण वह आंख खोलकर भी नहीं समझ पा रहा है।

खैर, देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ना है तो उसे देर-सबेर बाजार में समझदारी के साथ लाना होगा। एफआईआई या एफडीआई के भरोसे भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास नहीं हो सकता। एक अनुमान के मुताबिक भारत के आम लोगों की कुल सालाना बचत इस समय 17 लाख करोड़ रुपए है। इसका एक फीसदी भी 1.7 लाख करोड़ रुपए बनता है। बीते वित्त वर्ष 2011-12 में देश के आया कुल एफआईआई निवेश 93,725 करोड़ रुपए और उसके पिछले साल 1.46 लाख करोड़ रुपए रहा है। सोचिए, आम भारतीयों की बचत का महज एक फीसदी हिस्सा इन उड़नछू हो जानेवाले विदेशी निवेशकों की छुट्टी कर सकता है। ऐसा इसलिए भी संभव है क्योंकि 1993 में आम भारतीयों की बचत (household savings) का तकरीबन 11 फीसदी हिस्सा पूंजी बाजार में लगा हुआ था। लेकिन अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह की सरकार को विदेशी पूंजी की दलाली में ही देश का हित समझ में आ रहा है।

हमारा मानना है कि घरेलू बचत को बाजार में लाना न केवल हमारी अर्थव्यवस्था, बल्कि आम भारतीयों के हित में भी है। मगर हकीकत यह है कि इसके लिए हमारी दलाल सरकार तो कुछ करने से रही। इसलिए हम्हीं लोगों को खुद वित्तीय रूप से साक्षर होना होगा। अपना हित-अहित कायदे से समझकर निवेश करना होगा। आज के लिए मोटी बात यह है कि सेंसेक्स या निफ्टी जितना उठता-गिरता है, उसमें शामिल कंपनियों का लाभार्जन उस हिसाब से नहीं चलता। फिर, सूचकांकों के बाहर बहुतेरी कंपनियां हैं जो किसी सट्टेबाजी नहीं, बल्कि अपने धंधे के दम पर आसानी से 50-60 फीसदी का रिटर्न दे दे रही हैं। हमें जंगल के बीच के ऐसे फलदार वृक्षों की शिनाख्त करने की कला विकसित करनी होगी। एक आसान सूत्र जान लें कि कंपनी के शेयर के मौजूदा भाव उसके गुजरे कल नहीं, बल्कि आनेवाले कल के कामकाज को दर्शाते हैं। इसलिए निवेश करते वक्त हमेशा तलाशना चाहिए कि कंपनी की भावी संभावनाएं क्या हैं।

आज, संक्षेप में ऐसी ही संभावनामय कंपनी का जिक्र कर रहा हूं। वैसे इसमें पांच-दस साल नहीं, बल्कि साल-छह महीने के नजरिए से निवेश किया जाना चाहिए। इसका नाम है जेवीएल एग्रो इंडस्ट्रीज। 1990 में बनी कंपनी है। वनस्पति और रिफाइंड सोयाबीन व सरसों तेल बनाती है। झूला इसका ब्रांड है और यह उत्तर प्रदेश व बिहार में काफी लोकप्रिय है। वह तिलहन की खेती भी करती है और खली वगैरह से अन्य कृषि उत्पाद भी बनाती है। कंपनी के प्रवर्तक व चेयरमैन डी एन झुनझुनवाला हैं। इनका कोई वास्ता शेयर बाजार के जाने-माने निवेशक राकेश झुनझुनवाला से नहीं है।

कंपनी का मुख्यालय बनारस में है। लेकिन उसके बिक्री कार्यालय अलवर, कोलकाता, मुंबई, दिल्ली व सिंगापुर तक में हैं। उसकी वनस्पति इकाइयां जौनपुर (उत्तर प्रदेश) और पहलेजा (बिहार) में हैं, जबकि रिफाइंड तेल की इकाई अलवर (राजस्थान) में है। कंपनी ने 25 टन प्रतिदिन की उत्पादन क्षमता से शुरूआत की थी। लेकिन अब वह 300 टन प्रतिदिन की क्षमता हासिल कर चुकी है। पिछले ही महीने 9 अक्टूबर को उसने हल्दिया (पश्चिम बंगाल) में 1200 टन प्रतिदिन की क्षमता वाली नई खाद्य तेल इकाई शुरू की है। इस इकाई का उद्घाटन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया। यहां से कंपनी एक नई छलांग लगाने की उम्मीद करती है।

