मिला मौका एमसीएक्स में घुसने का

प्राइमरी बाजार ही वह चौराहा है, वो दहलीज है, जहां निवेशक पहली बार कंपनी से सीधे टकराता है। प्रवर्तक पब्लिक इश्यू (आईपीओ या एफपीओ) के जरिए निवेशकों के सामने अपने जोखिम में हिस्सेदारी की पेशकश करते हैं। निवेशक खुद तय करके अपने हिस्से की पूंजी दे देता है। फिर कंपनी सारी पूंजी जुटाकर अपने रस्ते चली जाती है और निवेशक अपने रस्ते। निवेशक की पूंजी चलती रही, कहीं फंसे नहीं, तरलता बनी रहे, कंपनी के कामकाज़ को सही ढंग से दर्शाते हुए बढ़ती रहे; आगे का यह सारा काम सेकेंडरी बाजार या शेयर बाजार करता है। शेयर बाजार में लिस्टेड किसी स्टॉक में हम जो निवेश करते हैं, उससे कंपनी को सीधे कुछ नहीं मिलता। बस, एक माहौल बनता है, साख बनती है और कंपनी का बराबर मूल्यांकन होता रहता है, जिससे कंपनी को भविष्य में धन जुटाना आसान हो जाता है।

इसलिए दहलीज या चौराहे पर हो रही पहली मुलाकात, पहली देखा-देखी बहुत सोच-समझकर होनी चाहिए। देश का सबसे बड़ा और दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा कमोडिटी एक्सचेंज, एमसीएक्स साल 2012 का पहला आईपीओ लेकर आज से आपके मुखातिब है। शुक्रवार, 24 फरवरी तक उसका इश्यू खुला रहेगा। एमसीएक्स का स्वरूप ऐसा है कि वहां स्वामित्व, प्रबंधन और सदस्यता अलग-अलग हाथों में है ताकि पूरी पारदर्शिता बनी रहे। बड़े-बड़े बैंक, वित्तीय संस्थान व प्राइवेट इक्विटी फंड इसके स्वामित्व में शामिल हैं। आईपीओ के बाद एमसीएक्स की इक्विटी में प्रवर्तक कंपनी फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज़ का हिस्सा 26 फीसदी ही रहेगा। बाकी 74 फीसदी पब्लिक समेत इन नामी-गिरामी संस्थागत निवेशकों के पास रहेगा।

कंपनी के 15 सदस्यीय निदेशक बोर्ड में प्रबंधक निदेशक और पांच अन्य निदेशक प्रवर्तक फाइनेंशियल टेक्नेलॉजीज़ का प्रतिनिधित्व करते हैं। बोर्ड में कमोडिटी नियामक, फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) के चार, नाबार्ड का एक और भारतीय स्टेट बैंक का एक नामित सदस्य है। चेयरमैन समेत तीन स्वतंत्र निदेशक हैं। कंपनी द्वारा संचालित कमोडिटी एक्सचेंज, एमसीएक्स के 2000 से ज्यादा पंजीकृत सदस्य हैं जो देश भर में करीब एक लाख ट्रेडर वर्क-स्टेशनों के जरिए काम करते हैं।

दिसंबर 2011 तक के नौ महीनों को देखें तो एमसीएक्स की आय का 81.5 फीसदी हिस्सा सदस्यों द्वारा ट्रेड को पूरा करने के लिए दी गई ट्रांजैक्शन फीस से आया है। प्रारंभिक सदस्यता, सालाना सब्सक्रिप्शन और टर्मिनल शुल्क से 3.3 फीसदी आय होती है, जबकि बाकी 15.2 फीसदी हिस्सा अन्य आय का है। देश में कमोडिटी फ्यूचर्स का कारोबार, किसानों की भागादारी के बिना और एफआईआई, बैंक व म्यूचुअल फंडों पर बंदिश के बावजूद, इस समय हमारे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.5 गुना हो चुका है, जबकि इक्विटी फ्यूचर्स जीडीपी का 1.3 गुना ही है। हां, ऑप्शंस को मिला दें तो देश में इक्विटी डेरिवेटिव्स का कुल बाजार जीडीपी का 3.8 गुना हो जाता है। लेकिन कमोडिटी डेरिवेटिव्स में अभी तक ऑप्शंस की इजाजत नहीं है। जानकारों का कहना है कि अगर किसानों को उनकी फसल का वाजिब मूल्य दिलाना है तो देर-सबेर कमोडिटी ऑप्शंस की शुरुआत करनी ही पड़ेगी।

