सरकार का कहना है कि इस बार सितंबर तिमाही में देश का जीडीपी 7.6% बढा है। यह जून तिमाही के 7.8% से कम है। लेकिन तमाम अर्थशास्त्रियों की साझा राय 6.8% और यहां तक कि रिजर्व बैंक के 6.5% के अनुमान से अच्छा-खासा ज्यादा है। हर तरफ बल्ले-बल्ले। लेकिन सतह के नीचे ही नहीं, ऊपर से भी देखें तो तस्वीर में काफी झोल दिखता है। इस बार वर्तमान मूल्यों पर जीडीपी साल भर पहले से 9.1% बढ़ा है, जबकि सितंबर 2022 में साल भर पहले से 17.2% बढ़ा था। इस बार प्राइस डिफ्लेटर 1.5% रखा है तो जीडीपी की वास्तविक विकास दर 7.6% निकल आई और पिछली बार प्राइस डिफ्लेटर 11% रखा था तो जीडीपी की वास्तविक विकास दर 6.2% निकली। साल भर में ही 11% से 1.5% तक! क्यों और कैसे? डिफ्लेटर से जीडीपी पर मुद्रास्फीति का असर खत्म करते हैं। होना यह चाहिए कि जीडीपी को रिटेल मुद्रास्फीति का असर मिटाकर देखा जाए। लेकिन सरकार अपनी चालाकी में थोक मुद्रास्फीति को गणना में शामिल कर रही है। उसकी दर कम चल रही है तो जीडीपी की वास्तविक विकास दर को ज्यादा दिखाया जा सकता है। मसलन, ताजा आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर में थोक मुद्रास्फीति -0.52% है, जबकि रिटेल मुद्रास्फीति 4.87% रही है। अब सोमवार का व्योम…
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