कंपनी का धंधा चौकस चल रहा है। बीते वित्त वर्ष 2011-12 में उसने 2915.29 करोड़ रुपए की बिक्री पर 62.16 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। अभी चालू वित्त वर्ष में जून 2012 की तिमाही में उसने 1002.04 करोड़ रुपए की बिक्री पर 16.57 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है। साल भर पहले इसी अवधि में उसकी बिक्री 612.25 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 16.14 करोड़ रुपए था। इससे दो बातें साफ होती हैं। एक तो यह कि कंपनी की बिक्री अच्छी-खासी बढ़ी है। दूसरी यह कि इस धंधे में लाभ मार्जिन काफी कम है। लेकिन नोट करने की बात यह है कि जहां इसका शुद्ध लाभ मार्जिन (ओपीएम) 1.65 फीसदी है, वहीं रुचि सोया का 1.21 फीसदी, गोकुल रिफॉयल्स का 0.76 फीसदी और के एस ऑयल का तो ऋणात्मक (-) 26.63 फीसदी है। नोट करें कि के एस ऑयल कॉरपोरेट गवर्नेंस के मोर्चे पर मात खाने के बाद बड़ी ही नाजुक स्थिति में पहुंच चुकी है।

जेवीएल एग्रो यूं तो वित्तीय पैमाने पर जानदार-शानदार स्थिति में है। उसकी प्रति शेयर बुक वैल्यू 21.35 रुपए है। जबकि उसका शेयर शुक्रवार, 2 नवंबर को बीएसई (519248) में 2.46 फीसदी और एनएसई (JVLAGRO) में 4.06 फीसदी बढ़कर 16.65 रुपए पर बंद हुआ है। महज 3.72 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है उसका शेयर। नई इकाई शुरू होने के कंपनी का कैश फ्लो कई गुना बढ़ जाएगा। यानी, हर लिहाज से इसके शेयरों में कई गुना बढ़त की संभावना है। फिर भी के एस ऑयल के अनुभव के बाद लगता है कि तेल कंपनियों में जिस तरह से पांपरिपक व्यापारी परिवार लगे हुए हैं, उससे उनमें कॉरपोरेट गवर्नेंस की समस्या हो सकती है। मगर, कॉरपोरेट गवर्नेंस की तहकीकत की समुचित व्यवस्था अभी तक अपने यहां नहीं।

इसीलिए सब कुछ टनाटन होते हुए भी हम जेवीएल एग्रो में साल-छह महीने के निवेश की ही सलाह दे रहे हैं। इस दौरान आपका निवेश 40-50 फीसदी बढ़ सकता है। वैसे तो इसका 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 21 रुपए का है जो इसने 16 फरवरी 2012 को हासिल किया था। लेकिन अगले मार्च तक यह 24-25 रुपए तक जा सकता है। इधर इसमें काफी खरीद चल रही है। पिछले पूरे हफ्ते इसमें हुए तीन-चौथाई से ज्यादा सौदे डिलीवरी के लिए थे। जैसे, शुक्रवार 2 नवंबर को को बीएसई में ट्रेड हुए इसके 22,474 शेयरों में से 93.05 फीसदी और एनएसई में ट्रेड हुए 11,795 शेयरों में से 81 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। यानी, इसे बटोरने का सिलसिला शुरू हो चुका है। इसलिए आगे इसके बढ़ने की भरपूर गुंजाइश है। कंपनी की 14.04 करोड़ रुपए की इक्विटी का 53.82 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों और 16.02 फीसदी हिस्सा एफआईआई के पास है।

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