इतने संभावनामय बाजार में करीब 80 फीसदी हिस्सेदारी है एमसीएक्स की। फिर, देश में किसी भी एक्सचेंज का यह पहला आईपीओ है। बीएसई भी काफी अरसे से आईपीओ की तैयारी में है। लेकिन उसका मामला अटका पड़ा है। ऐसे में जिन भी आम निवेशकों के पास अपनी जरूरत से ऊपर का धन है, उन्हें एमसीएक्स के आईपीओ से चूकना नहीं चाहिए। अहम सवाल यह है कि बोली कितने पर लगाई जाए? प्राइस-बैंड के निचले सिरे 860 रुपए पर या ऊपरी सिरे 1032 रुपए पर?

एमसीएक्स साल 2003 से धंधे में है और बराबर प्रगति कर रहा है। दिसंबर 2011 तक के नौ महीनों में उसने 474.50 करोड़ रुपए की आय पर 220.53 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है। उसके जारी शेयरों की संख्या 5.10 करोड़ है। इस तरह उसका नौ महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 43.74 रुपए निकलता है। यह सालाना आधार पर 56.98 रुपए हो जाता है। विश्लेषक इसी की गणना से कह रहे हैं कि इसका आईपीओ ऊपरी मूल्य पर 18.11 और निचले मूल्य पर 15.09 के पी/ई अनुपात पर लाया गया है।

जाहिर है कि एक सुनहरी छवि के साथ एमसीएक्स के आईपीओ का मूल्यांकन किया गया है। यह भी सच है कि कंपनी का कैश फ्लो पिछले तीन वित्त वर्षों – 2008-09, 2009-10 व 2010-11 में ऋणात्मक रहा है जिसका ब्योरा आपको कंपनी प्रॉस्पेक्टस के पेज नंबर-63 पर मिल जाएगा। लेकिन शेयरों में निवेश वर्तमान स्थिति से ज्यादा भविष्य की संभावनाओं के आधार पर किया जाता है। निश्चित रूप से यहां जोखिम भी बहुत होता है। यह सब कुछ समझते हुए ही निवेश करना चाहिए। मौजूदा माहौल को देखते हुए प्राइस-बैंड के ऊपरी हिस्से 1032 रुपए पर बोली लगाना ज्यादा सही होगा।

कंपनी द्वारा बेचे जा रहे कुल 64,27,378 शेयरों में 32,13,689 यानी 50 फीसदी हिस्सा क्यूआईबी (क्वालिफायड इंस्टीट्यूशनल बायर्स) या दूसरे शब्दों में कहें तो संस्थागत निवेशकों के लिए आरक्षित है। गैर संस्थागत खरीदारों (एनआईबी) के लिए 9,64,107 लाख (15 फीसदी) शेयर रखे गए हैं। बाकी 22,49,582 लाख यानी 35 फीसदी शेयर रिटेल निवेशकों के लिए आरक्षित हैं। तय है कि इसे पाने के लिए बहुत दिनों से हाथ बांधे बैठे लाखों निवेशकों में मारी-मारी होगी। इसलिए निचले प्राइस बैंड पर बोली लगाने का फायदा नहीं है। बाकी आप खुद ही ज्यादा समझदार हैं। हालांकि जिनको आईपीओ में आवंटन नहीं मिल पाएगा, वे इसे बाद में शेयर बाजार से भी खरीद सकते हैं। हां, थोड़ा प्रीमियम देना पड़ेगा। चलता है। निवेश में सब चलता है।

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