शेयर बाजार में निवेश करना है तो हमें लॉटरी खेलने की मानसिकता से मुक्त होना होगा। शेयरों के भाव कभी भी वर्तमान या अतीत से नहीं, बल्कि कंपनी के कामकाज व नकदी प्रवाह के भावी अनुमानों से तय होते हैं। और, भविष्य को कोई भी ठीक-ठीक नहीं जान सकता। इसलिए शेयर बाजार के निवेश में जमकर जोखिम है। दिक्कत यह है कि हम शेयरों में निवेश करते वक्त रिटर्न की बात सोच-सोचकर लार तो टपकाते हैं। मगर, रिस्क से आंख मूंदकर भविष्य में आंसू बहाने का इंतजाम भी कर लेते हैं।
बीएसई और एनएसई दोनों ही हर स्टॉक के भाव के साथ डिलीवरी की स्थिति (कितने सौदे हुए और कितनी डिलीवरी के लिए थे) के साथ-साथ वैल्यू एट रिस्क या वार के आंकड़े भी हर दिन देते हैं। वार को रिस्क के आकलन का नया साइंस कहा जाता है। यह मोटे तौर पर बताता है कि हमें उस स्टॉक में निवेश पर निश्चित समय में कितना नुकसान हो सकता है। क्रेडिट सुइस के अमेरिकी कामकाज से जुड़े एक शीर्ष निवेश प्रबंधक व एनआरआई अर्थकाम के लिए वार पर हिंदी में लिखने को तैयार हो गए हैं। जल्दी ही वह लेख हम आपके लिए पेश करेंगे। इसके बाद आप एक्सचेंज की साइट पर दिए गए इस आंकड़े का मतलब भी समझने लगेंगे।
शेयर बाजार के बारे में एक बात और गांठ बांध लें कि किसी भी शेयर का मूल्य अटकलबाजी से नहीं, बल्कि कंपनी की भावी दशा-दिशा को समझनेवाले लोग तय करते हैं। और, ऐसा कोई एकाध या पंद्रह-बीस व्यक्ति नहीं, बल्कि बाजार के अमूर्त व सामूहिक दिमाग से तय होता है। एफआईआई, म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियों व पेंशन फंड से लेकर क्यूएफआई तक ऐसी ही बाजार की जानकार शक्तियां हैं। मगर, अपने यहां दिक्कत है कि कंपनियों के प्रमोटर तमाम ऑपरेटरों के साथ मिलकर खेल करते हैं। वो क्या खिलाते-पिलाते हैं, इसका तो पता नहीं। लेकिन अपनी नियामक संस्था, सेबी के लोग जैसे भांग या अफीम खाए पड़े रहते हैं। जो लूट सबको दिखती है, वह उन्हें ही नहीं दिखती। फिलहाल, सेबी के भरोसे कुछ नहीं हो सकता। इसलिए खुद हमें ही अपने हितों का पहरेदार बनना होगा।
हम जैसे रिटेल निवेशकों की संख्या जब तक बाजार के कुल निवेशकों की 20-25 फीसदी नहीं हो जाती है, तब तक हम बहती गंगा में हाथ ही धो सकते हैं। किसी स्टॉक के मूल्य के अन्वेषण या प्राइस डिस्कवरी में हमारी सक्रिय भूमिका नहीं हो सकती। देखिए! कब नौ मन तेल होगा और कब राधा नाचेंगी!!! खैर, आज हम उठा रहे हैं एक ऐसी कंपनी का शेयर जो छह साल पहले अक्टूबर 2006 में 180 रुपए पर चल रहा था। 2007 में यह 282 रुपए के शिखर तक चला गया। लेकिन अभी 43 रुपए के आसपास डोल रहा है।
