माना जाता है कि अर्थव्यवस्था बढ़ेगी तो रोज़गार के नए असर पैदा होंगे और काम करनेवालों को अपने श्रम का बेहतर दाम मिलेगा। लेकिन अपने यहां तो कबीर की उलटबांसियां ही चल रही हैं। वित्त वर्ष 2014-15 से 2021-22 तक हमारा जीडीपी 5.35% की औसत सालाना रफ्तार से बढ़ा है। लेकिन रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान वास्तविक मजदूरी 1% सालाना से भी कम दर से बढ़ी है। यह कृषि मजदूरों के लिए 0.9%, कंस्ट्रक्शन मजदूरों के लिए 0.2% और गैर-कृषि मजदूरों के लिए 0.3% ही बढ़ी। वास्तविक स्थिति और सही तुलना के लिए जीडीपी व मजदूरी, दोनों की विकास दर से मुद्रास्फीति का प्रभाव हटा दिया गया है। सवाल उठता है कि जिस गति से अर्थव्यवस्था बढ़ी है और बढ़ रही है, उस गति से अगर श्रम का दाम नहीं बढ़ा तो विकास का फल व्यापक मेहनतकश अवाम तक कैसे पहुंचेगा? तब तो बिचौलियों की ही मौज चलती रहेगी! अब सोमवार का व्योम…
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