प्रधानमंत्री ने अपने पत्र में दावा किया है कि उनकी सरकार ने हर नीति व निर्णय के ज़रिए गरीबों, किसानों, युवाओं व महिलाओं के जीवनस्तर को सुधारने और उन्हें सशक्त बनाने के ईमानदार प्रयास किए हैं। सरकार की तरफ से नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर, सुब्रह्मण्यम ने कहा है कि देश में गरीबी आबादी के 5% तक सिमट गई है। लेकिन फिर ऐसा क्यों है कि हमारे 81.35 करोड़ या 58.10% लोग सरकार से हर महीने मुफ्त मिलनेवाले पांच किलो राशन के मोहताज़ हैं? हमारे बच्चों में 32.1% अंडर-वेट और 35.5% कुपोषण के चलते पूरे बढ़े नहीं हैं। किसानों की बात करें तो हर साल देश का भंडार गेहूं, चावल जैसे अनाज से भर देनेवाले अब भी आत्महत्या किए जा रहे हैं। ताज़ा सरकारी सर्वेक्षण के मुताबिक किसान परिवारों का खर्च औसत गांव वालों से कम हो गया है। युवाओं की हालत यह है कि 25 साल से कम के 42.3% युवा बेरोज़गार हैं। मुद्रा-लोन से अगर रोज़गार मिलने व देने की बात सच होती तो हमारे नौजवान कमाने के लिए इज़राइल-हमास और रूस-यूक्रेन के युद्ध तक में लड़ने-मरने नहीं चले जाते। देश का डेमोग्राफिक डिविंडेंड पिछले दस सालों में घुटन का शिकार हो गया है। महिला जाति में तो आज भी देश में 15 से 49 साल की 50% से ज्यादा महिलाएं एनीमिया या खून की कमी की शिकार हैं। ऊपर से अनाचार, अत्याचार। अब मंगलवार की दृष्टि…
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