कंपनियों की बैलेंसशीट में हमेशा आस्तियों और देनदारियों का अलग-अलग जोड़ बराबर होता है। इसी तरह किसी देश के जीडीपी की गणना करते वक्त उत्पादन या आय को कुल व्यय के बराबर होना चाहिए। सिद्धांत कहता है कि अर्थव्यवस्था में अर्जित आय को खर्च के बराबर होना चाहिए क्योंकि उत्पादक व सेवाप्रदाता की आय तभी होती है, जबकि दूसरा उसके उत्पाद व सेवाएं खरीदता है। भारत में जीडीपी की गणना के लिए आय या उत्पादन का तरीका अपनाया जाता है, जबकि अमेरिका में व्यय और जर्मनी, ब्रिटेन व ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में दोनों का मिलाजुला तरीका अपनाते हैं। दोनों ही तरीकों से निकाले गए जीडीपी पर अमूमन कोई खास फर्क नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि उत्पादन या आय और व्यय हमेशा बराबर ही होते हैं। लेकिन भारत में विचित्र स्थिति है। यहां उत्पादन या आय का तरीका अपनाएं तो जून 2023 की तिमाही में हमारा जीडीपी साल भर पहले से 7.8% बढ़ा है, जबकि इस दौरान व्यय मात्र 1.4% बढ़ा है। फिर सही विकास दर आखिर है कितनी? जानकार इसे बहुत हुआ तो 4.5% ही बताते हैं। आज तथास्तु में अर्थव्यवस्था से गहराई से जुड़ी एक बैंकिंग कंपनी…
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