प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूर की कौड़ी फेंकने में उस्ताद हैं। उनकी यह प्रतिभा चुनावों के मौजूदा मौसम में कुछ ज्यादा ही सिर चढ़कर बोल रही है। 23 बाद 2047 में भारत को विकसित देश बनाने की कौड़ी क्या कम थी जो राजस्थान के चुरु और उत्तर प्रदेश के सहारनरपुर जैसी छोटी जगहों की चुनावी रैलियों में जनता को हांक रहे हैं कि वे भारत की अर्थव्यवस्था को दस साल में जिस ऊंचाई पर ले गए हैं, उसकी जबरदस्त तारीफ विदेश में हो रही है। वहां का कोई श्रोता वाह-वाह करने के अलावा क्या यूरोप या अमेरिका जाकर प्रधानमंत्री के बयान की तस्दीक कर सकता है? असंभव। इसीलिए मोदी जी कुछ भी बोलकर निकल जाते हैं। पिछले हफ्ते अमेरिका के मशहूर अखबार न्यूयॉक टाइम्स ने एक विस्तृत रिपोर्ट में लिखा है कि एक तरफ नरेंद्र मोदी भारत को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल करने की पेंग भर रहे हैं, दूसरी तरफ वहां आय व दौलत की विषमता बढ़ती जा रही हैं। पहले से कहीं ज्यादा लोग आय बढ़ाने के लिए शेयर बाज़ार में कूदने का जोखिम उठाने लगे। इससे शेयर बाज़ार कुलांचे भरने लगा। लेकिन रिसर्च फर्म मार्सेलस के मुताबिक भारतीय शेयर बाज़ार में 2012 से 2022 तक जो 1.4 लाख करोड़ डॉलर की दौलत बनी है, उसका 80% हिस्सा केवल 20 कंपनियों को मिला है। बाकी निवेशक तो ठन-ठन गोपाल रह गए और अपना मूलधन व पूंजी तक गंवा बैठे। अब सोमवार का व्योम…
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