आंकड़ों में भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर अच्छी से अच्छी होती जा रही है। पहले अनुमान था कि 31 मार्च 2024 को खत्म हो रहे वर्तमान वित्त वर्ष 2023-24 में हमारा जीडीपी 7.3% बढ़ेगा। फिर दिसंबर 2023 की तिमाही में विकास दर के 8.4% पहुंचने पर पूरे साल का अनुमान बढ़ाकर 7.6% कर दिया। कुछ दिन पहले ही रिजर्व बैंक का नया अध्ययन आया है जिसके मुताबिक जनवरी-मार्च की तिमाही में विकास दर 5.9% के बजाय 7.2% रह सकती है तो पूरे वित्त वर्ष में जीडीपी लगभग 8% बढ़ जाएगा। यही नहीं, नए वित्त वर्ष 2024-25 में हमारा जीडीपी 7.4% बढ़ सकता है, जबकि रिजर्व बैंक ने 8 फरवरी को घोषित पिछली मौद्रिक नीति में 7% का ही अनुमान लगाया था। लेकिन विकास की इस गहमागहमी के बीच विचित्र तथ्य यह है कि प्रत्यक्ष विदेशी पूजी निवेश (एफडीआई) भारत में आने से कतराने लगा है। हालांकि विदेशी निवेशक अब भी भारतीय शेयर बाज़ार से भरपूर कमाई करने की फिराक में लगे हैं। लेकिन चौंकानेवाली बात यह है कि भारत में आया शुद्ध एफडीआई एक दशक के न्यूनतम स्तर पर आ गया है। सितंबर 2023 तक 12 महीनों में आया शुद्ध एफडीआई 2005 के बाद का सबसे कम स्तर है। आखिर ऐसा क्यों है कि भारतीय शेयर बाजार विदेशियों का भा रहा है, लेकिन आंकड़ों में चमकता-दमकता भारत नहीं। अब मंगलवार की दृष्टि…
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