देश की अर्थव्यवस्था हो, चुनाव हों या शेयर बाज़ार, सत्ता और धंधे के सूत्र ने इन सबको जोड़ रखा है। सत्ता की आहट से ये सभी हिल जाते हैं। कल 18वीं लोकसभा के अंतिम चरण का मतदान है। फिर शाम को एक्जिट-पोल और मंगलवार को अंतिम नतीजे। इससे पहले आज आखिरी ट्रेडिंग दिन है तो शेयर बाज़ार में सनसनी मची हुई है। अभी दो दिन पहले अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी एस एंड पी ग्लोबल ने दस साल बाद भारत की संप्रभु रेटिंग ‘Stable’ से उठाकर ‘Positive’ कर दी है। लेकिन उसने साफ किया कि इसका चुनावों के नतीजों से कोई लेना-देना नहीं है। सरकार कोई भी आए, आर्थिक सुधार व नीतियां जारी रहने की उम्मीद है। हालांकि सीतारमण ने इसे मोदी सरकार के तीसरी बार सत्ता में आने का प्रमाण बता दिया। वैसे, चुनाव नतीजों को लेकर उहापोह जारी है। हिसाब लगाया जा रहा है कि मई 1996 में संयुक्त मोर्चा की सरकार आई तो अगले छह महीनों में सेंसेक्स 21% से ज्यादा गिर गया। अक्टूबर 1999 में एनडीए की सरकार बनी तो अगले छह महीनों में सेसेक्स 4% बढ़ा। मई 2004 में एनडीए के हारने के बाद छह महीने में सेंसेक्स 10% बढ़ गया। वहीं, मई 2009 में यूपीए सत्ता में बनी रही तो सेंसेक्स छह महीने में 40% बढ़ गया। दस साल बाद 2019 में जीडीपी गिर गया था, फिर भी मोदी सरकार वापस आ गई। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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