यह कोई विज्ञापन या झूठा दावा नहीं, बल्कि सच है। इसमें आप खुद अपनी मदद कर सकते हैं और बहुत सारी दवाओं को 80 फीसदी तक कम दाम पर खरीद सकते हैं। यह सुविधा उपलब्ध कराई है एक वेबसाइट ने। पता है medguideindia.com या मेडगाइडइंडिया डॉट कॉम। यह साइट वैसे तो पांच साल पहले शुरू की गई थी। लेकिन अब धीरे-धीरे यह लोकप्रिय होती जा रही है। इस साइट को विनोद कुमार मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट की तरफ से चलाया जा रहा है और इसे केंद्रीय उपभोक्ता मामलात मंत्रालय का भी सहयोग व समर्थन हासिल है।
अभी समस्या यह है कि आमतौर पर दवा कंपनियों से कमीशन खाने के कारण डॉक्टर महंगी दवाएं लिख देते हैं। चूंकि गरीब से गरीब आदमी भी इलाज में कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता। इसलिए वह डॉक्टर को भगवान मानते हुए उसकी लिखी दवाएं खरीद लेता है। अभी हाल ही में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक समारोह में बताया कि देश में महंगे इलाज के कारण हर साल 4 करोड़ लोग गरीबी की दलदल में घंस जाते हैं। लेकिन इस साइट ने पूरे इलाज का तो नहीं, दवाओं को सस्ता करने का नुस्खा जरूर बता दिया है।
जैसे, ब्लड प्रेशर की दवा लोसार-एच की दस गोलियों का पत्ता 70.10 रुपए का आता है। एकदम समान मात्रा के रसायनों की अन्य दवा एंगिलोस-एच (निर्माता कंपनी – टैलेंट लैबोरेटरीज) की दस गोलियों का दाम 126 रुपए और लोस्टाट-एच की दस गोलियों का दाम 23 रुपए है। अगर डॉक्टर आपको एंगिलोस-एच लिखता है तो आप बड़े आराम से उसकी जगह लोस्टाट-एच ले सकते हैं क्योंकि दोनों में रसायनों की मात्रा समान है। लेकिन दाम में पूरे 103 रुपए का अंतर पड़ जाएगा। इस तरह आप 81.74 फीसदी खर्च बचा सकते हैं। मशहूर एंटी बायोटिक इंजेक्शन ऑगमेंटीन का मूल्य 212.40 रुपए है। लेकिन इन्हीं रसायनों से बना दूसरा इंजेक्शन, क्लेवेको आप महज 90 रुपए में खरीद सकते हैं।
इस तरह डॉक्टर की लिखी दवा का विकल्प खोजने का आसान रास्ता इस साइट ने सुझा दिया है। साइट की बाईं तरफ सर्च जैसी एक छोटी जगह है। इसमें आपको दवा का ब्रांड लिखना होता है। इसे सब्मिट करने पर एक अलग खिड़की खुलती है। इसमें एक्टिव इनग्रेडिएंट पर क्लिक कीजिए। इसके बाद खुली खिड़की में ‘match brands with above constituents’ पर क्लिक कीजिए तो समान रसायनों वाले दूसरे ब्रांडों का ब्योरा खुल जाएगा। यहां से आप सस्ती दवा चुन सकते हैं। आप चाहें तो डॉक्टर को बता भी सकते हैं कि जो दवा उन्होंने लिखी है, उसका दूसरा ब्रांड कम दाम में मिल रहा है। अगर डॉक्टर इसे लेने से मना करे तो आप उससे इसका कारण पूछ सकते हैं। हालांकि ज़रा-सा भी जमीर होगा तो डॉक्टर खट से आपकी बात मान जाएगा।
मेरे पिता इस साइट के बारे में सालों से जानते थे। मेरे ख़याल से इस साइट पर कहीं लिखा आता था कि कौन-से सरकारी विभाग से इनको ये डेटा मिलता है। बड़े काम की वैबसाइट है, बस आपके हाथ में जो अंग्रेज़ी दवाई का पत्ता है, उसके छोटे अक्षरों में लिखे नाम को Drugs→Generics में भर दो।
भारत में मैडिकल पत्रिकाओं में एक है जो औरों से बहुत ज़्यादा बिकती है, क्योंकि उसे डॉक्टर नहीं, दवाई की दुकान वाले पढ़ते हैं। हर दवाईवाले के पास Drug Today (drugtodayno1 . com) की मोटी सी पोथी ज़रूर मिलेगी। मैडगाइडइंडिया से ये बस इसलिए कमतर है कि मैडगाइड एक डेटाबेस है, उसमें दो-तीन तरीक़ों से सर्च कर सकते हैं। डॉक्टरों में ज़मीर, करूणा, ईमानदारी हो या ना हो, उनसे बहतर हरेक मेडिकल की दुकान वाला बता सकता है फलाँ दवाईं का फलाँ ब्रांड सस्ता पड़ेगा। क्योंकि डॉक्टरों को तो वही ब्रांड याद रहते हैं जिनकी कंपनियों से उन्हें दलाली मिलती है, भले ही वे मंहगे हो या सस्ते, जबकि दवाईवालों को तो बाज़ार के सभी ब्रांड याद रखने पड़ते हैं। जैसे एक दवाई जिसका नॉन-प्रोपराइटरी नेम clopidogrel है, बाज़ार में उसके 89 ब्रांड मिलते हैं। एक डॉक्टर को दूसरे डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन समझने के लिए अटकलें लगानी पड़ती हैं, जैसे वो अंदाज़ा लगाएगा कि दवाई 75mg है और नाम है Clopivas तो ये clopidogrel ही होगी, क्योंकि उसकी मात्रा 75 या 150mg ही होती है, और नाम का भी एक टुकड़ा मिलता है।
इधर जयपुर में सरकारी अस्पतालों में प्रिस्क्रिप्शन में असली नाम लिखने का ही नियम है। मेरे दादा के डॉक्टर जो हैं, वो जब सरकार के एसएमएस अस्पताल में बैठते हैं तो असली नाम लिखते हैं, लेकिन डॉक्टरजी के घर पर जाएँ तो प्रिस्क्रिप्शन पर ब्रांडनेम ही धरेंगे।
11वीं की इकोनॉमिक्स में हम एक परफैक्ट कॉम्पीटीशन मार्केट के होने की प्री-कंडीशंस पढ़ते थे। उसमें एक पोइंट था परफैक्ट नॉलेज, जिसका ज़्यादा ब्यौरा नहीं था। अंग्रेज़ी दवाइयों का बाज़ार इस पोइंट का तगड़ा उदाहरण है। कि किस तरह जानकारी के टोटे की वजह से कॉम्पीटीशन में बराबरी नहीं आने देता।
very nice and useful valubale artical.Also sonu has written good stuff,which gives good knowledge. thanks for the info.