वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी का मानना है कि विश्व अर्थव्यवस्था में सुधार की गति धीमी है। 2008 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई मंदी को सुधरने में कुछ लंबा वक्त लगेगा। वित्त मंत्री ने मंगलवार को उद्योग संगठन सीआईआई की सालाना आमसभा और राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह बात कही।
उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नीति निर्माताओं के लिए यह सबसे कठिन चुनौतियों में से एक है। इस वैश्विक संकट से निपटने के लिए अपने अन्य आर्थिक साझेदारों की मदद से ऋण से घिरे बहुत से देशों के महत्वपूर्ण कदम उठाने के बावजूद दुनिया भर के प्रमुख निवेशकों में चिंता बनी हुई है। उन्होंने कहा कि सकल घरेलू उत्पाद के मामले में बढ़ते हुए ऋण के अलावा बेरोजगारी और खाद्य वस्तुओं के ऊंचे दाम भी नीति निर्माताओं के लिए प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं।
श्री मुखर्जी ने कहा कि विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के पूंजी प्रवाह के स्तर में भी कमी आई है और इसके परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा बाजार में रूपये में तेजी से ह्रास हुआ है और इक्विटी संकेतकों में भी कमी दर्ज की गई है। यूरों क्षेत्र के संकट के चलते वैश्विक अनिश्चितता का भी एफआईआई प्रवाह पर प्रभाव पडा है।
श्री मुखर्जी ने कहा कि 2009-10 और 2010-11 के 8.4 फीसदी की तुलना में 2011-12 में सकल घरेलू उत्पाद में 6.9 फीसदी की वृद्धि दर का अनुमान निराशाजनक रहा है। 2011-12 में अर्थव्यवस्था की विकास दर में कमी का मुख्य कारण औद्योगिक क्षेत्र में आई मंदी है।
हालांकि वित्त मंत्री ने विश्वास जताया कि वर्ष 2012-13 में देश प्रगति के पथ पर होगा। वर्तमान वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर का लक्ष्य 7.6 फीसदी रखा गया है। कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में लगातार हो रही वृद्धि के साथ-साथ वैश्विक आर्थिक उतार-चढ़ाव को देखते हुए आने वाले महीनों में इनके प्रभाव को न्यूनतम करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने की जरूरत होगी।