कल, सोमवार 15 अक्टूबर 2012 को जियोडेसिक का दो रुपए अंकित मूल्य का शेयर मामूली बढ़त के साथ बीएसई (कोड – 503699) में 43.15 रुपए और एनएसई (कोड – GEODESIC) में 43 रुपए पर बंद हुआ है। यह शेयर बराबर गिरता रहा है। एक महीने पहले इसमें किसी ने अगर 1000 रुपए लगाए होते तो वे अभी घटकर 913 रुपए रह गए होते, जबकि इसी दौरान बीएसई सेंसेक्स में लगाए गए 1000 रुपए 1014 रुपए हो गए होते। इस स्टॉक के निवेशक रो रहे हैं क्योंकि साल भर पहले लगाए गए 1000 रुपए अभी 807 रुपए और पांच साल पहले लगाए गए 1000 रुपए 763 रुपए हो गए होते, जबकि इसी दौरान सेंसेक्स में यह रकम क्रमशः 1116 रुपए और 982 रुपए हो गई होती।
जाहिरा तौर पर जियोडेसिक ने बाजार की अपेक्षा कहीं ज्यादा नुकसान किया है। यह कोई गोपनीय रहस्य नहीं है। इसकी यह गति खुलती है इस तथ्य से कि बाजार की इसकी सापेक्ष स्थिति को दर्शानेवाला बीटा 1.13 है। बीटा अगर एक से ज्यादा होता है तो उसका मतलब होता है कि संबंधित शेयर में ज्यादा जोखिम है या चंचलता है। इसका मानक विचलन या स्टैंडर्ड डेविएशन 3.1 फीसदी है। भारतीय शेयर बाजार के 42 फीसदी स्टॉक्स इससे कम वोलैटाइल हैं। ये सारे आंकड़े यह बताने के लिए हैं कि जियोडेसिक में निवेश पर रिटर्न की गणना के साथ उससे जुड़े जोखिम का आकलन भी किया जा सकता है और समझदार निवेशक ऐसा करते भी हैं।
थोड़े में बता दूं कि जियोडिसेक दस साल से ज्यादा पुरानी कंपनी है। सॉफ्टवेयर उत्पाद बनाती है। स्मार्टफोन, टैबलेट व डेस्कटॉप कंप्यूटर तक इसके उत्पाद पहुंचते हैं। मुंडु रेडियो, मुंडु टीवी, मुंडु एसएमएस व आईएम, स्पाइडर इसके ब्रांड हैं। मोबाइल पर तमाम सामग्री पहुंचाती है। इसके धंधे में संभावनाएं अपार हैं। हालांकि इसका ऋण इक्विटी अनुपात 0.58: 1 का है। लेकिन कंपनी अभी विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बांडों की अदायगी में उलझी हुई थी। कंपनी की 18.02 करोड़ रुपए की इक्विटी का 74.56 फीसदी पब्लिक के पास है। इसमें से एफआईआई के पास जून 2012 के अंत तक 31.24 फीसदी शेयर थे। प्रवर्तकों के पास कंपनी के 25.44 फीसदी शेयर हैं जिसका 60.10 फीसदी भाग (कंपनी की 15.29 इक्विटी) उन्होंने गिरवी रखा हुआ है। यही अब तक कंपनी के गले की फांस बना हुआ था।
ऊपर से एफआईआई लगातार इसके शेयर बेच रहे थे। लेकिन जानकारों के मुताबिक कंपनी का प्रबंधन इस संकट से निकलने की राह खोज चुका है। फाइनेंशियल टाइम्स की ताजा रिसर्च रिपोर्ट में एक एनालिस्ट ने साल भर में इसके 225 रुपए पर पहुंचने का अनुमान लगाया है। अगर ऐसा हुआ तो डियोडेसिक साल भर में चार गुना से ज्यादा (423 फीसदी) बढ़ सकता है। यह एक झांकी है। इसकी हकीकत समझने के बाद ही इसमें निवेश करें। इसके शेयरधारकों ने अपना एक फोरम भी बना रखा है। दिक्कत यही है कि यह सारा कुछ अंग्रेजी में है। लेकिन क्या कीजिएगा। भारत की विकासगाथा का यह जन्मजात दाग है।