पूर्व वित्त सचिव ने खोला सरकार का भेद, पूंजी व्यय बढ़ाने का दावा है पूरा का पूरा झूठा

केंद्रीय वित्त मंत्रालय में जुलाई 2017 से लेकर जुलाई 2019 तक आर्थिक मामलात के सचिव से लेकर वित्त सचिव तक रह चुके सुभाष चंद्र गर्ग ने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। पिछले ही महीने उनकी किताब, ‘वी आलसो मेक पॉलिसी’ का एक अंश अखबारों में सुर्खियां बन गया था जिसमें खुलासा किया गया था कि 14 सितंबर 2018 को एक बैठक में रिजर्व बैंक द्वारा केंद्र सरकार को धन देने से मना करने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन गवर्नर ऊर्जित पटेल को ‘खज़ाने पर कुंडली मारकर बैठा सांप’ कह दिया था। अब पूर्व वित्त सचिव ने बैगलोर मुख्यालय वाले अंग्रेज़ी अखबार डेक्कन हेराल्ड में छपे अपने एक लेख में विस्तार से बताया है कि मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल के दौरान पांच सालो में जिस 30,80,448 करोड़ रुपए के पूंजीगत व्यय (Capex) का दावा किया था, वह असल में उसके 40% से भी कम 12,23,172 करोड़ रुपए रहा है। बाकी सब घालमेल है। गौरतलब है कि कोई पत्रकार या बाहरी अर्थशास्त्री यह कहता तो संदेह किया जा सकता है। लेकिन जब खुद वित्त सचिव रह चुका कोई शख्स कह रहा है तो उस पर किसी शक की गुंजाइश नहीं रहती।

गर्ग ने अपने लेख में लिखा है: पूंजीगत व्यय नरेंद्र मोदी सरकार की 2021-22 से ही सबसे बड़ी राजकोषीय नीति रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उस साल पूंजी व्यय को साल भर पहले 2020-21 के बजट अनुमान से 34.5% बढ़ाकर 5.54 लाख करोड़ रुपए कर दिया था। उन्होंने 2022-23 और 2023-24 के भी बजट में पूंजी व्यय को दोगुना करने का दम्भ भरा। सीतारमण ने चालू वित्त वर्ष 2022-23 के बजट भाषण में पूंजी व्यय को ‘विकास और रोज़गार का संवाहक’ बताते हुए बिगुल बजाया कि, “पूंजीगत निवेश परिव्यय में लगातार तीसरे वर्ष 33% की तीव्र वृद्धि करके इसे ₹10 लाख करोड़ किया जा रहा है जो जीडीपी का 3.3% होगा। यह वर्ष 2019-20 के परिव्यय से लगभग तीन गुना अधिक होगा।” मजे की बात यह है कि इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं है कि 2019-20 और 2020-21 के बजट में पूंजी निवेश परिव्यय कितना रहा था।

पूंजीगत व्यय की हवाबाज़ी की हकीकत क्या है? मोदी सरकार के पिछले पांच सालों के दौरान पूंजीगत व्यय ऊपर-ऊपर 2018-19 के 3,07,714 करोड़ रुपए से 2023-24 के बजट अनुमान में 10,00,961 करोड़ रुपए हो गया है। यह 26.6% की अच्छी-खासी सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) दिखती है। इन पांच सालों में कुल पूंजीगत व्यय (2022-23 के संशोधित और 2023-24 के बजट अनुमान को मिलाकर) 30,80,448 करोड़ रुपए है जिसका सालाना औसत 6,16,890 करोड़ रुपए निकलता है। लेकिन ऊपर-ऊपर दिख रहा यह बजटीय पूंजीगत व्यय बेहद भ्रामक है। कैसे, आइए देखते हैं।

ऋण नहीं होता पूंजीगत व्यय। बजटीय पूंजीगत व्यय में राज्य सरकारों व अन्य को दिए गए ‘ऋण व अग्रिम’ शामिल होते हैं। इन ऋणों को पानेवाला राज्य पूंजीगत व्यय में लगा सकता है। लेकिन केंद्र सरकार के लिए ये पूंजीगत व्यय नहीं होते। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में राज्यों वगैरह को दिए गए ये ऋण जमकर बढ़े हैं। 2019-20 में ये ऋण मात्र 24,414 करोड़ रुपए हुआ करते थे, जबकि 2023-24 के बजट अनुमान में ये कई गुना बढ़कर 1,63,834 करोड़ रुपए हो चुके हैं। अगर इन्हें हटा दें तो चालू वित्त वर्ष में बजट का पूंजीगत व्यय 10,00,961 करोड़ रुपए से घटकर 8,37,127 करोड़ रुपए रह जाता है। पूरे पांच सालों में राज्यों वगैरह को दिए गए 4,65,185 करोड़ रुपए के ऋण व अग्रिम को घटा दें तो ऊपर-ऊपर दिख रहा 30,80,448 करोड़ रुपए का पूंजी परिव्यय घटकर 26,19,283 करोड़ रुपए रह जाता है।

कुछ पूंजी आवंटन पूंजीगत परिव्यय नहीं होते। डिफेंस सेवाओं के लिए हथियार और आयुध खरीदना यकीनन राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक है। लेकिन यह आर्थिक विकास पैदा करने वाला पूंजीगत व्यय नहीं है। 2023-2024 में ऐसा पूंजी आवंटन 1,99,104 करोड़ रुपए है जो पूंजीगत परिव्यय को और घटाकर 6,38,023 करोड़ रुपए कर देता है। इस तरह उक्त पांच सालों में 8,24,671 करोड़ रुपए के अनुत्पादक पूंजी खर्च को हटा दें तो आर्थिक विकास को बढ़ाने वाला वास्तविक पूंजीगत परिव्यय अब घटकर 17,94,592 करोड़ रुपए पर आ जाता है।

पूंजीगत व्यय का एक हिस्सा फर्जी था। केंद्र सरकार ने एयर इंडिया लिमिटेड के निजीकरण के बाद उसकी देनदारियों को चुकाने के लिए 2021-22 में एयर इंडिया एसेट्स होल्डिंग लिमिटेड को ‘इक्विटी’ के रूप में 62,365 करोड़ रुपए उपलब्ध कराए। सरकार ने अपने घाटे को कवर करने और 4जी के लिए लाइसेंस शुल्क व अन्य बकाया राशि के लिए मृतप्राय हो चुके बीएसएनएल और एमटीएनएल में 89,829 करोड़ रुपए की इक्विटी भी डाली। यह पूरी की पूरी 1,52,194 करोड़ रुपए की रकम पूंजीगत व्यय के नाम पर विशुद्ध झूठ था। इसे भी निकाल दें कि उत्पादक बजटीय पूंजीगत व्यय घटकर 16,42,398 करोड़ रुपए रह जाता है। इस तरह यह ऊपर-ऊपर दिख रहे 30,80,448 करोड़ रुपए के कुल पूंजीगत व्यय के 53.3% पर आ गया। लेकिन पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।

सार्वजनिक क्षेत्र के पूंजीगत व्यय के साथ भयंकर घालमेल। केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय के दो चैनल या प्रवाह स्रोत हैं। एक बजटीय और दूसरा सार्वजनिक क्षेत्र के आंतरिक व अतिरिक्त बजटीय संसाधन (आईईबीआर), जिसे बजट की रूपरेखा में प्रस्तुत किया जाता है। 2018-19 से 2023-24 के दौरान सरकार ने आईईबीआर से होनेवाले कैपेक्स को बड़े पेमाने पर बजटीय कैपेक्स से भर दिया। 2018-2019 में 1,32,642 करोड़ रुपए के रेलवे पूंजीगत व्यय को बजट से 52,103 करोड़ रुपए और आईईबीआर से 80,539 करोड़ रुपए द्वारा फंड किया गया था। 2018-2019 और 2019-2020 में, आंतरिक व बजट से इतर संसाधनों या (आईईबीआर) से रेलवे पूंजीगत व्यय का 57.3% हिस्सा फंड किया गया था। लेकिन 2021-22 से यह स्थिति पलट दी गई।

रेलवे के पूंजीगत व्यय में बजटीय कैपेक्स वित्त वर्ष 2022-23 के संशोधित अनुमान में बढ़कर 1,58,997 करोड़ रुपए और 2023-24 के बजटीय अनुमान में बढकर 2,39,925 करोड़ रुपए हो गया, जबकि आईईबीआर कैपेक्स घटकर क्रमशः 95,943 करोड़ रुपए और 52,783 करोड़ रुपए रह गया। असल में 2018-19 से 2023-24 के दौरान रेलवे का कुल पूंजी परिव्यय 10,41,438 करोड़ रुपए रहा है। अगर इसका 57.3% हिस्सा आईईबीआर से आया होता तो उसका योगदान 5,96,348 करोड़ रुपए का रहता। चूंकि यहां से केवल 4,27,534 करोड़ रुपए दिखाए गए तो साफ-साफ सरकार ने रेलवे के 1,68,814 करोड़ रुपए के पूंजी परिव्यय को बजट के खाते में डाल दिया। इसे हटा दें तो बजट का असल पूंजीगत परिव्यय घटकर 14,73,584 करोड़ रुपए रह जाता है।

सड़क क्षेत्र में तो कैपेक्स का यह घालमेल और भी भयंकर है। 2018-19 और 2019-20 में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के 2,76,668 करोड़ रुपए के पूंजीगत व्यय में 1,36,205 करोड़ रुपए यानी 49.2% भाग आंतरिक व बजट से इतर संसाधनों या (आईईबीआर) से पूरा किया गया। लेकिन 2022-23 आते-आते आईईबीआर का स्रोत पूरी तरह सूख गया। 2019-2024 की अवधि में एनएचएआई का कुल कैपेक्स 9,27,066 करोड़ रुपए था। इसमें से सरकार ने 7,21,095 उपलब्ध कराए। अगर एनएचएआई ने 49.2% हिस्सा आईईबीआर से हासिल किया होता तो वह रकम 4,46,383 करोड़ रुपए होती। चूंकि एनएचएआई ने केवल 2,05,941 करोड़ रुपए उपलब्ध कराए तो सरकार ने स्पष्ट रूप से 2,50,412 करोड़ रुपए इस खाते से उस खाते में डाल दिए।

अगर इसे भी घटा दें कि पांच साल में कैपेक्स पर खर्च की गई वास्तविक रकम 12,23,172 करोड़ रुपए बनती है जो दावा किए जा रहे 30,80,448 करोड़ रुपए के कैपेक्स का 40% से भी कम (39.71%) ही ठहरती है। यही है मोदी सरकार के पूंजीगत व्यय के हो-हल्ले की हकीकत।

(पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग का मूल लेख डेक्कन हेराल्ड में 24 अक्टूबर 2023 को छप चुका है)

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